प्रथम वंदन श्री गणेशजी को ।
दूजा वंदन मां सरस्वती को ।
तीजे वंदू श्री गुरुचरणन को ।
चौथा वंदन कुलदेवी को ।
पाचवां वंदन पंचतत्त्वों को ॥ १ ॥
छठा वंदन त्रिगुणों को ।
सातवां वंदन षड्गुणों को ।
अष्टम है अष्टलक्ष्मी को ।
नवम वंदन नौ नागों को ।
दशम वंदन दश दिशाओं को ॥ २ ॥
ग्यारहवां चतुर्दश भुवनों को ।
बारहवें पर भू माता है ।
तेरहवां सब संतन को ।
चौदहवां है सब जन को ।
पंद्रहवां वंदन आतम को ॥ ३ ॥
आतम से परमातम जोडे ।
भवसागर की चिंता छुडाए ।
जीवन नैया पार लगाए ।
प्रेम के रंग में जीवन रंगे ।
उठतीं भीतर आनंद तरंगें ।
बारंबार हम शीश नवाएं ॥ ४ ॥
– सौ. अंजली कणगलेकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (३१.१.२०१७)
येथे प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या ‘भाव तेथे देव’ या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |