‘नारायण-नारायण’ करती साधकों की वाणी, नारायण अब बस रहे मन में, बस रहे मन में ।

श्री. संकेत भोवर

आस लगी गुरुदेवजी के दर्शन की ।
आज्ञा मिली दोनों सद़्‍गुरु माता को महर्षि की ।
हर जन्‍मोत्‍सव भिन्‍न पद्धति से मनाने की ।
साधकों को आस लगी गुरुदेवजी के दर्शन की ॥ १ ॥

आया पहला वर्ष जन्‍मोत्‍सव के अवसर का ।
सज-धज के साधक राह देख रहे गुरुदेवजी की ।
प्रारंभ हुआ जन्‍मोत्‍सव, हर्षित हो रही धरती ।
श्‍वेत वस्‍त्र में आए गुरुदेवजी, बरसात हुई फूलों की ॥ २ ॥

दूसरा वर्ष आया निकट, उद्देश्‍य था धर्मसंस्‍थापना का ।
अब उद्देश्‍य था समाज में आया रज-तम नष्‍ट करने का ।
रामराज्‍य स्‍थापना हेतु गुरुदेवजी ने किया राम-कृष्‍ण रूप धारण ।
धन्‍य धन्‍य हो गए साधक कर रहे सब राम-कृष्‍ण का गुणगान ॥ ३ ॥

तीसरा वर्ष आया अमृतमहोत्‍सव नाम का ।
महर्षिजी ने वर्णन किया अवतार का ।
साधकों ने नामघोष किया जयंतअवतार का ।
गुरुदेवजी की श्रेष्‍ठता आई सामने, भाव बढा साधकों का ॥ ४ ॥

चौथा वर्ष आया, साधकों के लिए था खास ।
साधकों को आनंद देने वो घटिका आई पास ।
उद्देश्‍य था साधकों का भाव अधिक से अधिक बढाना ।
महर्षि लेकर आए गुरुदेवजीका शेषशायी नारायण रूप हमारे पास ॥ ५ ॥

अब साधक राह देख रहे पांचवें वर्ष की ।
इस वर्ष क्‍या आज्ञा होगी महर्षि की ।
बात थी साधकों के ऊपर आए संकट निवारण की ।
सत्‍यनारायण रूप में देखी छवि गुरुदेवजी की ॥ ६ ॥

छठे वर्ष की बात अब आई ।
उद्देश्‍य था साधकोंपर ईश्‍वर की कृपा होना ।
महाविष्‍णु रूप में पधारे गुरुदेव जी ।
झूले पर बैठे गुरुदेवजी, विशेषता थी उनका डोलोत्‍सव मनाना ॥ ७ ॥

सातवा साल नजदीक आया ।
उद्देश्‍य था साधकों का आपातकाल में रक्षण होना ।
महर्षीजींने सामने लाया राज अलंकृत रूप गुरुदेवजीका ।
धन्‍य धन्‍य हो गए साधक, आनंद बढा सबका ॥ ८ ॥

आठवे साल में अब महर्षि की आज्ञा से बैठे गुरुदेवजी रथ में ।
समाज और साधकों को दर्शन देने ।
रथ में विराजमान हुए रथारूढ श्रीमन्‍नारायण रूप में ।
नारायण-नारायण करती साधकों की वाणी ॥ ९ ॥

नारायण अब बस रहे मन में, बस रहे मन में ॥

– कृतज्ञता,

श्री. संकेत भोवर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (५.५.२०२३)

येथे प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या ‘भाव तेथे देव’ या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक