सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
मानव एकमात्र प्राणी है, जो केवल स्वयं के लिए जीता है । वह प्रकृति पशु-पक्षी एवं वनस्पति से निरंतर कुछ न कुछ लेता रहता है । मानव के स्वार्थ के कारण ही वह अन्य प्राणियों की तुलना में अधिक दुखी रहता है ।