सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

स्वार्थी मानव !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

‘पृथ्वी पर सभी प्राणी दूसरों के लिए जीते हैं । पशु-पक्षी, वनस्पति अन्यों को कुछ न कुछ देते रहते हैं । मानव एकमात्र प्राणी है, जो केवल स्वयं के लिए जीता है । वह प्रकृति पशु-पक्षी एवं वनस्पति से निरंतर कुछ न कुछ लेता रहता है । मानव के स्वार्थ के कारण ही वह अन्य प्राणियों की तुलना में अधिक दुखी रहता है ।’


ईश्वरप्राप्ति के संदर्भ में मनुष्य की लज्जाजनक उदासीनता !

‘धनप्राप्ति, विवाह, रोग-व्याधि इत्यादि अनेक कारणों के लिए अनेक लोग उपाय पूछते हैं; परंतु ईश्वरप्राप्ति के लिए उपाय पूछने का कोई विचार भी नहीं करता !’


हिन्दुओं को साधना सिखाना अपरिहार्य !

‘संसार के सर्वश्रेष्ठ हिन्दू धर्म में जन्म प्राप्त करके भी धर्म के लिए कुछ भी न करनेवाले हिन्दू मरने योग्य हैं अथवा जीने योग्य नहीं’, ऐसा कुछ लोगों को लगता है; परंतु यह उचित नहीं ।’ उन्हें साधना सिखाना हिन्दुओं का कर्तव्य है ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले