धर्मकार्य में पैर जमाकर खडे रहना आवश्यक – अधिवक्ता भारत शर्मा, संरक्षक, धरोहर बचाओ समिति, राजस्थान

‘‘जिस प्रकार अंगद ने रावण की राजसभा में स्वयं भूमि पर पैर जमाया, उसी प्रकार हिन्दुत्वनिष्ठों को धर्मकार्य करने के लिए पैर जमाकर खडे रहना चाहिए, तभी जाकर हम हिन्दू राष्ट्र की स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं’’, ऐसा प्रतिपादन अधिवक्ता भारत शर्मा ने किया ।

आदर्श चरित्र का निर्माण करनेवाली शिक्षा आवश्यक ! – पू. डॉ. शिबनारायण सेन, उपसचिव, शास्त्र धर्म प्रचार सभा, बंगाल

आज भी भारत में किसी भी विद्यालय में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती । भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित किए बिना हिन्दुओं को धर्म की शिक्षा नहीं दी जा सकती । इसलिए ‘सभी संस्थाओं को एकत्रित होकर आदर्श चरित्र का निर्माण हो सके’, इस प्रकार की धार्मिक शिक्षा देनी आवश्यक है ।

स्वयं के द्वारा हिन्दू धर्म का आचरण करने से ही हिन्दुओं को जागृति लाना संभव ! – दयाल हरजानी, व्यवसायी, हाँगकाँग

मंदिरों में दानपेटी होती है; परंतु ज्ञानपेटी नहीं होती । मंदिरों में धर्म का ज्ञान मिलना आवश्यक है । दुर्भाग्यवश मंदिरों की ओर से ज्ञान नहीं दिया जाता । इसलिए हमें मंदिरों में भी परिवर्तन लाना पडेगा । धर्म का ज्ञान लेकर मन में मंदिर तैयार नहीं हुआ, तो वह किसी उपयोग का नहीं है ।

कृतज्ञताभाव में रहने से निराशा न आकर मन आनंदित होकर साधना और अधिक अच्छे ढंग से की जा सकेगी !

साधकों को साधना में भले ही प्रगति करना संभव न होता हो और स्वभावदोषों और अहं पर विजय प्राप्त करना संभव न होता हो; तब भी उन्हें बताया जाता है, ‘आप भावजागृति के लिए प्रयास कीजिए । भाव जागृत हुआ, तो साधना में उत्पन्न अनेक बाधाएं दूर होंगी और आपकी प्रगति होगी ।

‘सादगीपूर्ण जीवनशैली और उच्च विचारधारा की प्रतीति : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

किसी कागद की छायांकित प्रति निकालने पर उसमें यदि २-४ सें.मी. का निचला भाग कोरा हो, तो वे उतना कागद लेखन के लिए निकाल लेते हैं, साथ ही टिकट, डाक के पत्र का कोरा भाग काटकर उसपर भी लेखन करते हैं ।

परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा सिखाई गई ‘भावजागृति के प्रयास’ की प्रक्रिया ही आपातकाल में जीवित रहने के लिए संजीवनी !

आपकी दृष्टि सुंदर होनी चाहिए । तब मार्ग पर स्थित पत्थरों, मिट्टी, पत्तों और फूलों में भी आपको भगवान दिखाई देंगे; क्योंकि प्रत्येक बात के निर्माता भगवान ही हैं । भगवान द्वारा निर्मित आनंद शाश्वत होता है; परंतु मानव-निर्मित प्रत्येक बात क्षणिक आनंद देनेवाली होती है । क्षणिक आनंद का नाम ‘सुख’ है ।

भगवान शिव को प्रिय श्रावण मास में सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी एवं पू. मेनरायजी का जन्म होना…

सनातन के १४ वें संत सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी का जन्मदिन श्रावण शुक्ल प्रतिपदा (२९ जुलाई २०२२) एवं ४६ वें संत पू. मेनरायजी का जन्मदिन श्रावण शुक्ल पंचमी (नागपंचमी, २ अगस्त २०२२) को है । जन्मदिन निमित्त सनातन परिवार की ओर से कोटि-कोटि प्रणाम !

वाराणसी में संस्कृत के विद्वान श्री. विद्यावाचस्पति त्रिपाठी ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर हुए जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त

मूल वाराणसी के धर्माभिमानी एवं संस्कृत भाषा एवं धर्मशास्त्र के गहन अध्ययनकर्ता श्री. विद्यावाचस्पति त्रिपाठी (आयु ८० वर्ष) ने ९ जून २०२२ को ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने की घोषणा, देहली में उनके निवासस्थान पर की गई । यह घोषणा सनातन के संत पू. संजीव कुमार ने की ।

युगप्रवर्तक परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के अलौकिक चरित्र से युक्त विशिष्ट ग्रंथमाला !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रथम ग्रंथ ‘अध्यात्मशास्त्र’ से अधिक मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित हो रहा है, यह दर्शानेवाली वैज्ञानिक जांच !

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स्वभावदोष (षड्रिपु)-निर्मूलनका महत्त्व एवं गुण-संवर्धन प्रक्रिया (अंग्रेजी), नामजप का महत्त्व (अंग्रेजी), त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र (हिन्दी)