आइए, अनुभव करें महाकुंभ क्षेत्र की हिन्दू राष्ट्रप्रीत्यर्थ संपन्न दिव्य पदयात्रा !
मोक्षनगरी में हुए हिन्दू राष्ट्र के जयघोष से । गूंज उठी पृथ्वी, आकाश एवं स्वर्ग ।।
मोक्षनगरी में हुए हिन्दू राष्ट्र के जयघोष से । गूंज उठी पृथ्वी, आकाश एवं स्वर्ग ।।
हिन्दुओं का महाकुम्भ पर्व ‘अर्थ’ एवं ‘काम’ का ग्लैमर नहीं; अपितु ‘धर्म’ एवं ‘मोक्ष’ की अनिवार्यता दर्शानेवाला तीर्थस्थल है !
कुम्भ क्षेत्र में अध्यात्म का प्रसार हो, हिन्दुओं को धर्मशिक्षा मिले तथा हिन्दुओं में हिन्दू राष्ट्र के विषय में जागृति हो, इन उद्देश्यों से ‘सनातन संस्था वाराणसी’ एवं ‘सनातन संस्था गोवा’, इन संस्थाओं की ओर से भव्य ग्रंथ एवं फलक प्रदर्शनी लगाई गई है । सद्गुरुद्वयी ने २२ जनवरी को इस प्रदर्शनी का अवलोकन किया ।
सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की उत्तराधिकारिणियां श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी (सद्गुरुद्वयी) ने २१ एवं २२ जनवरी को तीर्थराज प्रयागराज की यात्रा की । इस यात्रा में उन्होंने विभिन्न स्थानों का अवलोकन किया ।
भारत संविधान से चल रहा है; इसलिए भारत को संवैधानिक दृष्टि से हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए । इस देश में आज भी अनेक लोग पाकिस्तान के पक्षधर हैं ।
सच्चे साधु कभी भी उनके साधुत्व का प्रदर्शन नहीं करते, अपितु वे साधनारत होते हैं तथा वही उनके जीवन का लक्ष्य होता है । उनमें लोकप्रियता का लालच नहीं होता । लोकप्रियता का लालच रखनेवालों को क्या ‘साधु’ कहना भी उचित होगा ?
महाकुम्भ पर्व में हुई भगदड की घटना अत्यंत दुर्भाग्यशाली है । इसमें निर्दाेष श्रद्धालु अकारण बलि चढे । इस घटना के निश्चित कारण, प्रशासनिक त्रुटियां तथा उसके उपायों के विषय में हम इस लेख में पढेंगे !
जिस प्रकार गंगा, यमुना एवं सरस्वती इस त्रिवेणी संगम का महत्त्व कालातीत है, उसके अनुसार ‘सनातन, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी एवं हिन्दू राष्ट्र’, इस दैवी त्रिवेणी संगम का महत्त्व युगों-युगों तक बना रहेगा !
सनातन संस्था की गुरुपरंपरा शंकराचार्यजी के शिष्य तोटकाचार्य से उत्पन्न आनंद अखाडे के साथ की है ।सद्गुरुद्वयी ने अखाडे के वर्तमान आचार्य महामंडलेश्वर अनंत विभूषित श्री श्री १००८ स्वामी बालकानंदगिरिजी से भेंट की तथा उन्हें सनातन के रामनाथी (गोवा) आश्रम आने का निमंत्रण दिया । सद्गुरुद्वयी से मिलकर स्वामी बालकानंदगिरिजी बहुत आनंदित हुए तथा उन्होंने सनातन के कार्य को भरभरकर आशीर्वाद दिए ।
इस बार प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ न केवल परंपरा और आधुनिकता का मिश्रण है, अपितु अपनेआप में हर प्रकार से अद्वितीय भी है । महाकुंभ प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक धर्म, संस्कृति तथा परंपरा के साथ-साथ समाजिकता और व्यवसाय का एक बडा मंच रहा है ।