कैलाश मानसरोवर यात्रा एवं हरिहर मिलन

१. कैलाश पर्वत के विराट दर्शन

‘परम श्रद्धेय पूजनीय गुरुदेव श्री रविनाथजी महाराज तथा मेरे आराध्य महामृत्युंजय देव आदिदेव महादेवजी की कृपा से प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी (वर्ष २०१९) मुझे पवित्र कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । यह मेरी छठवीं कैलाश मानसरोवर यात्रा थी । प्रतिवर्ष के अनुसार इस वर्ष मुझे सनातन संस्था की आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का पावन सान्निध्य मिला । हमारी यात्रा २३ जुलाई २०१९ को काठमांडू से आरंभ हुई । काठमांडू में २ दिन विश्राम करने के पश्चात हम सवेरे सुफराबेशी, कैरोंग तथा सागा, इन गांवों से होते हुए २९ जुलाई को दारचेन पहुंचे । वहां हमें कैलाश पर्वत का दक्षिणमुखी दर्शन हुआ । ३० जुलाई को सवेरे यमद्वार पहुंचने पर उसके आगे की यात्रा पैदल अथवा घोडे पर बैठकर करनी होती है । यह मार्ग दुर्गम है तथा समुद्रतल से १५-१६ सहस्र फुट ऊंचाई पर है, साथ ही वहां प्राणवायु (ऑक्सीजन) अल्प होती है । उसके कारण यात्रा में अनेक समस्याएं आती हैं । यह मार्ग लगभग १४ किलोमीटर का है; परंतु यात्रा करने के लिए ४-५ घंटे लगते हैं । हम दोपहर ४ बजे डेरामुख पहुंचे, जो इस यात्रा की मुख्य विश्रामस्थली है । वहां कैलाश पर्वत के उत्तरी सिरे के विराट दर्शन होते हैं ।

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी

२. कैलाश पर्वत के निकट स्थित ‘चरणस्पर्श’ का तथा ‘मानसरोवर’ का अवलोकन

ऐसी तीर्थयात्रा करना प्रत्येक यात्री के जीवन में विशेष महत्त्व रखता है; परंतु उसका ईश्वरीय कार्यकारणभाव उसे ज्ञात नहीं होता है । ऐसा ही कुछ मेरे संदर्भ में भी होनेवाला था । जिस विषय में संपूर्णतः अनभिज्ञ था । मैं हृदय से शिवजी के प्रति इसलिए कृतज्ञता व्यक्त कर रहा था कि उन्होंने मुझे इस दुर्लभ तीर्थयात्रा पर ६ बार जाने का अवसर प्रदान किया । इस बार हमारा कैलाश पर्वत की परिक्रमा का नियोजन नहीं था, इसलिए मैंने चरणस्पर्श जाना सुनिश्चित किया था । यह स्थान कैलाश पर्वत के पास है तथा वहां पहुंचना अत्यंत कठिन है; परंतु मुझे यहां २ बार पहुंचने का सौभाग्य मिला । दूसरे दिन मैं, रघुनंदन तथा एक साधक चरणस्पर्श हेतु निकल पडे । उसकी खडी चढाई १ सहस्र फुट है । उसके कारण रघुनंदन तथा अन्य साधक आधे मार्ग में रुक गए; परंतु मैं आगे चलता रहा । मेरे चढने की गति बहुत ही तीव्र थी, जिसका मुझे भी आश्चर्य हो रहा था । इससे पूर्व मैं २ बार यहां आया था । ऊपर जाते समय दिनेश मुझे मिला । (वह मेरा पोर्टर था)  उसके साथ मैं कैलाश पर्वत के चरणस्पर्श पर पहुंच गया । इससे पूर्व मैं यहां आया था; परंतु उस समय मैंने अपने साथ केवल पवित्र जल ही लिया था । इस बार पहली बार मुझे वहां की पवित्र रेत भी साथ लेने का मन हुआ । उसके उपरांत मैं कैलाश पर्वत को प्रणाम कर शीघ्र नीचे आया; क्योंकि हमें इसी दिन दारचेन वापस आना था । तिब्बती गाइड ने हमारे वाहन का प्रबंध कर रखा था । मैंने थैली में पवित्र रेत, जल तथा कुछ शिवलिंग रखे थे । उसे मैंने हमारे गाइड के पास सुरक्षित रखने के लिए सौंपा; परंतु वह उस थैली को वहीं भूल गया । उसके पश्चात उसने उसे अन्य लोगों से मंगवा लिया । ३१ जुलाई को सवेरे हमने मानसरोवर के लिए प्रस्थान किया । उस रात हमें मानसरोवर के पास ही रुकना था । हमने सरोवर में स्नान किया । उसके उपरांत मैंने वहां की भी पवित्र रेत अपने साथ ली । हमारी यात्रा पूर्ण कर हम ५ अगस्त को सकुशल काठमांडू पहुंचे ।

 

श्री. वारिद वीरेंद्र सोनी

३. हवाई अड्डे पर कार्यरत कर्मचारियों द्वारा अग्रिम सामग्री का मूल्य न लेना

७ अगस्त की सायंकाल को मुझे तथा रघुनंदन को विमान से भारत वापस आना था । सवेरे स्नान आदि कर हमने हवाई अड्डे पर जाने की तैयारी की । निकलते समय होटल में हमारी सामग्री का वजन १६ किलो से अधिक आया । यह मेरे लिए चिंता की बात थी; क्योंकि उसके लिए मुझे १२ सहस्र रुपए देने पडेंगे और मेरे पास तो केवल ३ सहस्र रुपए बचे थे । मैंने अपनी यह समस्या किसी को नहीं बताई । मैंने मन ही मन पू. गुरुदेवजी एवं भगवान शिव का स्मरण किया तथा उन्हें मेरी स्थिति बताई । उसके उपरांत हमने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को प्रणाम किया तथा उनसे आज्ञा लेकर हम हवाई अड्डे पर पहुंचे । वहां काउंटर पर एक लडकी बैठी थी । उसने पूछा, ‘‘सर, आप कहां से आ रहे हैं ?’’ मैंने उसे सहजता से बताया कि ‘हम कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा कर लौट रहे हैं ।’’ उस समय मैं अंतर्मन से पूज्य गुरुदेवजी एवं भगवान शिव का स्मरण कर रहा था । उस जगदंबा ने मुझे कुछ न पूछकर सामग्री जमा करवा ली तथा हमें ‘बोर्डिंग पास’ दिए । इसके लिए मैंने ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की । मेरे आनंद की कोई सीमा न रही । हम देहली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे । वहां से हमें जयपुर के लिए निकलना था । उसके लिए हम ‘इंडिगो’ के काउंटर पर गए । वहां हमने अपनी सामग्री जमा की । वहां सामग्री का वजन देखकर वहां के कर्मचारी नीतेश ने कहा, ‘‘आपकी सामग्री अधिक है ।’’ मैंने उससे कहा, ‘‘हम मानसरोवर यात्रा संपन्न कर आए हैं तथा इस सामग्री में वहां का पवित्र जल तथा कुछ शिवलिंग हैं ।’’ उसपर उसने कहा, ‘‘आपको उसके पैसे भरने पडेंगे ।’’ उसके उपरांत उसने हमें हमारा काठमांडू का ‘बोर्डिंग पास’ दिखाने के लिए कहा । वह दिखाने पर वह कहने लगा कि आप ३ यात्री हैं । यह सुनकर मैं अचंभित रह गया । वास्तव में हम तो दो लोग ही थे, तो यह तीसरा कौन था ? यह तो केवल भगवान शिव की लीला थी । उसने अपने सहायक को बुलाकर हमारी सामग्री जमा करवा ली । इसके लिए मैंने मन ही मन कृतज्ञता व्यक्त की । हम १४ अगस्त को जयपुर पहुंचे । जयपुर पहुंचने पर हमने पूजनीय माताजी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को संपूर्ण घटनाक्रम बताया । उसे सुनकर वे भी आश्चर्यचकित रह गईं ।

४. अयोध्या में श्रीराम मंदिर के शिलान्यास समारोह में मानसरोवर की पवित्र रेत तथा पवित्र जल का उपयोग

५ अगस्त को अयोध्या में श्रीराम मंदिर के शिलान्यास का समारोह था । उस समय मुझे लग रहा था कि ‘कुछ भी करके मुझे कैलाश मानसरोवर से लाई पवित्र रेत तथा जल लेकर इस कार्य के लिए पहुंचना चाहिए ।’ इसकी उत्कंठा प्रतिदिन बढ रही थी; परंतु यह कैसे संभव होगा, मेरी समझ में नहीं आ रहा था । मैंने अपने पुत्र मृगेंद्र को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अथवा प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क करने के लिए कहा; परंतु वह संभव नहीं हो पाया । मैंने भी अन्य पद्धति से संपर्क करने का प्रयास किया; परंतु मुझे सफलता नहीं मिली । उसके कारण अंततः मैंने पवित्र रेत तथा जल को हमारे घर में स्थित परमपूज्य गुरुदेवजी के चरणों के सामने रखा । उसके उपरांत प्रतिदिन पूजा के समय मैं यह प्रार्थना करता कि ‘किसी भी तरह इस रेत का तथा जल का उपयोग श्रीराम मंदिर की आधारशिला के कार्यक्रम में हो ।’ इसमें बहुत दिन निकल गए । अकस्मात ही ३० जुलाई २०२० को श्री. विनायक शानभाग ने मुझे दूरभाष कर बताया कि वर्तमान में वे देहली में हैं तथा जयपुर आ रहे हैं । वहां से वे अयोध्या में होनेवाले श्रीराम मंदिर के शिलान्यास समारोह के लिए जानेवाले हैं । यह सुनकर मेरे आनंद की कोई सीमा नहीं रही । भगवान ने हृदय से की गई प्रार्थना सुन ली, इसकी मुझे प्रतीति हुई । जयपुर पहुंचने पर श्री. विनायक ने मुझे मिलने के लिए बुलाया । मैं सायंकाल में पवित्र रेत एवं जल लेकर सपत्नीक अर्चना खेमका दीदी के आवास पर पहुंचा । कुछ समय विचार-विमर्श करने के उपरांत मैंने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी से उनके जयपुर आने का कारण पूछा । उन्होंने बताया, ‘‘हमें देहली से सीधे अयोध्या जाना था; परंतु अकस्मात ही मुझे लगा कि जयपुर जाकर सभी से मिलना चाहिए और उसके पश्चात अयोध्या जाना चाहिए ।’’ मैंने उन्हें बताया कि वे यहां अकस्मात नहीं आई हैं, अपितु उसके पीछे ईश्वरीय कार्य का नियोजन है । मैंने अपनी पूरी अनुभूति उन्हें बताई । वह सुनकर वे बहुत आनंदित हुईं । उनकी आंखों से भावजागृति प्रकट हो रही थी । वही स्थिति अन्यों की भी थी । हम सभी ईश्वर की कृपा की अनुभूति ले रहे थे । हमने पवित्र रेत एवं जल उन्हें सौंपा । उन्हें नमस्कार कर हम घर लौटे । हमने पिताजी को यह बात बताई, तो वे भी बहुत आनंदित हुए । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने ३ अगस्त को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर न्यास के महासचिव श्री. चंपत रायजी से भेंट कर पवित्र रेत तथा जल उन्हें सौंपा । उसका उपयोग ५ अगस्त को श्रीराम मंदिर के शिलान्यास के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया । यह तो भगवान शिव की अद्भुत लीला है । ईश्वर ने मुझे इस ईश्वरीय कार्य के लिए निमित्त बनाया । इसका स्मरण कर मैं अपनेआप को धन्य मानता हूं ।’

– श्री. वारिद वीरेंद्र सोनी, जयपुर, राजस्थान.

इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक