हिन्दुओं के प्राचीन पवित्र क्षेत्र ‘नैमिषारण्य’ की दुर्दशा !

हिन्दुओं के प्राचीन पवित्र क्षेत्र ‘नैमिषारण्य’

१. ‘उत्तर प्रदेश स्थित हिन्दुओं के क्षेत्र ‘नैमिषारण्य’ की स्थानमहिमा !

‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से आयोजित यात्रा के अंतर्गत हमें उत्तर प्रदेश के प्राचीन धार्मिक स्थल ‘नैमिषारण्य’ जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । यह स्थान पृथ्वी के महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थानों में से एक है । यह ८८ सहस्र ऋषियों की तपस्थली है । यहां मनु एवं सतरूपा ने २३ सहस्र वर्ष तप किया है । व्यासजी की कृपा से इस पवित्र स्थान पर ‘सूतों ने शौनकादि ८८ सहस्र ऋषियों को एक सहस्र वर्ष तक १८ पुराण, चार वेद तथा भागवत कथा विशद की । इसके साथ ही सूतों ने इसी स्थान पर सर्वप्रथम ‘सत्यनारायण कथा’ विशद की । इसे श्रवण करने हेतु २५२ किलोमीटर के परिसर में ८८ सहस्र ऋषि बैठे हुए थे ।

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी

२. कहां दैवी कथाओं के माध्यम से नाद के स्तर पर जगत के कल्याण हेतु चैतन्य ऊर्जा उत्पन्न करनेवाले ऋषिगण एवं महर्षिगण, तो कहां कर्णकर्कश स्वर में ध्वनियंत्र पर भजन चलाकर वहां का चैतन्य नष्ट करनेवाले तथाकथित भक्त !

वर्तमान में लोगों ने इस स्थल की स्थिति दयनीय बनाकर रख दी है । प्राचीन काल में ऋषियों एवं महर्षियों ने यहां दैवी कथाओं के माध्यम से नाद के स्तर पर जगत के कल्याण हेतु चैतन्य ऊर्जा उत्पन्न की थी । वहां वर्तमान समय में आसुरी वृत्ति के मानव उस चैतन्य को नष्ट कर रहे हैं । स्थानमहिमा के कारण इस परिसर में कथाओं तथा पुराणों का निरंतर पाठ चलता रहता है । यह पाठ बडे-बडे ध्वनियंत्रों पर अत्यंत कर्णकर्कश स्वरों में चलता रहता है । रात-देर रात भी ऊंचे स्वर में यह सब चलता रहता है । कभी-कभी तो ‘कथाकार क्या पाठ कर रहे हैं ?’, यह भी ठीक से समझ में नहीं आता । उनके साथ वाद्य भी होते हैं तथा अब तो ‘डीजे’ ध्वनियंत्र भी होता है । कथा में समाहित अनेक भजन विचित्र चालों में गाए जाते हैं । लोगों को आकर्षित करने हेतु अनेक बार इन भजनों की रचना फिल्मी गीतों की चाल पर की जाती है । कुछ लोग मदिरापान कर कथा सुनने आते हैं । यहां आनेवाले अधिकतर लोग मजे करना तथा शोर मचाने में ही मग्न होते हैं ।

३. पंचमहाभूतों के स्तर के युद्धों में यह नाद के स्तर का युद्ध होना

जिस स्थान के वातावरण में नादस्वरूप में दैवी ऊर्जा है, उसी स्थान पर इस प्रकार कर्णकर्कश स्वर में अनुचित पद्धति से देवताओं की कथाओं के पाठ तथा भजन दिन-रात चल रहे हैं । यह तो दैवी नाद एवं आसुरी नाद के मध्य का युद्ध ही है ।  पंचमहाभूतों के स्तर के युद्धों में से यह नाद के स्तर का युद्ध है । यह स्थिति केवल यहीं है ऐसा नहीं, अपितु सर्वत्र ही इस प्रकार विदारक परिदृश्य देखने को मिलता है । (‘हिन्दुओ, अब तो इस स्थिति में सुधार लाओ । अन्यथा संकटकाल में क्या ईश्वर आपकी ओर ध्यान देंगे ?’ – संकलनकर्ता)

धर्मशिक्षा के अभाव में लोग उचित कृति करना तथा उसका महत्त्व भी भूल गए हैं । ‘ऐसे धार्मिक स्थलों की पवित्रता बनाए रखना तथा वहां के चैतन्य का कैसे हमें लाभ मिलेगा’, इसके लिए प्रयासरत रहने के लिए समाजमानस में जागृति लाना आवश्यक है !’

– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ, देहली