महाकुम्भ २०२५ विशेषांक के बारे में….

इस पर्व का आध्यात्मिक लाभ, कुम्भ मेले में धर्मश्रद्धायुक्त आचरण करनेवाले श्रद्धालुओं को ही होता है । अतएव इस विशेषांक में हमारे पाठकों के लिए मुख्यरूप से कुम्भ मेले एवं कुम्भ पर्व क्षेत्र की महिमा का विवेचन किया है ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘चुनाव के समय राजनेता, ‘यह देंगे, वह देंगे’, ऐसा कहते हैं और उनमें से बहुत कम भौतिक सुख देते हैं । इसके विपरीत, संत एवं सनातन संस्था सर्वस्व का त्याग करना सिखाकर चिरंतन आनंद देनेवाली ईश्वरप्राप्ति कराते हैं ।’

संपादकीय : हिन्दू पुनरुत्थान का अमृत‘कुम्भ’ !

महाकुम्भ पर्व से, हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाकर, उन्हें निर्णायक दिशा देनेवाला हिन्दू संगठन बने, यही अपेक्षा !

यह सनातनी आस्था का ही महाकुंभ नहीं, अर्थव्यवस्था को भी देता है गति !

इस बार प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ न केवल परंपरा और आधुनिकता का मिश्रण है, अपितु अपनेआप में हर प्रकार से अद्वितीय भी है । महाकुंभ प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक धर्म, संस्कृति तथा परंपरा के साथ-साथ समाजिकता और व्यवसाय का एक बडा मंच रहा है ।

कुम्भ मेला : विश्व का सबसे बडा धार्मिक पर्व’

कुम्भ भारतीय संस्कृति में मंगल का प्रतीक है, शगुन का प्रतीक है, शोभा, सौन्दर्य एवं पूर्णत्व का भी प्रतीक है । ‘कुम्भ पर्व’ में जिस ऐतिहासिक कुम्भ का स्मरण किया जाता है, वह अमृत कुम्भ अर्थात ‘सुधा-कलश’ है ।

कुम्भ १२ : पृथ्वी पर चार और देवलोक में आठ

ज्योतिष बताता है कि देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के बराबर होते हैं । इसलिए कुम्भ भी बारह ही होते हैं, परंतु उनमें से केवल चार पृथ्वी पर होते हैं तथा शेष आठ देवलोक में होते हैं ।

महाकुम्भ मेला : क्या है इसका विज्ञान ?

भारतीय संस्कृति इस धरती पर सबसे जटिल और रंगबिरंगी संस्कृति है । यदि आप ध्यान से देखें, तो पाएंगे कि प्रत्येक पचास से सौ किलोमीटर पर लोगों के जीने की पद्धति ही बदल जाती है । एक स्थान ऐसा है जहां इस जटिल संस्कृति को आप बहुत निकट से देख सकते हैं, वह है – कुम्भ मेला ।

कुम्भ पर्व की उत्पत्ति की कथा

भगवान विष्णु ने देवताओं पर द्रवित होकर सुमेरू पर्वत की मथानी, वासुकी नाग की रस्सी बनाकर राक्षसों की सहायता से समुद्रमंथन करने का परामर्श दिया । देवताओं ने असुरों को समुद्रमंथन से प्राप्त वस्तुओं को आधा-आधा बांट लेने का प्रलोभन देकर समुद्रमंथन के लिए तैयार कर लिया ।

नागा साधुओं के विषय में विलक्षण जानकारी !

अंग्रेज अधिकारी ने वर्ष १८८८ में ब्रिटिश संसद को भेजे पत्र में लिखा था, ‘नागा साधुओं की शोभायात्रा अश्लीलता नहीं फैलाती । वह सम्पूर्णतया धर्म को समर्पित होती है । अखाडों की परम्पराओं का पालन किया जाता है ।’

अखाडे के साधु-सन्तों के विषय में विशेषतापूर्ण अनुभव

कुम्भ मेले में हठयोगी साधु भी सम्मिलित होते हैं । वहां केवल एक पैर पर खडे रहनेवाले, अखण्ड शीर्षासन करनेवाले, मौन धारण करनेवाले, केवल वायु पर जीवित रहनेवाले आदि अनेक प्रकार के हठयोगी साधु होते हैं तथा उनके दर्शन हेतु भी भक्तिमार्गी श्रद्धालु पंक्तिबद्ध खडे रहते हैं ।’