भारत का विभाजन चूक है, इसे पाकिस्तान भी स्वीकारता है ! – प.पू. सरसंघचालक मोहनजी भागवत
यहां सिंधी समाज के कार्यक्रम में वे ऐसा बोल रहे थे । इस समय राज्य के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उपस्थित थे ।
यहां सिंधी समाज के कार्यक्रम में वे ऐसा बोल रहे थे । इस समय राज्य के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उपस्थित थे ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की ३ दिवसीय बैठक का १२ मार्च से प्रारंभ हुआ । इस बैठक में संघ की शाखाओं द्वारा महिलाओं को जोडने के विषय पर चर्चा होगी ।
ब्रिटिश सरकार से पूर्व देश की ७० प्रतिशत जनसंख्या शिक्षित थी तथा उस समय बेरोजगारी भी नहीं थी । दूसरी ओर इंग्लैंड में केवल १७ प्रतिशत लोग शिक्षित थे ।
मौलाना मदनी का भाषण चलते समय ही जैन मुनि लोकेश ने उनके वक्तव्य पर तीव्र आपत्ति दर्शाई है । ‘यह अधिवेशन लोगों को जोडने के लिए आयोजित किया गया है । इसलिए ऐसे वक्तव्य की कोई भी उपयुक्तता नहीं है’, ऐसा कहते हुए वे मंच से नीचे उतर गए उनके साथ अन्य धर्मों के संत भी मंच से नीचे उतर आए ।
मैंने ‘ब्राह्मण’ शब्द का नहीं, ‘पंडित’ शब्द का उच्चारण किया था । जो बुद्धिमान होता है, उसे ‘पंडित’ कहते हैं, ऐसा स्पष्टीकरण प.पू. सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने ब्राह्मणों के विषय में उनपर लगाए गए खोटे आरोप पर किया है ।
मुसलमानों को अपनी यह अहंकारी धारणा छोड़ देनी चाहिए कि वे सर्वश्रेष्ठ हैं । उन्हें (मुसलमानों को) ‘हम एक उच्च वंश के हैं, हमने पहले भी इस देश पर शासन किया है और फिर से करेंगे , केवल हमारी पद्धति ही योग्य तथा अन्य निम्न हैं, हम अलग हैं और इसलिए दूसरों के साथ नहीं रह सकते, यह दुराग्रह छोडना होगा ‘।
भारत में रहने वाले सभी नागरिक अनिवार्य रूप से हिंदू हैं । भारत में रहने से भी वे हिंदू हैं । आज उनकी (अहिंदुओं) पहचान जो भी है, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि यह भारत की स्वीकृति की संस्कृति के कारण है ।
भारत को मातृभूमि माननेवाले, यहां की संस्कृति एवं विविधता का सम्मान करनेवाले, किसी भी धर्म, संस्कृति, भाषा एवं भोजन प्रणाली का अवलंबन करनेवाले एवं इस विचारधारा के लोगों के लिए काम करनेवाले सभी लोग हिन्दू हैं ।
विदेशी आक्रमणों के कारण आयुर्वेद का प्रसार रुक गया था । अब आयुर्वेद को पुनः मान्यता मिल रही है । आयुर्वेद के प्रसार का समय आ गया है ।
प्रभु श्रीराम ने हमेशा ही सामाजिक एकता का मार्ग आचरण में लाया । श्रीराम ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत को एकत्र रखने का काम किया । उन्होंने समाज के प्रत्येक घटक को जोडने का प्रयास किया ।