कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार का यह ‘इतिहास’ न भूलें !
हिन्दुओं के नरसंहार का आरंभ वर्ष १९८९ में हुआ । घाटी के कश्मीरी पंडितों के सबसे बडे एवं प्रिय नेता थे टीकालाल टपलू । १४ सितंबर १९८९ को आतंकियों ने गोलियां मारकर उनकी हत्या की ।
हिन्दुओं के नरसंहार का आरंभ वर्ष १९८९ में हुआ । घाटी के कश्मीरी पंडितों के सबसे बडे एवं प्रिय नेता थे टीकालाल टपलू । १४ सितंबर १९८९ को आतंकियों ने गोलियां मारकर उनकी हत्या की ।
‘यूथ फॉर पनून कश्मीर’ ने ‘हिन्दू राष्ट्र की हुंकार, पनून कश्मीर हो साकार’ इस घोषवाक्य के साथ किया है आयोजन!
श्री. आशिष धर एक ‘मेकैनिकल एंजिनियर’ (यांत्रिकी अभियंता) तथा सामाजिक उद्यमी हैं । (सामाजिक उद्यमी केवल लाभ के लिए कार्य नहीं करते, अपितु समाज में परिवर्तन लाना उनका मुख्य उद्देश्य होता है) श्री. आशिष धर ने भारतीय ज्ञानपरंपरा में समाहित गुलामी के प्रतीकों को मिटाकर हिन्दू संस्कृति की रक्षा हेतु समर्पित अनेक मंचों को आकार दिया है ।
कश्मीरी हिन्दुओं का पुनर्वास कश्मीर में होना चाहिए, इसके लिए सरकार को पहल करनी होगी। कश्मीरी हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों पर चर्चा तो होती है, लेकिन इससे आगे बढकर हमें पुनर्वास की दिशा में काम करना होगा।
भारत की ओर से अभी तक कश्मीरी हिन्दुओं को न्याय नहीं मिला है । कश्मीरी हिन्दुओं पर हुए अत्याचार के लिए बीते ३५ वर्षों में किसी के भी विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कर कार्यवाही नहीं की गई है । यह स्थिति लज्जाजनक है !
कश्मिरी हिन्दू समुदाय स्पष्ट रिती से कहता है, ‘ओमर अब्दुल्ला अथवा उनका दल ‘नैशनल कांफेरन्स’ द्वारा हमें कोई अपेक्षा नहीं है ।
जो ब्रिटिश संसद सदस्यों को ध्यान में आता है, यह अधिकांश भारतीय जनप्रतिनिधियों के ध्यान में नहीं आता, यह जानिए !
कहीं भी हिन्दुओं पर ‘हिन्दू’ होने के कारण अत्याचार हुए, तो सभी हिन्दुओं को उसके विरुद्ध संगठित होकर आवाज उठानी चाहिए, कश्मीर का यह संस्करण टालने का यही मार्ग है !
यह वेब सीरीज एक लघुपट के समान होगी तथा इसमें विशेषज्ञ एवं पीडित हिन्दुओं के साथ कश्मीर के जिहादी आतंकवादी एवं धर्मांध मुसलमानों द्वारा हुए अत्याचारों के संबंध में किए गए वार्तालाप का समावेश है ।
‘‘सरकार अभी भी कश्मीरी हिन्दुओं का नरसंहार स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है । उसके परिणामस्वरूप बंगाल सहित भारत में जहां-जहां मुसलमानबहुल क्षेत्र है, वहां ‘कश्मीरी पैटर्न’ चलाया जा रहा है ।