ईसाई नववर्ष के दिन पाक-समर्थित जिहादी आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर में ४ कश्मीरी हिन्दुओं की हत्या कर भारत को दिखा दिया है कि ‘आप हमें मिटा नहीं सकते, हमें मिटाने की आप में शक्ति नहीं है ! भले ही हम मुट्ठीभर हों, तब भी महात्मा गांधी के देश के लिए, वहां रहनेवाले हिन्दुओं के लिए, उनकी सरकार के लिए तथा उनके संगठनों के लिए अजेय हैं ।’ यह कैसे सत्य है ?, यह भी समझना होगा । इन हत्याओं के उपरांत कश्मीर के राज्यपाल ने इस घटना की निंदा की है । इस प्रकार की निंदा सभी सरकारों के कार्यकाल में की जाती रही है । उससे भिन्न कुछ किए जाने का पहले भी कभी सुनने में नहीं आया था तथा आज भी ऐसा होते हुए दिखाई नहीं देता । हिन्दुओं का आक्रोश शांत करने के लिए मृतक हिन्दुओं के परिजनों को १० लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने की घोषणा राज्यपाल ने की है । ‘आर्थिक सहायता मिलने से हिन्दू शांत रहेंगे तथा दूसरा हिन्दू मरने के लिए तैयार रहे’, प्रत्येक घटना में राजकर्ताओं द्वारा कुछ इसी प्रकार की मानसिकता रखी जाती है’, ऐसा कहा जाए, तो उसे अतिशयोक्ति नहीं कहेंगे । इन हत्याओं के उपरांत अब सुरक्षा बल संबंधित आतंकियों की खोज करेंगे तथा उन्हें मार भी देंगे; परंतु आगे क्या ? विगत ३३ वर्षाें से इससे आगे कुछ भी तो नहीं हो रहा है । कुछ ही दिन पूर्व सरकार ने ‘वर्ष २०२२ में कितने आतंकियों को मार गिराया गया’, इसके आंकडे घोषित किए हैं । उसके अनुसार १७२ आतंकियों को मारा गया है । उससे पूर्व एक-एक वर्ष में २०० से अधिक आतंकियों को मारा गया; परंतु इतना होने पर भी कश्मीर के हिन्दू असुरक्षित ही हैं । केवल कश्मीर ही नहीं, अपितु अभी की यह घटना जम्मू के निकट राजौरी में हुई है, यह ध्यान में लेना होगा । जहां ‘जम्मू में आतंकी घटनाएं न्यून हुई हैं’, ऐसा बताया जा रहा था, तभी आतंकियों ने दिखा दिया, ‘वह कैसे झूठ है ?’
उसी प्रकार से कुछ माह पूर्व कश्मीर में हिन्दुओं को लक्ष्य कर मारा गया । एक सरकारी कर्मचारी की हत्या की गई । केंद्र सरकार द्वारा कश्मीर में नौकरी के लिए वापस लाए गए कश्मीरी हिन्दुओं ने यहां असुरक्षित वातावरण होने के कारण जम्मू क्षेत्र में उनके स्थानांतरण करने की मांग की थी; परंतु सरकार उनकी मांग स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है । इस कालावधि में हिन्दुओं की हत्याओं की अनेक घटनाएं हुई हैं । इसके कारण जम्मू-कश्मीर के हिन्दू क्षुब्ध हैं । केवल कश्मीरी हिन्दू ही नहीं; अपितु काम के लिए अन्य राज्यों से कश्मीर गए हिन्दुओं को भी लक्ष्य बनाया गया है ।
हिन्दुओं का आक्रोश !
३३ वर्ष पूर्व ही कश्मीर को हिन्दूविहीन करना आरंभ हुआ था तथा उसमें उन्हें ९९ प्रतिशत सफलता भी मिली है । विगत ३३ वर्षाें में इस स्थिति में परिवर्तन लाने में भारत के अबतक की सर्वदलीय सरकारें असफल ही रही हैं । इसके पीछे सरकारों में इच्छाशक्ति का अभाव, कठोर निर्णय लेने का अभाव, हिन्दुओं की रक्षा करने के प्रति उदासीनता, मुसलमानों का तुष्टीकरण, वोट बैंक की राजनीति ही इसके प्रमुख कारण दिख रहे हैं । ‘भाजपा की सरकार आने के उपरांत कश्मीर में जिहादी आतंकवाद एवं जिहादी मानसिकता नष्ट की जाएगी तथा वहां हिन्दुओं का पुनर्वास किया जाएगा’, कश्मीरी हिन्दुओं सहित संपूर्ण देश के धर्मप्रेमी एवं राष्ट्रप्रेमी हिन्दुओं की यह अपेक्षा थी; परंतु पिछले ८ वर्षाें में भी वह पूर्ण नहीं हुई है । इस आक्रमण से यह वास्तविकता स्पष्ट होती है । मध्य काल में केंद्र सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद ३७० हटाकर आतंकी आक्रमणों पर रोक लगाई, सैकडों आतंकियों को मार गिराया तथा उससे पत्थरबाजी की घटनाएं पूर्ण रूप से रुक गईं । मध्य में उरी एवं पठानकोट में सैन्य शिविरों पर आक्रमण किए जाने के उपरांत सरकार ने पाकिस्तान में घुसकर ‘सर्जिकल’ एवं ‘एयर स्ट्राइक’ कर आतंकियों को मार गिराया था; परंतु क्या उसके कारण आतंकवाद नष्ट हुआ ? नहीं ! क्योंकि यह ऊपरी एवं तात्कालिक कार्यवाही थी । ऐसी कार्यवाही करना तो अपेक्षित है ही; परंतु जब कोई समस्या गंभीर होती है, उस समय उसे जड से नष्ट करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास करना आवश्यक होता है । पिछली सरकारों ने विभिन्न कारणों से जो भी बडी चूकें कीं, उन चूकों को टालकर इस समस्या का समाधान करने के लिए वर्तमान सरकार को गंभीरता से प्रयास करने आवश्यक थे; परंतु कश्मीरी हिन्दुओं को भी ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं देता । उनके द्वारा हो रहे आंदोलन एवं उनके आक्रोश से उनके मन में भी यही क्षोभ दिखाई दे रहा है । इस पर विचार होना आवश्यक है ।
जिहादी मानसिकता
कश्मीर का आतंकवाद जिहादी मानसिकता के कारण उत्पन्न हुआ है । उसके पीछे कार्यरत जिहादी मानसिकता नष्ट करने के लिए कभी भी प्रयास नहीं हुए; क्योंकि ऐसी कोई मानसिकता होती है, अब तक की किसी भी सरकार ने यह स्वीकार नहीं किया । उसे स्वीकार न करने के पीछे वोट बैंक की ही राजनीति रही है, यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है । इसके कारण यह आतंकवाद पूर्णतया अर्थात जड से नष्ट करने का प्रयास नहीं हुआ है; जिसे करना आवश्यक है । उसके लिए कठोर बनने की आवश्यकता है । अभी तक आतंकियों को जिहादी मानसिकतावाले स्थानीय नागरिकों से सभी प्रकार की सहायता मिलती रही है । आतंकियों की अंत्येष्टि में सहस्रों कश्मीरी मुसलमानों का सम्मिलित होना, उसी का प्रमाण है । इस मानसिकता पर प्रहार करने का प्रयास नहीं हुआ, उसके कारण जिहादी आतंकवाद भी नष्ट नहीं हो सका है । पिछले ३३ वर्षाें में इस संघर्ष में अनेक आतंकी युवकों के मारे जाने के उपरांत भी सहस्रों कश्मीरी मुसलमान युवक आतंकी संगठनों में भर्ती होते रहे तथा आज भी हो रहे हैं, यही कटु वास्तविकता है । जब तक यह जिहादी मानसिकता तथा जिहादी देश पाकिस्तान को नष्ट नहीं किया जाता, तब तक कश्मीर में हिन्दुओं का वंशसंहार होता रहेगा, इसे स्वीकार करना ही पडेगा !