हमें जिन बातों की जानकारी होती है, उसे परिपूर्ण मानकर हम उनके आधार पर कुछ निष्कर्ष निकालते रहते हैं अथवा उस विषय में स्वयं का मत बना लेते हैं, तथापि उन्हीं बातों में ऐसे अनेक पक्ष होते हैं, जिनके विषय में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं होता । कुछ दिन पूर्व ही गोवा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की जो आलोचना की गई, उससे पुनः एक बार यह रेखांकित हुआ । इजरायल के वामपंथी विचारक निर्माता नदव लैपिड ने अत्यंत भडकाऊ वक्तव्य दिया कि यह फिल्म अश्लील एवं अतिशयोक्तिपूर्ण है ! उससे अब संपूर्ण देश में उनकी आलोचना की जा रही है ।
आप सभी ने ‘जिहाद’ शब्द सुना ही होगा । ‘जिहाद की घोषणा करना तथा उसके अनुसार कार्य करना निश्चित रूप से क्या होता है ?’, इसकी जानकारी लेनी हो, तो १९९० के दशक में इस्लामी आतंकियों ने कश्मीरी हिन्दुओं का जो वंशविच्छेद किया, उसे देखना पडेगा । उस समय इस्लामी आतंकियों ने असंख्य हिन्दुओं की हत्याएं कीं, सहस्रों हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार किए, अनेक हिन्दुओं को कश्मीर घाटी से भगा दिया तथा उनके घर-बार, संपत्ति एवं भूमि खुलेआम हडप ली । इतना होने पर भी इस ‘धर्मनिरपेक्ष’ भारत में किसी ने इस घटना के विषय में एक शब्द भी नहीं कहा । तत्कालीन केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर शांत रही । तथाकथित मानवतावादी, वामपंथी, कांग्रेसी, आधुनिकतावादी, बुद्धिजीवी आदि सभी मौन रहे । इसके फलस्वरूप ४.५ लाख कश्मीरी हिन्दुओं को अपनी भूमि छोडकर पलायन करना पडा । आज भी उनका कोई त्राता नहीं है, यह वास्तविकता है । इसे कहते हैं जिहाद ! ३२ वर्ष उपरांत इन अत्याचारों पर कुछ मात्रा में आवाज उठाई, तो वह निर्देशक विवेकरंजन अग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने ! यहां बताने का तात्पर्य यही है कि यह फिल्म हॉलीवुड, बॉलीवुड आदि जगमगाहट में अंतर्भूत मनोरंजन करनेवाली फिल्म नहीं थी; अपितु लाखों हिन्दुओं की भावनाएं प्रकट करनेवाली थी । उसके कारण लाखों हिन्दुओं ने यह फिल्म देखी । यह फिल्म देखने के उपरांत अनेक हिन्दुओं को उनके धर्मबंधुओं पर किए गए अमानवीय अत्याचारों की जानकारी मिली । ऐसा होते हुए भी नदव लैपिड ने किस मुंह से इस फिल्म को ‘अश्लील’ एवं ‘अतिशयोक्तिपूर्ण’ कहा ? उन्हें भारत के विषयों में हस्तक्षेप करने का क्या अधिकार ?, उनसे ये प्रश्न पूछे जाने चाहिए । लैपिड इस फिल्म महोत्सव में दिखाई जानेवाली फिल्मों का परीक्षण करनेवाले समूह के प्रमुख अर्थात ‘ज्यूरी’ थे । इसके साथ ही वे इजरायल के फिल्म निर्माता भी हैं । इस क्षेत्र के विख्यात व्यक्ति को हिन्दुओं पर किए गए आघातों के विषय पर आधारित घटनाएं ‘अश्लील’ एवं ‘अतिशयोक्तिपूर्ण’ लगती हों, तो क्या वे ‘इस फिल्म के विषय में अपना निरीक्षण रखते समय होश में थे ?’, मन में यह प्रश्न उठे बिना नहीं रहता ।
लैपिड ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर अपनी प्रतिक्रिया ऐसे ही सहजता से व्यक्त नहीं की है । उसकी ओर गंभीरता से देखा जाए, तो उससे जुडे हिन्दूद्वेष के अंतरराष्ट्रीय तार बडी सहजता से दिखाई देते हैं । ‘द कश्मीर फाइल्स’ का विरोध करते हुए लैपिड वही भाषा बोल रहे थे, जो भारत के आधुनिकतावादी, बुद्धिजीवी, वामपंथी आदि गुट बोलते रहते हैं । इसीलिए इन सभी की भांति लैपिड के द्वारा ‘द कश्मीर फाइल्स’ का विरोध करना कोई संयोग नहीं हो सकता । इसी कारण इस लेख के आरंभ में ‘अनेक बातों के पीछे कार्यरत पक्ष हमें ज्ञात नहीं होते हैं’, ऐसा कहा गया है । अनेक घृणित एवं गंदी फिल्में लैपिड को ‘अश्लील’ नहीं लगतीं; परंतु कश्मीर फाईल्स उन्हें वैसी लगती है, इसी से सबकुछ समझ में आता है !
सरकारी मंच से हिन्दूविरोध !
दुर्भाग्यजनक बात यह है कि जिस मंच से लैपिड ने हिन्दूविरोध किया, अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का वह मंच सरकार का ही था । इजरायल के भारत के राजदूत नाओर गिलोन ने लैपिड के हिन्दूद्वेषी वक्तव्यों की तत्काल निंदा कर क्षमायाचना की । कोई भी ऐरा-गैरा हमारे देश में आता है तथा हिन्दुओं की भावनाएं आहत कर चला जाता है । इसमें आश्चर्य यह कि यहां पर कोई भी उस विषय में कुछ नहीं बोलता; हिन्दुओं की भावनाएं इतनी कुंद हो चुकी हैं । सरकारी स्तर की एक अन्य खेदजनक बात यह है कि लैपिड जैसे हिन्दूद्वेषी पृष्ठभूमिवाले व्यक्ति को ‘ज्यूरी’ के रूप में किसने और क्यों चुना ?; उसका नाम सामने आना चाहिए । इस चयन के मापदंड क्या थे ?, यह भी समझना महत्त्वपूर्ण है । क्या ऐसा व्यक्ति कभी संतुलित पद्धति से फिल्मों का परीक्षण कर सकेगा ? लैपिड ने यह हिन्दूद्वेषी विषवमन करने के उपरांत वक्तव्य दिया, ‘मैं यहां अपनी भावनाएं खुले मन से रख सकता हूं !’ संक्षेप में कहा जाए, तो एक ईसाई व्यक्ति हिन्दूबहुल भारत में आकर हिन्दुओं के विरुद्ध बडी सहजता से विषवमन कर चला जाता है; परंतु तब भी आधुनिकतावादी एवं विदेशी मानवाधिकार संगठन हिन्दुओं को ही तालिबानी प्रमाणित करते हैं । लैपिड क्या सउदी अरब, पाकिस्तान अथवा अन्य इस्लामी देशों में जाकर इस प्रकार से इस्लामविरोधी वक्तव्य देने का साहस दिखाते ? यदि दिखाते, तो कदाचित वे वहां से वापस भी नहीं जा सकते थे ।
लैपिड का हिन्दूद्वेष ही ‘अतिशयोक्तिपूर्ण !’
वास्तव में देखा जाए तो ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म सत्य इतिहास पर आधारित है । तो ऐसी फिल्म का विरोध करना क्या इतिहास का दमन नहीं है ? अन्य समय पर ‘इतिहास का दमन होता है’ का रोना रोनेवाले लैपिड प्रवृत्ति के लोग ही ‘द कश्मीर फाइल्स’ का विरोध कर इतिहास का दमन करते हैं, इसे ध्यान में लेना होगा । लैपिड ने हिन्दुओं को चोट पहुंचाई; इसके कारण आधुनिकतावादी, वामपंथी, कांग्रेसी, धर्मांध, बुद्धिजीवी आदि लोगों में आनंद का उबाल आ रहा है । महाराष्ट्र के आव्हाड जैसे जनप्रतिनिधि तो खुलेआम लैपिड का पक्ष ले रहे हैं । इससे ‘द कश्मीर फाइल्स’ नहीं, अपितु लैपिड का हिन्दूद्वेष ही ‘अतिशयोक्तिपूर्ण’ था, यही सत्य है !