सनातन की संत श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

प्रत्येक कर्म को नाम से जोडें, तो वह कर्मयोग बन जाता है । नामजप करनेवाले मन को भाव के दृश्य में रमा दिया जाए, तो वह भक्तियोग और मन एवं बुद्धि नामजप के साथ चलने लगे, तो वह ज्ञानयोग होता है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘हिन्दू धर्मग्रंथों में ज्ञान की अनमोल धरोहर है । उनमें जीवन की सभी समस्याओं के उपाय दिए हैं । तब भी आज हिन्दू पश्चिमी विचारधारा और तकनीक के माध्यम से अपने जीवन की समस्याएं दूर करने के प्रयत्न करते हैं ।’

सीधे ईश्वर से चैतन्य और मार्गदर्शन ग्रहण करने की क्षमता होने से आगामी ईश्वरीय राज्य का संचालन करनेवाले सनातन संस्था के दैवी बालक !

सनातन संस्था में कुछ दैवी बालक हैं । उनका बोलना आध्यात्मिक स्तर का होता है । आध्यात्मिक विषय पर बोलते हुए उनके बोलने में ‘सगुण-निर्गुण’, ‘आनंद, चैतन्य, शांति’ जैसे शब्द होते हैं । ऐसे शब्द बोलने के पूर्व उन्हें रुककर विचार नहीं करना पडता ।

परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

अनेक लोगों को ‘पैतृक संपत्ति’ अर्थात घर, पैसे इत्यादि मिलते हैं । हम पांचों भाईयों के संदर्भ में हमें प्राप्त पैतृक संपत्ति अर्थात ‘माता-पिता ने किए संस्कार और साधना की रुचि ।’ व्यवहारिक वस्तुओं की तुलना में यह संपत्ति अनमोल है ।

समर्पित जीवन जीनेवाली और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति उत्कट भाव से युक्त बेळगांव की श्रीमती विजया दीक्षित बनीं सनातन की ११३ वीं व्यष्टि संत !

श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी ने पू. दीक्षितजी को पुष्पहार पहनाकर और भेंटवस्तु देकर उनका सम्मान किया, साथ ही जन्मदिन के निमित्त उनकी आरती भी उतारी ।

६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद) के स्वर में ध्वनिमुद्रित किया गया ‘ॐ निर्विचार’ नामजप सुनने के प्रयोग में सम्मिलित साधकों को हुए कष्ट और प्राप्त विशेषतापूर्ण अनुभूतियां

मन निर्विचार करने हेतु स्वभावदोष और अहं का निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि चाहे कितने भी प्रयास किए, तब भी मन कार्यरत रहता है, साथ ही किसी देवता का अखंड नामजप भी किया, तब भी मन कार्यरत रहता है और मन में भगवान की स्मृतियां, भाव इत्यादि आते हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

पूर्व काल में सभी साधना करते थे, इसलिए दूसरों से कैसे बात करें , यह उन्हें सिखाना नहीं पडता था । बचपन से ही यह आत्मसात रहता था ; परंतु अब प्रत्येक को यह सिखना पडता है ! – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

प्रीति, भाव एवं गुरु पर अटल श्रद्धा से युक्त एसएसआरएफ के फ्रांस की साधिका श्रीमती योया सिरियाक वाले (आयु ४१ वर्ष) समष्टि संतपद पर विराजमान !

पू. (श्रीमती) योया वालेजी का सम्मान उनके संत भाई पू. देयान ग्लेश्चिचजी ने किया एवं कु. अनास्तासिया वाले का सत्कार उसके मामा, अर्थात पू. देयान ग्लेश्चिचजी ने ही किया ।

लगन से सेवा कर श्री गुरु का मन जीतनेवाली कु. दीपाली मतकर (आयु ३३ वर्ष) सनातन के ११२ वें समष्टि संतपद पर विराजमान !

समष्टि साधना की तीव्र लगन, साधकों की आध्यात्मिक प्रगति की लगन रख निरंतर साधना में उनकी मां समान सहायता करना एवं श्रीकृष्ण के प्रति गोपीभाव आदि गुण कु. दीपाली मतकर में हैं ।

सीधे ईश्वर से चैतन्य और मार्गदर्शन ग्रहण करने की क्षमता होने से आगामी ईश्वरीय राज्य का संचालन करनेवाले सनातन संस्था के दैवी बालक !

सनातन संस्था में कुछ दैवी बालक हैं । उनका बोलना आध्यात्मिक स्तर का होता है । आध्यात्मिक विषय पर बोलते हुए उनके बोलने में ‘सगुण-निर्गुण’, ‘आनंद, चैतन्य, शांति’ जैसे शब्द होते हैं । ऐसे शब्द बोलने के पूर्व उन्हें रुककर विचार नहीं करना पडता ।