परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी

     ‘सच्चिदानंद ईश्वर की प्राप्ति कैसे करें, यह अध्यात्मशास्त्र बताता है । इसके विपरीत ‘ईश्वर हैं ही नहीं’, ऐसा कुछ विज्ञानवादी अर्थात बुद्धिप्रमाणवादी चीख-चीखकर कहते हैं !’

गुरु की आज्ञा का पालन करने का महत्त्व !

     ‘जब शिष्य गुरु की बात सुनने का अभ्यस्त हो जाता है, तब शिष्य ईश्वर की बात सुनते है । ऐसा होने के कारण ऐसे शिष्य को ही ईश्वर दर्शन देते हैं । इसलिए वे बुद्धिप्रमाणवादियों को दर्शन नहीं देते !’

आयुर्वेद का महत्त्व !

     ‘पूर्वकाल में आयुर्वेद के कारण भी संसार में सर्वत्र भारत का नाम था । आगामी तृतीय विश्वयुद्ध के काल में औषधियां तथा डॉक्टर उपलब्ध नहीं होंगे । उस समय भारत को छोडकर अन्य देशों के नागरिकों के सामने ‘रोगग्रस्त रहना अथवा मरना’, इसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होगा । इसके विपरीत भारत में औषधीय वनस्पति एवं उससे संबंधित थोडी-बहुत जानकारी रखनेवाले प्रत्येक गांव में हैं । इसलिए रोगियों पर थोडे-बहुत उपचार अवश्य होंगे ।’

ऋषि-मुनियों का महत्त्व

     ‘स्वतंत्रता से लेकर अब तक के कितने राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों के नाम कितने लोगों को ज्ञात हैं ?’ इसके विपरीत ऋषि-मुनियों के नाम सहस्त्रों वर्षों से स्मरणीय हैं ।

पश्चिमी शोध कार्य बच्चों का खेल है !

     ‘किसी व्यक्ति के जीवन में कोई घटना क्यों होती है ?, साथ में अनिष्ट शक्ति, सात्त्विकता आदि शब्द भी जिन्हें ज्ञात नहीं; ऐसा पश्चिमी शोधकार्य सतही है, अर्थात बच्चों का खेल है । हिन्दू ऐसे पश्चिम का अनुकरण करते हैं, यह हास्यास्पद है ।’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले