किसी भी ‘पैथी’ का ‘स्व-उपचार’ न करें !
एक घटना मथुरा में हुई । एक ३२ वर्षीय नवयुवक ने पेटदर्द के इलाज के लिए स्वयं अपनी ही शस्त्रक्रिया (सर्जरी) कर ली !
एक घटना मथुरा में हुई । एक ३२ वर्षीय नवयुवक ने पेटदर्द के इलाज के लिए स्वयं अपनी ही शस्त्रक्रिया (सर्जरी) कर ली !
विगत कुछ वर्षाें में पुणे के वैद्य दिलीप कुलकर्णी तथा अन्य कुछ आयुर्वेदाचार्याें ने पंचगव्य चिकित्सा एवं ओजोन का कैंसर, मधुमेह, चर्मरोग तथा तंत्रिका तंत्र की बीमारियों के उपचार के लिए सफलतापूर्वक उपयोग किया है ।
आपको धूप से कितना कष्ट होता है तथा स्वयं की आयु के अनुसार आपके लिए निम्न सूचनाएं उपयुक्त सिद्ध हो सकती हैं । वर्तमान समय में हो रही धूप सभी को कुछ अधिक ही कष्ट दे रही है, यह ध्यान में लेकर यहां कुछ सरल सूचनाएं दे रहे हैं
पंचकर्म चिकित्सा लेने पर दोष बाहर निकलने के कारण आनेवाली अशक्तता उचित है । उसका कुछ समय के लिए आना तथा उसके उपरांत शरीर में हल्कापन, बीमारी का नाश तथा स्वास्थ्यलाभ अपेक्षित है ।
‘आईटी’ क्षेत्र में कार्यरत लोग वैश्विक शोधकार्य अथवा कुल मिलाकर स्वास्थ्य की स्थिति के संदर्भ में अच्छी मात्रा में जागृत रहते हैं । ‘लाक्षणिक स्वास्थ्यलाभ’ तथा ‘बीमारीमुक्त होना’, इनमें अंतर उन्हें समझ में आता है ।
दिन-रात स्क्रीन के प्रखर प्रकाश के सामने रहने से उनकी आंखों को कष्ट हो सकता है । इसीलिए इन कृत्रिम; परंतु घातक किरणोत्सर्गीय गर्मी से आंखों की रक्षा करना आवश्यक होता है ।
‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।’ अर्थात ‘शरीर धर्माचरण का प्रथम साधन है ।’ शरीर स्वस्थ हो, तो साधना में शारीरिक समस्याएं नहीं आतीं । शरीर को सात्त्विक रखने से साधना में तीव्रगति से प्रगति होती है । ‘शरीर को सात्त्विक कैसे रखना चाहिए ?’, यह एलोपैथी नहीं, अपितु आयुर्वेद सिखाता है ।
मानवीय जीवन का सर्वांगीण विचार करनेवाला तथा सफल, पुण्यमय, दीर्घ एवं स्वास्थ्यमय जीवन कैसे व्यतीत करना चाहिए ?, इसका मार्गदर्शन करनेवाला शास्त्र है आयुर्वेद ! अपना स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए सभी को आयुर्वेद में दिए स्वास्थ्य संबंधी नियम, दिनचर्या एवं ऋतुचर्या को समझ लेना आवश्यक है ।
आयुर्वेद तो सहस्रों वर्ष से चला आ रहा है; परंतु उसके सिद्धांत आज भी अचूकता से लागू होते हैं; इसीलिए आयुर्वेद चिरंतन है । इस लेख में हम समझ लेंगे कि ‘हमारी दिनचर्या आयुर्वेद के अनुसार कैसी होनी चाहिए ? तथा वह वैसे क्यों होनी चाहिए ?’
शरीर के विभिन्न घटकों के कारण हो रही सूजन अथवा सूजन संबंधी होते जा रहे ‘इंफ्लेमेट्री’ (क्षोभजन्य) परिवर्तन जैसे लक्षण बहुत ही सामान्यरूप से दिखाई दे रहे हैं । उसके निम्न कारण हैं