साधको, जिन पर स्वयं की सेवाओं का दायित्व है, उन साधकों को समझो !

साधकों ने भी ‘हम स्वयं उत्तरदायी साधक हैं’, इस भूमिका में जाकर विचार किया, तो उन्हें उन साधकों को समझना सरल होगा, उनकी समस्याएं भी ध्यान में आएंगी तथा उनके प्रति एक प्रकार की नकारात्मक अथवा कडवाहट की भावना अल्प होने में सहायता मिलेगी ।

आध्यात्मिक कष्टों को दूर करने हेतु उपयुक्त दृष्टिकोण

कभी-कभी कष्ट की तीव्रता बहुत बढ जाने से नामजप करते समय बार-बार ध्यान विचलित होता है तथा उसे भावपूर्ण करने का चाहे कितना भी प्रयास करें, तब भी वह भावपूर्ण नहीं हो पाता ।

आध्यात्मिक कष्टों को दूर करने हेतु उपयुक्त दृष्टिकोण

सनातन का ग्रंथ ‘आध्यात्मिक कष्टों को दूर करने हेतु उपयुक्त दृष्टिकोण’ का कुछ भाग १६ से ३० सितंबर के अंक में पढा । आज आगे के दृष्टिकोण देखेंगे ।

सनातन का लघुग्रंथ : आध्यात्मिक कष्टों को दूर करने हेतु उपयुक्त दृष्टिकोण

साधक कष्टों में भी नामजप, भावजागृति के प्रयास अथवा सेवारत रहने का प्रयास करें । इसके कारण दुख भी प्रतीत नहीं होगा तथा साधना भी होगी ।

साधकों, स्वयं की सेवाओं के दायित्ववाले साधकों को समझ लें !

दायित्ववाले साधकों ने यदि हमें बताई गई सेवाओं की समीक्षा की तथा साधना के प्रयासों के विषय में हमें निरंतर बताया, तो हमने इन सभी बातों को साधना की दृष्टि से स्वीकार कर उस दिशा में प्रयास किए, तो हमारी ही आध्यात्मिक प्रगति शीघ्र होगी ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की सादगी एवं सरलता !

वर्ष २०१७ में मैंने एक बार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी को सुझाया था, आपका स्थान सभी से भिन्न है । वह अलग ही होना और दिखाई भी देना चाहिए । क्या हम सभी आपके नाम के पहले भिन्न उपाधि लगाएं ?’ इस पर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी ने कहा, ‘‘अभी उसका विचार नहीं करना है ।’’

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु ‘आपातकाल से पूर्व ग्रंथों के माध्यम से अधिकाधिक धर्मप्रसार’ होने के उद्देश्य से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का संकल्प कार्यरत हो गया है । अतः उनकी अपार कृपा प्राप्त करने के लिए इस कार्य में पूर्ण लगन से सम्मिलित हों !

धर्मप्रसार का कार्य होने में ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति एवं क्रियाशक्ति, इनमें से ज्ञानशक्ति का योगदान सर्वाधिक है । ज्ञानशक्ति के माध्यम से कार्य होने हेतु सबसे प्रभावी माध्यम हैं ‘ग्रंथ’ !

साधना के विषय में उपयुक्त दृष्टिकोण !

‘साक्षित्व की अवस्था विलक्षण विलोभनीय है । यहां शुद्ध विश्राम है तथा परम विश्राम है । विभिन्न योनियों से भटककर परिश्रांत बना ऐसा जीव, जिस समय इस साक्षित्व की दशा को प्राप्त होता है, उस समय उसका संसार भ्रमण रुक जाता है

अतीत में हुई चूकों से व्यथित न हों, अपितु अच्छा भविष्य बनाने हेतु तत्पर हों !

अतीत में जो कुछ भी चूकें हुईं, सो हुईं; परंतु अब उन चूकों को सुधारना संभव हो, तो उन्हें तत्परता से सुधारें, पहले हुईं चूकें पुनः न हों; इस हेतु तत्परता से प्रयास भी करें, ‘स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया’ अच्छे से करें । इस प्रकार प्रयास आरंभ करने से मन सकारात्मक होकर हम आनंदित रहते हैं।’

‘संयम रखकर सफलता की प्रतीक्षा करना’ तपस्या ही है !

आज की अंधकारभरी रात के गर्भ में ही कल का उषःकाल छिपा होता है । हमने यदि दृढतापूर्वक उस उषःकाल की प्रतीक्षा की, तभी जाकर हमें साधना के आगे के प्रयासों का भी मार्ग दिखाई देने लगता है । अतः साधक श्रद्धा एवं संयम रखकर साधना में अग्रसर रहें ।