हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा उत्तर भारत में ‘हिन्दू नववर्ष’ के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रम संपन्न एवं सनातन संस्था द्वारा ग्रंथ-प्रदर्शनी का आयोजन !

इस कार्यक्रम में ‘हिन्दू नववर्ष’ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को क्यों मनाया जाता है ? इस दिन ब्रह्मध्वजारोहण क्यों किया जाता हैे ? ब्रह्मध्वजारोहण की उचित पद्धति’, साथ ही अन्य अध्यात्मशास्त्रीय जानकारी दी गई ।

हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा ‘गुडी पडवा’ विषय पर ‘ऑनलाइन’ प्रवचन संपन्न !

वर्तमान में पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण कर सर्वत्र १ जनवरी को नया वर्ष मनाया जाता है । देखा जाए तो, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही हिन्दुओं का नववर्ष है । ब्रह्मदेव ने इसी दिन ब्रह्मांड की निर्मिति की थी । इसी दिन से सत्ययुग का प्रारंभ हुआ, तथा इसी दिन से हिन्दू संस्कृति की कालगणना का आरंभ हुआ ।

नववर्षारंभ दिन का संदेश

हिन्दुओ, चैत्र प्रतिपदा इस ‘युगादि तिथि’ को नववर्ष के प्रारंभ के रूप में मान्यता मिलने के लिए शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और राजनैतिक प्रयासों की पराकाष्ठा कीजिए और भारत में ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित कीजिए !

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सात्त्विक वातावरण में ब्रह्मध्वज पूजन कर नववर्ष का स्वागत करना आध्यात्मिक दृष्टि से लाभदायक !

‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ और सूक्ष्म चित्रों के माध्यम से किए अध्ययन तथा सम्मिलित साधकों के व्यक्तिगत अनुभव से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय पद्धति से ब्रह्मध्वज पूजन कर नववर्षारंभ मनाना आध्यात्मिक दृष्टि से लाभदायक है तथा पश्चिमी पद्धति से नववर्षारंभ मनाना हानिकारक है ।

हिन्दू धर्मशास्त्र की रूढि-परंपराओं के पीछे के वैज्ञानिक कारण

माथे पर दोनों आंखों के मध्य जिस स्थान पर तिलक लगाया जाता है, वह स्थान प्राचीन काल से मानवी शरीर का महत्त्वपूर्ण नियंत्रण केंद्र समझा जाता है । तिलक लगाने से शक्ति का लय टाला जाता है । भ्रूमध्य पर लाल रंग का तिलक लगाने से शरीर में ऊर्जा टिकी रहती है और विविध स्तरों पर एकाग्रता नियंत्रित होती है ।

३१ दिसंबर को होनेवाली अप्रिय घटनाएं रोकने के लिए हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से उत्तर भारत, पूर्व एवं पूर्वाेत्तर भारत के विविध राज्यों में अभियान !

अंग्रेजी कालगणना में कई त्रुटियां हैं; उसके कारण हमें सृष्टि के साथ जोडकर रखनेवाली हमारी प्राचीन गौरवशाली कालगणना के अनुसार नववर्ष का स्वागत करना चाहिए । इसलिए हम नववर्ष को हिन्दू संस्कृति के अनुसार गुडी पडवे के दिन मनाने का संकल्प लेंगे ।

भारतियों, पश्चिमी संस्कृति अनुसार १ जनवरी को नहीं, अपितु चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही नववर्षारंभ मनाएं !

चैत्र शुक्ल १ को आरंभ होनेवाला नए वर्ष का कालचक्र, विश्व के उत्पत्ति काल से संबंधित होने से सृष्टि में नवचेतना का संचार होता है । इसके विपरीत, ३१ दिसंबर की रात को १२ बजे आरंभ होनेवाले नए वर्ष का कालचक्र विश्व के लयकाल से संबंधित होता है ।

नवसंवत्स‍र निमित्त संदेश

नवसंवत्‍सर आरंभ अर्थात चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा अथवा गुडी पडवा हिन्‍दुओं का वर्ष आरंभ है । यह युगादि तिथि शास्‍त्र अनुसार साढे तीन मुहूर्तों में से एक है । इसलिए इस दिन शुभ कार्य किए जाते हैं अथवा कार्य का नया संकल्‍प किया जाता है ।

चैतन्‍यदायी ब्रह्मध्वजा !

तंत्रग्रंथ के ‘गणेशयामल’ नामक तंत्रग्रंथ में ‘अजान लोक में नक्षत्र लोक के (कर्मदेव लोक के)२७ नक्षत्रों से निकली तरंगों में से प्रत्‍येक के ४ चरण (विभाग) बनते हैं तथा पृथ्‍वी पर २७ x ४ = १०८ तरंगें आती हैं ।’ उनके विघटन से यम, सूर्य, प्रजापति एवं संयुक्‍त, ऐसी ४ तरंगें बनती हैं । 

गुडी पडवा के दिन बनाई जानेवाली सात्त्विक रंगोली

जिस भाव से ब्रह्मध्‍वज की पूजा जाती है, उसी भाव से उसे उतारना चाहिए, तब ही जीव को चैतन्‍य मिलता है । मीठे पदार्थ का भोग लगाकर और प्रार्थना कर ध्‍वजा उतारनी चाहिए ।