हिन्दू धर्म संसार का एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसमें क्रूरता का इतिहास नहीं है !

‘धर्म एक ही है, वह है हिन्दू धर्म । हिन्दू धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों का (पंथों का) इतिहास देखें, तो उनमें विविध काल में की गई लाखों हत्याएं, क्रूरता, बलात्कारों, जीते हुए प्रदेश के स्त्री-पुरुषों को गुलाम बनाकर बेचने की सहस्रों प्रविष्टियां हैं । हिन्दू धर्म अनादि काल से अस्तित्व में है परंतु हिन्दू धर्म के इतिहास में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है ।’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण विवाद निर्माण करनेवालों ने हिन्दुओं में भेदभाव उत्पन्न किया । इस कारण हिन्दुओं और भारत की स्थिति दयनीय हो गई है । अतः भेदभाव करनेवाले राष्ट्रद्रोही एवं धर्मद्रोही हैं !

धर्मकार्य की लगन तथा हिन्दू जनजागृति समिति एवं सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कार्य के प्रति अपार आदर रखनेवाले देहली के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन !

अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन जी अधिवेशन अथवा अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में भगवान श्रीकृष्ण तथा सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी को प्रणाम कर ही अपना भाषण आरंभ करते हैं । उनकी गुणविशेषताएं यहां दी हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा हिन्दुत्वनिष्ठों को किया गया अमूल्य मार्गदर्शन 

हिन्दू जनजागृति समिति का मूल उद्देश्य हिन्दुओं को धर्म की शिक्षा देना, राष्ट्र एवं धर्म पर मंडरा रहे विभिन्न संकटों के प्रति हिन्दुओं को जागृत करना तथा हिन्दुओं का संगठन करना है ।

साधको, ‘मैं भोजन कर आता हूं’, ऐसा न कहकर ‘मैं महाप्रसाद लेकर आता हूं’, ऐसा कहें !

अन्न पूर्णब्रह्म होता है । ‘मैं महाप्रसाद लेकर आता हूं’, ऐसा कहने से हमारे मन में अन्न के प्रति भाव उत्पन्न होकर आध्यात्मिक स्तर पर हमें उसका लाभ होता है ।

भीषण आपातकाल में टिके रहने हेतु प्रत्येक व्यक्ति को नामजप करना आवश्यक !

अब आपातकाल चल रहा है; इसलिए नामजप करना आवश्यक है । वाहन चलाते समय हमारा नामजप होना चाहिए । उससे हमारे साथ होनेवाली दुर्घटना अथवा कष्ट की तीव्रता अल्प होगी अथवा वह टल सकेगी ।

दिशाहीन बुद्धिवादी एवं आधुनिकतावादी !

‘अंधे की बात मानकर उसके पीछे चलनेवाले जिस प्रकार गड्ढे में गिरते हैं, उसी प्रकार बुद्धिवादियों एवं आधुनिकतावादियों का है । वे दिशाहीनता के कारण स्वयं गड्ढे में गिरते हैं और उनके साथ-साथ उनके पीछे चलनेवाले भी गड्ढे में गिरते हैं ।’

संतान को साधना न सिखाने का परिणाम !

‘वृद्धावस्था में संतान ध्यान नहीं देती, ऐसा कहनेवाले वृद्धजनों, आपने संतान पर साधना के संस्कार नहीं किए, इसका यह फल है । इसलिए संतान के साथ आप भी उत्तरदायी हैं !’

व्यवहार एवं अध्यात्म में भेद !

‘व्यवहार में पैसे मिलने पर व्यक्ति अपने पास रखता है; परंतु अध्यात्म में ईश्वर का प्रेम मिलने पर संत वह प्रेम सभी में बांटते हैं !’

कृतघ्न युवक-युवतियां !

‘जिन माता पिता ने जन्म दिया और छोटे से बडा किया, उनके बुढापे में अनेक कृतघ्न युवक- युवतियां उनका ध्यान नहीं रखते । माता-पिता का ध्यान न रखनेवाले क्या कभी भगवान को प्रिय होंगे ?