सामाजिक विवाह समारोह देवालय के बाहर एवं धार्मिक विवाह समारोह देवालय में करें ! : ‘पूर्वकाल में हिन्दुओं के विवाह समारोह धार्मिक रूप से संपन्न होते थे । वर-वधू को देवालय के चैतन्य का लाभ प्राप्त होने की दृष्टि से विवाहसंस्कार देवालय में करने की भी परंपरा थी । वर्तमान में हिन्दुओं को लगता है कि विवाह समारोह एक मौजमस्ती का कार्यक्रम है । इस कारण विवाहविधि में सम्मिलित लोग गप-शप करते हैं । वहां गाने भी बजते हैं तथा बीच-बीच में ‘बैंडबाजा’ भी । जब वर-वधू एक-दूसरे के गले में पुष्पमाला डाल देते हैं, तब विवाह मंडप के बाहर पटाखे जलाए जाते हैं । इस ध्वनिप्रदूषण के (कोलाहल के) कारण विधियों से उत्पन्न सात्त्विकता नहीं टिक पाती । धार्मिक विवाह के स्थान पर इस प्रकार का सामाजिक विवाह समारोह देवालय के सभागृह में करने से देवालय के चैतन्य का लाभ तो किसी को होता नहीं, इसके विपरीत देवालय में ही रज-तम फैलता है । इसलिए हिन्दुओ, देवालय की पवित्रता बनाए रखने के लिए वहां धार्मिक विवाह समारोह करें अथवा सामाजिक विवाह समारोह देवालय के बाहर ही करें !’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (वर्ष २००४)