Ganesh Visarjan : धर्मशास्त्रानुसार श्री गणेशजी की मूर्ति विसर्जन करने का शास्त्र 

श्री गणेश चतुर्थी के समय हम शास्त्रानुसार श्रीगणेश जी की विधिविधान से पूजा करते हैं । जिसके परिणामस्वरूप श्री गणेशजी की मूर्ति में अधिकाधिक श्री गणेश तत्त्व तथा चैतन्य आकर्षित होता है । जब वह मूर्ति हम बहते जल में प्रवाहित करते हैं तब उसका चैतन्य बहते जल के द्वारा दूर दूर तक पहुंचता है ।

Ganesh Chaturth : गणेश जी को गुडहल का लाल पुष्प अर्पित करें !

लाल रंग के गुडहल के पुष्प के रंगकणों एवं गंधकणों के कारण ब्रह्मांड से गणेशतत्त्व उसकी ओर आकर्षित होते हैं ।

Ganeshotsav : श्री गणेशजी को दूर्वा अर्थात दूब घास क्यों चढाई जाती है ?

गणपति को अर्पित की जानेवाली दूर्वा कोमल होनी चाहिए । दूर्वा की पत्तियां ३, ५, ७ अथवा २१ की विषम संख्या में हों ।

Ganapati : गणेश चतुर्थी के दिन क्यों निषेध है चंद्र दर्शन !

‘श्री गणेश चतुर्थी’ पर चंद्र को नहीं देखा जाता । इस दिन चंद्र का दर्शन करना वर्जित होता है । ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो चंद्र दर्शन करता है वह मिथ्या आरोप से कलंकित होता है ।

Ganapati : भग‍वान श्री गणेश मूर्ति की स्थापना विधि !

मूर्ति घर पर लाने के उपरांत उनकी स्थापना के लिए एक सुंदर चौकी लें । उस पर चावल (अक्षत) का छोटा सा पुंज बनाएं अथवा थोडे से चावल रखें । उसके उपरांत उनपर मूर्ति की स्थापना करें ।

Ganapati : गणपति बाप्पा मोरया !

श्री गणेश चतुर्थी अर्थात भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी का अवतरण दिन माना जाता है । इस दिन पूरे देश में गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है । श्री गणेश चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश जी की पूजा की जाती है ।

श्री गणेश चतुर्थी का महत्त्व

श्री गणेश चतुर्थी पर तथा गणेशोत्सव काल में नित्य की तुलना में पृथ्वी पर गणेशतत्त्व १,००० गुना कार्यरत रहता है । इस अवधि में श्री गणेश का नामजप, प्रार्थना एवं अन्य उपासना करने से गणेशतत्त्व का लाभ अधिकाधिक मिलता है ।

श्री गणपति विसर्जन के संदर्भ में हमें यह जानकारी है कया ? 

पूजा के कारण मूर्ति में आया चैतन्य बहते पानी में मूर्ति का विसर्जन करने से पानी द्वारा दूर-दूर तक पहुंचता है । कुंड का पानी बहता हुआ न होने के कारण इन आध्यात्मिक लाभों से श्रद्धालु वंचित रहते हैं ।

श्री गणेश के भक्त-ऋषियों के संदर्भ का प्रसंग तथा श्री गणेश की लीला का आधारभूतशास्त्र !

एक बार नारदमुनि ने भृशुंडी ऋषि को बताया कि उसके माता-पिता, पत्नी, पुत्री तथा अन्य कुछ सगे-संबंधी ‘कुंभीपाक’ नामक नरक में नरकयातना भोग रहे हैं ।