‘पीओपी’ पर प्रतिबंध लगाने के कारण महाराष्ट्र के लगभग ८० प्रतिशत मूर्तिशालाओं में मूर्ति बनाने का काम ठप्प !

  • कारीगरों के सामने ३ महिने में खडिया मिट्टी की लाखों मूर्तियां बनाने की चुनौती !

  • सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडलों का ‘फाइबर’ की मूर्तियों की ओर झुकाव !

(पीओपी अर्थात प्लास्टर ऑफ पैरिस)

पुणे – कुछ वर्ष पूर्व मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा ‘पीओपी’ से बनाई जानेवाली गणेशमूर्तियों पर प्रतिबंध लगाया है; इसलिए इस वर्ष पुणे महापालिका ने इसकी कठोर कार्यवाही करने की दृष्टि से कदम उठाए हैं । महापालिका के प्रशासन द्वारा यह अभियान तीव्र किए जाने से राज्य की ८० प्रतिशत मूर्तिशालाओं में गणेशमूर्ति बनाने का काम ठप्प हुआ है । पुणे की मूर्तिशालाओं में बननेवाली ८० प्रतिशत मूर्तियां पीओपी’से, जबकि २० प्रतिशत मूर्तियां खडिया मिट्टी से बनाई जाती हैं । खडिया मिट्टी की मूर्तियों का काम अभी से आरंभ किया गया, तो उसके लिए मात्र ३ महिने का समय मिलनेवाला है । मूर्तिकारों को मूर्तियां बनाने के उपरांत उन्हें रंगना पडता है तथा उसके लिए कुछ समय देना पडता है । वर्षाऋतु में बिना रंगाई मूर्तियों में नमी पकडने की संभावना होती है । वर्तमान समय में पुणे में गणेशमूर्तियों की बढती मांग को ध्यान में लेते हुए अधुरे मानव संसाधन में ‘खडिया मिट्टी की मूर्तियों को कैसे बनाया जाए ?’, यह प्रश्न है ।

सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडलों का झुकाव ‘फाइबर’ क मूर्तियों की ओर

मुंबई उच्च न्यायालय ने गणेशोत्सव में सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल प्लास्टर ऑफ पैरिस से बनाई जानेवाली गणेशमूर्तियों की प्राणप्रतिष्ठा नहीं करेंगे, इसकी ओर ध्यान देने का राज्य सरकार को निर्देश दिया है । उस परिप्रेक्ष्य में अधिकतर गणेशोत्सव मंडलों का झुकाव ‘फाइबर’की मूर्तियां बनवा कर लेने की ओर है । (सार्वजनिक मंडलों की गणेशमूर्तियां ऊंचाई में अधिक होती हैं । खडिया मिट्टी से बडी मूर्ति नहीं बनाई जा सकती; इसलिए प्रशासन को पहले छोटी मूर्तियां बनाने की दृष्टि से मर्यादाएं डालना आवश्यक था ! – संपादक)

संपादकीय भूमिका 

  • ‘सृष्टि इको रिसर्च’ संस्था ने ‘पीओपी’से बनी मूर्तियों के कारण पानी का प्रदूषण नहीं होता, ऐसा ब्योरा दिया है । तो यदि ‘पीओपी’ नहीं चाहिए, तो प्रशासन ने पीओपी पर प्रतिबंध लगाने से पूर्व खडिया मिट्टी जैसा विकल्प बडे स्तर पर उपलब्ध कराया होता, तो आज यह विकट स्थिति न आई होती !
  • पर्याप्त विकल्प उपलब्ध कराए बिना ‘पीओपी’पर प्रतिबंध लगाने से जो स्थिति उत्पन्न होगी, क्या प्रशासन इससे अवगत नहीं है ? क्या ऐसा करना बहुसंख्यक जनता को धर्माचरण से वंचित रखने जैसा नहीं है ?
  • खडिया मिट्टी, चिकनी मिट्टी अथवा प्लास्टर ऑफ पैरिस की अपेक्षा फाइबर से बनाई जानेवाली मूर्तियां अधिक प्रदूषणकारी हैं । तो इस प्रदूषण के लिए कौन उत्तरदायी है ?