अयोध्या, काशी एवं मथुरा में मंदिरों की मुक्ति के लिए हो रही न्यायालयीन लडाई !

सर्वाेच्च न्यायालय का निर्णय काशी, मथुरा, ‘वक्फ कानून’ एवं ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ का केंद्रबिंदु है । सर्वाेच्च न्यायालय ने ११६ एवं ११७ इन सूत्रों में कहा है, ‘ऐतिहासिक दृष्टि से मंदिर होगा और उसे तोडा गया हो, तो वह मंदिर बनाने का संकल्प अभेद्य है ।’

युद्धकाल में उपयोगी और आपातकाल से बचानेवाली ये कृतियां अभी से करें !

संकट का सामना करने के लिए हमारा शरीर सक्षम होना चाहिए । वैसा होने के लिए प्रतिदिन नियमित कम से कम ३० मिनट व्यायाम करें । सूर्यनमस्कार करें, यह संपूर्ण शरीर को सक्षम बनाने के लिए सुंदर व्यायाम है । नियमित कम से कम १२ सूर्यनमस्कार करें ।

रासायनिक अथवा जैविक कृषि नहीं, अपितु प्राकृतिक कृषि अपनाइए !

मंडी में बिकनेवाली सब्जियों पर विषैले रसायनों की फुहार किए जाने से अब प्रत्येक व्यक्ति को अपने लिए आवश्यक सब्जियों की स्वयं ही उपज करना आवश्यक बन गया है । नित्य भोजन में लगनेवाली सब्जियां घर पर ही उगाई जा सकती हैं ।

विवाहोत्तर कुछ विधियां

बारात के घर आते ही वर-वधू के ऊपर दही-चावल फेरकर फेंके जाते हैं । घर में प्रवेश करते समय वधू प्रवेशद्वार पर रखे चावल से भरे पात्र को दाएं पैर के अंगूठे से लुढकाकर घर में प्रवेश करती है । तत्पश्चात लक्ष्मीपूजन कर वधू को ससुराल का नया नाम दिया जाता है ।

विवाहसंस्कार शास्त्र एवं वर्तमान अनुचित प्रथाएं

वधू को पिता के घर से अपने घर ले जाना अर्थात ‘विवाह’ अथवा ‘उद्वाह’ है । विवाह अर्थात पाणिग्रहण, अर्थात वर द्वारा स्त्री को अपनी पत्नी बनाने के लिए उसका हाथ पकडना । पुरुष स्त्री का हाथ पकडता है; इसलिए विवाह उपरांत स्त्री पुरुष के घर जाए । पुरुष का स्त्री के घर जाना अनुचित है ।

विवाह समारोह में क्या नहीं करना चाहिए एवं विवाह समारोह कैसा होना चाहिए ?

पूर्वकाल में हिन्दुओं के विवाह समारोह धार्मिक रूप से संपन्न होते थे । वर-वधू को देवालय के चैतन्य का लाभ प्राप्त होने की दृष्टि से विवाहसंस्कार देवालय में करने की भी परंपरा थी । वर्तमान में हिन्दुओं को लगता है कि विवाह समारोह एक मौजमस्ती का कार्यक्रम है ।

विवाहपत्रिका

समाज पर भोगवाद के प्रभाव के कारण विवाह विधि अनेकों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गई है । इस कारण धन पानी की भांति बहाया जाता है । इस अपव्यय का प्रारंभ विवाह की निमंत्रण पत्रिका से होता है ।

यदि हिन्दू मांग करें, तो ही हिन्दू राष्ट्र मिलेगा ! – परमहंस डॉ. अवधेशपुरीजी महाराज, स्वस्तिक पीठाधीश्वर, मध्य प्रदेश

हिन्दुओं को संगठित करने के लिए एक निष्पक्ष संस्था की आवश्यकता थी । आज हिन्दू जनजागृति समिति निष्पक्ष रूप से सर्व संगठनों को एक धागे में पिरोने का कार्य कर रही है । समिति के ये प्रयास अभिनंदनीय हैं ।

मथुरा (उत्तर प्रदेश) एवं इंदौर (मध्य प्रदेश) में हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का शंखनाद

आनंददमय जीवन जीना हो, तो प्रत्येक व्यक्ति को सनातन धर्म का पालन करना चाहिए । साधना करने से ही हिन्दू धर्म की महिमा ज्ञात हो सकती है और आनंद का अनुभव किया जा सकता है ।

तिथि लिखते समय पक्ष का उल्लेख टालना योग्य है

वर्तमान में तिथि लिखते समय हम चैत्र शु.प. १ (चैत्र शुक्ल पक्ष १) ऐसे लिखते हैं । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ‘पक्ष’ इस अर्थ से लिखा जानेवाला ‘प.’ शब्द अनावश्यक है । प्रचलित लेखन में भी तिथि लिखते समय इसका उल्लेख नहीं किया जाता ।