युद्धकाल में उपयोगी और आपातकाल से बचानेवाली ये कृतियां अभी से करें !

सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी

     ‘रूस-यूक्रेन युद्ध आरंभ हो गया है । यूक्रेन की जनता ‘युद्ध की आंच में झुलसना क्या होता है ?’, इसे कैसे अनुभव कर रही है, यह प्रतिदिन आनेवाले समाचारों से हमें ज्ञात हो ही रहा है । आगे इस युद्ध में अन्य देश भी सम्मिलित हो गए, तो तीसरा विश्व युद्ध आरंभ होने में अधिक समय नहीं लगेगा । रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूक्रेन जनता की तीसरे विश्व युद्ध का सामना करने के लिए थोडी-बहुत तैयारी हो गई होगी । वहां की जनता को शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण वहां का लष्कर दे रहा है । इसलिए जनता का मनोबल बढा है और वह रशियन सेना का सफलता से प्रतिकार कर रही है । इस कारण रशिया के लिए यूक्रेन अपने नियंत्रण में लेना कठिन हो गया है । यूक्रेन की जनता की यह तैयारी प्रशंसनीय है, तब भी वह केवल शारीरिक व मानसिक स्तर की है । सबसे महत्त्वपूर्ण तैयारी होती है आध्यात्मिक स्तर की !

     भारत की जनता रशिया-यूक्रेन युद्ध के समाचारों से यह सीखे कि युद्ध का प्रत्यक्ष सामना कैसे करना पडता है ? तीसरा विश्वयुद्ध होने पर वह अनेक मास चलेगा । इससे शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर अपनी तैयारी होने के लिए कौन से ठोस उपाय ध्यान में रखने चाहिए, वह यहां दिया है । यह तैयारी आज से ही गंभीरता से करें !

आगामी आपातकाल से बचने हेतु शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक स्तर की तैयारी करने हेतु आध्यात्मिक स्तर पर तैयारी करें !

१. शारीरिक स्तर की तैयारी

अ. संकट का सामना करने के लिए हमारा शरीर सक्षम होना चाहिए । वैसा होने के लिए प्रतिदिन नियमित कम से कम ३० मिनट व्यायाम करें । सूर्यनमस्कार करें, यह संपूर्ण शरीर को सक्षम बनाने के लिए सुंदर व्यायाम है । नियमित कम से कम १२ सूर्यनमस्कार करें । प्रतिदिन थोडा-बहुत दौडने का व्यायाम करें । हमें ५ – १० मिनट तो कम से कम दौडने आना चाहिए । जितना संभव हो, उतना व्यायाम नियमित करें और उसमें प्रतिमास थोडी वृद्धि करें ।

आ. नियमित प्राणायाम करें । यदि वह आता न हो, तो सीख लें । प्राणायाम करने से श्वास रोके रखने (कुंभक करने) का अभ्यास होता है । यह तब उपयोगी होगा, जब हमें पानी से किसी को बचाना हो, धुआं हो गया हो या गैस का रिसाव हो गया हो ।

इ. तैरना आना बहुत आवश्यक है । पानी में डूबते हुए को बचाना अथवा अपने प्राण बचाने के लिए इसका उपयोग होनेवाला है ।

ई. युद्धकाल में अन्न मिलना कठिन होगा । तब हमें १ – २ दिन भूखा रहना होगा । इसका अभ्यास होने हेतु बिना कुछ खाए-पिए दिन में कम से कम एक बार का उपवास रखने की आदत हमें होनी चाहिए । इसके लिए सप्ताह में एक दिन अभ्यास करें । आगे ‘पूरे दिन केवल पानी पीकर रह सकते हैं क्या ?’, यह भी देखें ।

उ. कोई शारीरिक व्याधियां हैं, तो समय रहते ही वैद्य या डॉक्टर को दिखाकर उसे दूर करें । भले ही बीमारी छोटी-सी हो, तब भी उसे अनदेखा न करें । ४० वर्ष एवं उससे अधिक आयुवर्ग के व्यक्ति अपनी सामान्य वैद्यकीय जांच (general checkup), नेत्रों और दांतों की जांच करवा लें । आगे युद्धकाल में वैद्यकीय सहायता सहजता से उपलब्ध नहीं होगी ।

ऊ. उपरोक्त जांच में पाई व्याधियों पर आवश्यकता के अनुसार अगली जांच और उपचार कर, अपनी वैद्यकीय स्थिति संभव हो उतनी सामान्य कर लें । उदा. रक्त में जीवनसत्त्व की मात्रा आवश्यकता से कम हो, तो उसे पूर्ववत करने के लिए संबंधित जीवनसत्त्व पूरक आहार और गोलियों के रूप में लेना आदि ।

ए. हमें हुए विकार, ‘वे कब ध्यान में आए ?’, उसके कारण, उन पर लिया वैद्यकीय उपचार, पूरक आहार, परहेज आदि एक बही में लिखकर रखें । ‘किसी विकार संबंधी पुन: जांच कब करनी है ?’, इसकी भी प्रविष्टि बही में करें । प्रविष्टि में हमें कोई औषधि, पदार्थ, खाद्यपदार्थ, धूल में से जिन घटकों की ‘एलर्जी’ है, उसे भी लिखकर रखें ।

ऐ. अपने विकारों से संबंधित वैद्यकीय कागजात, इसके साथ ही रिपोर्ट की धारिका बनाकर रखें । एक विकार के कागजात एवं ब्योरा एकत्र हो और उसका क्रम दिनांकानुसार लगाएं । हाल ही के कागजात सबसे ऊपर रखें । इसके साथ ही ‘गत ३ वर्षाें के कागजात एक धारिका में और उससे पुराने कागजात अलग धारिका में’, ऐसे रखा जा सकता है । संभव हो, तो महत्त्वपूर्ण कागजात एवं रिपोर्ट के चल-दूरभाष से छायाचित्र खींचकर उसे चल-दूरभाष, ‘पेनड्राइव’ आदि में संरक्षित करें ।

ओ. रक्तदाब, मधुमेह जैसी बीमारियों के लिए दीर्घकाल के लिए (संभवत: जन्मभर) के लिए औषधोपचार जारी रखना पड सकता है । ऐसा होने पर डॉक्टरों की सलाह लेकर उनकी औषधियां संग्रहित रखें । चश्मा, कर्ण यंत्र (ठीक से सुनाई देने के लिए उपयोगी यंत्र) जैसे दैनिक जीवन में हमारे लिए अत्यावश्यक प्रत्येक उपकरण का एक नग हमारे पास अतिरिक्त होना चाहिए । इसके साथ ही उस उपकरण के लिए लगनेवाली ‘बैटरी’ आदि का भी आवश्यक संग्रह हमारे पास होना चाहिए । हमें लगनेवाले उपचारों के लिए औषधि, उपकरण की एक ‘इमरजेंसी किट’ तैयार कर रखें । उसमें लगभग १५ दिनों की औषधियां होनी चाहिए । आपातकालीन स्थिति (इमरजेंसी) में हम वह ‘किट’ लेकर तुरंत निकल सकते हैं ।

२. मानसिक स्तर की तैयारी

अ. ‘किसी कठिन प्रसंग का हम सामना कर सकते हैं क्या ?’, यह देखें । दूसरे पर कोई कठिन प्रसंग आने पर ‘हम उस समय क्या करते ?’, ऐसा प्रश्न स्वयं को पूछकर उस प्रसंग का अभ्यास करें । इससे मन की तैयारी होती है और हम पर यदि वैैसा प्रसंग आन पडे, तो तुरंत ही कृति हो जाती है ।

आ. स्वयं अथवा कोई अन्य अधिक मात्रा में जल जाए अथवा घाव हो जाए, तो हम उसे सहन कर सकते हैं क्या ? उस प्रसंग में हम घबरा तो नहीं जाते ? उस पर उपचार के तौर पर कुछ करते हैं न ? ‘किसी का अपघात होते देख हम उसकी सहायता के लिए दौडकर जाते हैं क्या ?’, यह देखें । ऐसे समय पर हमें जानबूझकर दायित्व लेकर कृति करनी चाहिए ।

इ. घर में अथवा अन्यत्र कहीं छोटी-सी आग लगने पर, हम घबराकर भागते तो नहीं; अथवा उस आग को बुझाने के लिए क्या कुछ ठोस उपाय करते हैं ? हम यदि बौखला गए तो भले ही हमें कितनी भी सैद्धांतिक जानकारी हो, तब भी ‘उस प्रसंग में क्या करना है ?’, यह हमें नहीं सूझेगा; इसलिए ऐसे प्रसंगों में मन शांत-स्थिर रखना महत्त्वपूर्ण होता है ।

ई. ‘कोई हमारे साथ गुंडागर्दी कर रहा हो, तो हम होशियारी से उसका सामना कर सकते हैं क्या ?’, यह स्वयं को पूछें । समय आने पर उन गुंडों के साथ दो-दो हाथ करने की भी हमारी तैयारी होनी चाहिए । हमारे परिचित व्यक्ति के साथ झगडा हो रहा हो, तो उसे सुलझाने का प्रयत्न करें ।

उ. दूसरों की सहायता करने की वृत्ति हममें होनी चाहिए और यदि नहीं है तो उसे प्रयत्नपूर्वक निर्माण करें । हममें यदि वह वृत्ति होगी, तो हम पर आए कठिन प्रसंगों में भगवान औरों को हमारी सहायता के लिए भेजेंगे ।

ऊ. हमारा स्वभाव एकाकी (अकेले रहना पसंद करना) नहीं होना चाहिए । ऐसे व्यक्ति को आपातकाल में सहायता मिलना कठिन होता है; क्योंकि उसका किसी से परिचय नहीं होता । इसलिए सभी के साथ मिल-जुलकर और एकत्र रहने की आदत डालें । अकेला रहना पसंद करनेवाला व्यक्ति केवल अपना ही विचार करता है । दूसरों का विचार करने की आदत डालें ।

ए. मन में मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम बढाएं । जैसे मां हमारा पालन-पोषण करती है, वैसे ही हमारी मातृभूमि भी हमारा पालन-पोषण करती है; इसलिए उसके प्रति हमें कृतज्ञता लगनी चाहिए । ऐसा जब लगेगा, तब ही हम उसके लिए प्राणों का त्याग करने में भी आगे-पीछे नहीं देखेंगे । स्वतंत्रता सेनानियों ने यही किया । इसीलिए हमें स्वतंत्रता मिली । मातृभूमि के प्रति प्रेम लगना, अर्थात देश के प्रति प्रेम ! ऐसा लगने पर ही समय आने पर हम अपने देश के शत्रुओं के विरुद्ध लड सकेंगे । रशिया-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन की जनता यही कर रही है । जब मातृभूमि के प्रति प्रेम लगेगा, तब हम निजी स्वार्थ के लिए अपने धर्मबंधुओं को धोखा देकर भ्रष्टाचार नहीं करेंगे अथवा शत्रु के हाथों नहीं बिकेंगे । मातृभूमि से जुडी समस्त बातों के प्रति हमें प्रेम ही लगेगा । हम देश प्रति कर्तव्यनिष्ठ रहने के लिए तैयार होंगे ।

३. बौद्धिक स्तर की तैयारी

अ. युद्धकाल में दूसरों की सहायता करने हेतु प्राथमिक उपचार सीखना व उसे कर पाना आवश्यक है । शरीर पर घाव होने पर ‘बैंडेज’ कैसे बांधें ?’, ‘अस्थिभंग होने पर कैसे सहायता करें ?’, ‘स्ट्रेचर’ उपलब्ध न हो, तो झोली की सहायता से व्यक्ति को दूसरे स्थान पर कैसे ले जाएं ?, आदि सीख लें । युद्धकाल में हमें इस प्रकार सहायता करनी होगी । यह जानकारी होने के लिए सनातन संस्था के आगे दिए ३ ग्रंथ उपलब्ध हैं – १. रोगीके प्राणोंकी रक्षा एवं मर्माघातादि विकारोंका प्राथमिक उपचार, २. रक्तस्राव, घाव, अस्थिभंग आदि का प्राथमिक उपचार, ३. श्वासावरोध, जलना, प्राणियोंके दंश, विषबाधा आदि का प्राथमिक उपचार ।