१. वधूगृहप्रवेश : बारात के घर आते ही वर-वधू के ऊपर दही-चावल फेरकर फेंके जाते हैं । घर में प्रवेश करते समय वधू प्रवेशद्वार पर रखे चावल से भरे पात्र को दाएं पैर के अंगूठे से लुढकाकर घर में प्रवेश करती है । तत्पश्चात लक्ष्मीपूजन कर वधू को ससुराल का नया नाम दिया जाता है ।
१ अ. नववधू द्वारा गृहप्रवेश करते समय चावल से भरा पात्र पैर से गिराने का शास्त्रीय आधार : ‘गृहप्रवेश करते समय जब नववधू चावल से भरा कलश दाएं पैर से ढकेलकर गिरा देती है, तब उसके पैर से प्रक्षेपित मारक तरंगें कलश में रखे चावल में संक्रमित होती हैं । ये मारक नादतरंगें इस चावल के माध्यम से घर के वातावरण में प्रक्षेपित होती हैं । इससे घर में विद्यमान कष्टदायक तरंगों का उच्चाटन होकर वातावरण चैतन्यमय बनता है । इस चैतन्यमय वातावरण के कारण देवता प्रसन्न होने से हम उनकी कृपादृष्टि शीघ्र प्राप्त कर पाते हैं । ‘कलश लांघने’ की इस विधि द्वारा हम एक प्रकार से ब्रह्मांड में विद्यमान श्री दुर्गादेवी की क्रियाशक्ति को जागृत कर उससे नववधू के माध्यम से कार्यरत होने की प्रार्थना कर संपूर्ण परिवार का भार उसपर सौंपते हैं ।’ – (श्रीचित्शक्ति) श्रीमती अंजली गाडगीळजी, २६.१.२००५, सायं. ६.४८ (संदर्भ : सनातन का लघुग्रंथ ‘विवाह संस्कार’ शास्त्र एवं वर्तमान अनुचित प्रथाएं )
विवाह की भोजन-व्यवस्था तामसिक अथवा पाश्चात्य पद्धति की करने की अपेक्षा सात्त्विक एवं स्वदेशी (भारतीय) पद्धति की रखें ! |
विवाह विशेष अलंकारशास्त्र
तुलसी विवाह के उपरांत घर के विवाह योग्य युवक-युवतियों के विवाह की तैयारी आरंभ होती है । विवाह समारोह में अलंकारों को विशेष महत्त्व दिया जाता है; क्योंकि अलंकार पहनने से देवता का चैतन्य और आनंद प्राप्त होता है । इसलिए विवाह विशेष काल में प्रत्येक नवदंपति अलंकारों का शास्त्र समझ पाए और उसके अनुसार वे सात्त्विक अलंकार खरीद सकते हैं !
विवाह समारोह रात्रि में आयोजित न करें !
उत्तर भारत में अधिक तर विवाह समारोह रात्रि में किए जाते हैं । भारतपर मुसलमानों का आक्रमण आरंभ होने पर यह प्रथा पडी । धर्मांध मुसलमान शासक दिन में आयोजित हिन्दुओं के विवाह समारोह से वधू को उङ्गा ले जाते थे । इन घटनाओं से बचनेके लिए उत्तर भारत में विवाह समारोह रात्रि में आयोजित किए जाने लगे ।
अब इस दोषपूर्ण प्रथा को हटाना आवश्यक है; क्योंकि हिन्दू धर्म में धार्मिक विधियां रात्रि में करना अशुभ माना गया है । इसी प्रकार, गोधूलि से प्रातः तक वातावरण में आसुरी शक्तियों का प्रभाव अधिक होता है । इन शक्तियों से वधू-वर को आध्यात्मिक कष्ट न हो, इसके लिए विवाह समारोह दिन में आयोजित करें ।