विवाहपत्रिका

     विवाहपत्रिका सात्त्विक हो ! : समाज पर भोगवाद के प्रभाव के कारण विवाह विधि अनेकों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गई है । इस कारण धन पानी की भांति बहाया जाता है । इस अपव्यय का प्रारंभ विवाह की निमंत्रण पत्रिका से होता है । कलाकारी युक्त, सुगंधित तथा विविध संकल्पनाओं से युक्त महंगी विवाहपत्रिका सामान्य घटना हो गई है । महंगी विवाहपत्रिका की अपेक्षा सात्त्विक पत्रिका छपवाने की चेष्टा करनी चाहिए । इसलिए आगे दिए प्रयास कर सकते हैं –

१. विवाहपत्रिका पर बना श्री गणेशजी का चित्र अनेक बार अपमानजनक (उदा. श्री गणेश के केवल मस्तक का चित्र, फूल-पत्तियों से बना श्री गणेशजी का चित्र) होता है । उसके स्थान पर धर्मशास्त्र के अनुसार श्री गणेश का आसनस्थ संपूर्ण चित्र छापें ।

२. विवाहपत्रिका के प्रारंभ में आराध्यदेवता, कुलदेवता, ग्रामदेवता आदि के नामों का उल्लेख होना चाहिए ।

३. विवाहपत्रिका मातृभाषा में अथवा अन्य राष्ट्रीय भाषाओं में छपवाएं; किंतु अंग्रेजी में नहीं ।

४. पत्रिका की कलाकारी सात्त्विक होनी चाहिए ।

५. विवाहपत्रिका लेखन का व्याकरण शुद्ध होना चाहिए तथा उसमें विदेशी भाषा के शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए ।

६. विवाहपत्रिका में धर्मशिक्षा संबंधी अथवा राष्ट्र एवं धर्म जागृति परक लेखन होना चाहिए ।

(संदर्भ : सनातन का लघुग्रंथ ‘विवाह संस्कार’ शास्त्र एवं वर्तमान अनुचित प्रथाएं )