नूपुर शर्मा प्रकरण में उच्च न्यायालय का मत उत्तरदायित्व शून्य और कानून के विरुद्ध !
बिना किसी जांच के, बिना गवाहों के और नूपुर शर्मा का पक्ष सुने बिना इस प्रकार का मत व्यक्त करना न केवल अवैध है बल्कि अनुचित भी है।
बिना किसी जांच के, बिना गवाहों के और नूपुर शर्मा का पक्ष सुने बिना इस प्रकार का मत व्यक्त करना न केवल अवैध है बल्कि अनुचित भी है।
सर्वोच्च न्यायालय ने १ जुलाई को उदयपुर में सिर काटने की घटना के लिए नूपुर शर्मा ही जिम्मेदार होने का विधान किया था। उसपर रंगनाथन ने उपरोक्त प्रतिक्रिया व्यक्त की।
देश में कृषि कानून, नागरिकत्व सुधार कनून के विरोध में आंदोलन हो सकता है, तो हिन्दुत्व के लिए आंदोलन क्यों नहीं हो सकता ? हिन्दुत्व के लिए देश को हिलाकर रख देना चाहिए । अब हिन्दुओं को यह दिखा देना चाहिए, ‘हिन्दूहित का लिए काम करनेवाले ही देश पर राज्य कर सकेंगे !
भाजपा के पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका प्रविष्ट कर ´पूजा स्थल अधिनियम १९९१ ´ की कुछ धाराओं की वैधता को चुनौती दी है, जो ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण के कारण प्रमुखता से उजागर हुई हैं ।
वर्ष २००२ में हुए गोधरा हत्याकांड पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने वक्तव्य दिया है । उन्होंने कहा कि गोधरा हत्याकांड के उपरांत गुजरात में भडके दंगों के संबंध में विरोधी पक्ष और प्रसार माध्यमों ने भाजपा के विरुद्ध झूठा प्रचार किया था ।
मुसलमान दंगाइयों के अनधिकृत घरों पर कार्यवाही करने का प्रकरण नई दिल्ली – उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार की बुलडोजर कार्यवाही के विरोध में प्रविष्ट याचिका पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई । सरकारी महाधिवक्ता (सॉलिसिटर जनरल) तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए इस कार्यवाही को योग्य ठहराया, जबकि याचिकाकर्ता के अधिवक्ता … Read more
‘ज्ञानवापी में पूजा एवं अन्य उत्सव मनाने का आदेश प्राप्त हो’, ऐसी याचिका हिन्दुओं की ओर से की गई है । उस पर उन्होंने धमकियां देना प्रारंभ कर दिया कि ‘हम दूसरी बाबरी नहीं होने देंगे ।’ इस पृष्ठभूमि पर गुप्तचर संस्था ने केंद्र सरकार को ब्योरा दिया है कि इस विषय पर देश में बडा उपद्रव किया जाएगा ।
देवकीनंदन ठाकुर ने मुसलमान , ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन समुदाय को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक घोषित करने वाली केंद्र सरकार की १९९३ की अधिसूचना के विरोध उच्चतम न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की है । उन्होंने याचिका में यह भी कहा है कि अधिसूचना मनमाना, तर्कहीन और संविधान के अनुच्छेद १४, १५, २१, २९ एवं ३० के विरूद्ध है।
अवैध निर्माणकार्याें के कारण मूलभूत सुविधाओं पर तनाव आता है । यह समस्या केवल नगरनियोजन तक सीमित नहीं है, अपितु राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित है । ऐसे स्थानों से देशविरोधी गतिविधियां चलाए जाने की अनेक घटनाएं अभी तक सामने आई हैं ।
याचिकाकर्ता विभोर आनंद का अभिनंदन ! वास्तव में ऐसी याचिका प्रविष्ट करने की नौबत राष्ट्रप्रेमियों एवं धर्मप्रेमियों पर नहीं आनी चाहिए । सरकार को स्वयं भारतीय अर्थव्यवस्था को समानांतर हलाल अर्थव्यवस्था एवं उसके लिए दिया जानेवाला हलाल प्रमाणपत्र बंद करने के लिए कदम उठाना चाहिए !