हलाल प्रमाणपत्र और उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका !

नई देहली – हलाल प्रमाणपत्र वाले उत्पाद तथा हलाल प्रमाणपत्र देनेवालों पर बन्दी के लिए, विभोर आनंद ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की है ।

इस याचिका में स्पष्ट किया है कि, 

१. देश की १५ प्रतिशत जनसंख्या के लिए, शेष ८५ प्रतिशत जनसंख्या को उनके इच्छा के विरुद्ध हलाल प्रमाणित उत्पादनों का उपयोग करने के लिए बाध्य किया जा रहा है, ये गैर-मुसलमान समाज के मुलभूत अधिकारों का हनन है । किसी धर्मनिरपेक्ष देश में किसी एक धर्म की श्रद्धा, दूसरे धर्म पर थोपी नहीं जा सकती । उन्हें हलाल प्रमाणित उत्पादन क्रय करने को बाध्य किया जा रहा हैं ।

२. शरीयत विधान के अनुसार दिए गए हलाल प्रमाणपत्र से राज्य घटना की धारा १४ से २१ अन्तर्गत मुलभूत स्वतन्त्रता का उल्लंघन नहीं होता क्या ? ऐसा इस याचिका में पूछा गया है ।

३. जमियत उलेमा-ए-हिन्द और अन्य कुछ खासगी इस्लामी संस्थाओं के द्वारा हलाल प्रमाणपत्र दिया जाता है । इसका अर्थ यह है कि, उत्पादनों को भारतीय मानक संस्था (आई.एस.आई.) एवं ‘भारतीय अन्न सुरक्षा व मानक निगम’ (एफ.एस.एस.ए.आई.) जैसी शासकीय प्रमाणपत्र समर्थ नहीं है क्या ? अन्य समुदायों के प्रति यह भेदभाव नहीं हैं क्या ?

४. वर्ष १९७४ के पूर्व, हलाल प्रमाणपत्र जैसी कोई बात नहीं थी । वर्ष १९७४ से, मांस उत्पादनों को हलाल प्रमाणपत्र देना आरंभ हुआ और वर्ष १९७४ से १९९३ तक हलाल प्रमाणपत्र केवल मांस उत्पादनों तक सीमित था । उसके पश्चात, धीरे-धीरे अन्य उत्पादनों को हलाल प्रमाणपत्र देना आरंभ हुआ । इसमें खाद्य पदार्थ, मिठाई, अनाज, नाखून पॉलिश, लिपस्टिक आदि वस्तुओं का समावेश हैं ।

५. हलाल प्रमाणपत्र देनेवाली इस्लामी संस्था इसके लिए आस्थापनों से पैसा वसूल करती है । यह पैसा, वे संस्था अपने मनानुसार व्यय करती है । इसमें सभी संस्था निजी है ।

संपादकीय भूमिका

याचिकाकर्ता विभोर आनंद का अभिनंदन ! वास्तव में ऐसी याचिका प्रविष्ट करने की नौबत राष्ट्रप्रेमियों एवं धर्मप्रेमियों पर नहीं आनी चाहिए । सरकार को स्वयं भारतीय अर्थव्यवस्था को समानांतर हलाल अर्थव्यवस्था एवं उसके लिए दिया जानेवाला हलाल प्रमाणपत्र बंद करने के लिए कदम उठाना चाहिए !