अनधिकृत निर्माणकार्य करनेवालों के संरक्षक !

दिल्ली के जहांगीरपुरी में चल रही अतिक्रमण विरोधी कारवाई

आज देहली के जहांगीरपुरी में चल रही अतिक्रमण विरोधी कार्यवाही संपूर्ण देश में चर्चा का विषय है । इसी जहांगीरपुरी के धर्मांधबहुल क्षेत्र से हनुमान जयंती की शोभायात्रा निकलने पर पथराव किया गया था । इसमें अनेक पुलिसकर्मी भी घायल हुए । उसके उपरांत भाजपाशासित देहली महानगरपालिका ने इन अवैध भवनों पर कार्यवाही करने की ठानी और उन पर बुलडोजर चलने लगा । मूलतः महानगरपालिका प्रशासन को सतर्क रहना था कि अवैध निर्माणकार्य ही न हों, तथापि विलंब से ही क्यों न हो; महानगरपालिका द्वारा उठाया गया ‘बुलडोजर’ का कदम स्वागत योग्य था । प्रशासन द्वारा कठोर कार्यवाही आरंभ करते ही अनेक कांग्रेसी, वामपंथी आदि रुष्ट हो गए और उन्होंने सीधे सर्वाेच्च न्यायालय के द्वार खटखटाए । इसका कारण यह कि जहांगीरपुरी के अधिकांश अवैध भवन धर्मांधों के हैं । आरोप है कि यहां अनेक रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिये रहते हैं । इस कार्यवाही के विरुद्ध ‘जमियत-ए-हिन्द’ संगठन ने सर्वाेच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधिवक्ता कपिल सिब्बल और दुष्यंत दवे ने उस पर तर्क किया । अब न्यायालय ने अवैध भवन गिराने पर २ सप्ताह तक रोक लगा दी है ।

दिल्ली के जहांगीरपुरी में चल रही अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दौड़े कांग्रेस के कपिल सिब्बल !

अवैध निर्माण एक देशव्यापी समस्या है । उसके जटिल होने में राजनीतिज्ञों की वोटबैंक एक प्रमुख कारण है । ‘मानवता के नाम पर अवैध निर्माणों को संरक्षण देने से चुनाव के समय उनके मत काम आते हैं’, इस विचार से सर्वदलीय जनप्रतिनिधि उसकी अनदेखी करते हैं । अभी तक अनेक बार अवैध निर्माणों को आधिकारिक भी बनाया गया है । महाराष्ट्र में पहली बार १९९५ तक की झोपडियों को अधिकृत किया गया और उसके उपरांत उसे ५-५ वर्षाें की समयवृद्धि मिलती रही । आज भी २०२० तक के अवैध निर्माणों को अधिकृत करने के प्रयास चल रहे हैं; परंतु इससे मूल समस्या हल नहीं होती । मूल रूप से अतिक्रमण होने न देने का दायित्व स्थानीय प्रशासन का होता है । प्रश्न यह है कि इतनी बडी संख्या में अवैध निर्माणकार्य होने तक क्या प्रशासन सोया था ? इस प्रकार अवैध निर्माणकार्य करना किसी एक व्यक्ति का काम नहीं । उसके लिए कौनसी शृंखला कार्यरत है ? और उसमें कौन-कौनसे अधिकारी और नेता लिप्त हैं इसकी जांच होना आवश्यक है । इनकी मिलीभगत से अवैध निर्माणकार्य होने की संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता । इसलिए पहले उन पर कार्यवाही होनी चाहिए । शासनकर्ताओं को लोकप्रिय नहीं, जनहितकारी निर्णय लेना चाहिए; परंतु मतों की लालसा में राजनीतिज्ञ और प्रशासनिक अधिकारी राष्ट्रहित में कठोर निर्णय लेंगे, यह अपेक्षा करना ही व्यर्थ है । व्यक्तिगत भूमि में एकाध इंच का अतिक्रमण भी न सहनेवाले लोग सरकारी या सार्वजनिक भूमि में कई सौ मीटर का अतिक्रमण होने पर भी उसके प्रति उदासीन रहते हैं । देश के कानून को ताक पर रखकर अवैध निर्माण करनेवाले ‘असहाय’ हैं; पर ऐसे अवैध निर्माणकार्य पर कार्यवाही करनेवाले उद्दंड, यह कैसा तर्क है ? अवैध निर्माण के लिए प्रशासनिक अनुमति नहीं ली जाती; तो उन्हें गिराते समय ‘नोटिसों’ की औपचारिकता का निर्वहन किसलिए ?

जनप्रतिनिधियों का समाजद्रोह !

जहांगीरपुरी में तोड़फोड़ अभियान को रोकने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से आनन-फानन में पहुंचे कम्युनिस्ट नेता !

अवैध निर्माण रोकने हेतु उन्हें बनते ही ध्वस्त करना और संबंधित लोगों को तत्काल कठोर दंड देना ही इस समस्या का प्रभावशाली उपाय है । इससे ही भविष्य में कानून का भय उत्पन्न होगा तथा अवैध निर्माण पर लगाम लगाई जा सकती है । अपराधियों पर छोटी-मोटी कार्यवाही से ये अपराध रुकेंगे कैसे ? जहांगीरपुरी की कार्यवाही न्यायालय द्वारा स्थगित करने के उपरांत उस आदेश के प्रत्यक्षरूप से प्राप्त होने तक महानगर पालिका के आयुक्त ने कार्यवाही जारी रखी थी । उस पर वामपंथी नेता वृंदा करात ने विचलित होकर अधिकारियों से संपर्क कर कार्यवाही रोकने के प्रयास किए । ये लोग अवैध निर्माण ही न हों; इसके लिए अपनी क्षमता का उपयोग क्यों नहीं करते ? इसी प्रकार की घटना पहले पुणे के एक अवैध प्रार्थनास्थल के संदर्भ में हुई थी । महानगरपालिका की भूमि पर अतिक्रमण कर बनाए गए उस प्रार्थनास्थल को गिराने हेतु जब प्रशासन के अधिकारी वहां गए, तो कांग्रेस के एक तत्कालीन नेता ने ‘आप पहले मुझ पर बुलडोजर चलाइए’ की नीति अपनाई । शासन के प्रतिनिधि ही यदि इस प्रकार से सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाने का विरोध करेंगे, तो क्या यह ‘जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया !’ जैसी घटना नहीं है ? आज प्रार्थनास्थलों पर लगे अवैध भोंपूे हटाने के संदर्भ में जहां न्यायालय के आदेश का पालन हो रहा है, तो इस विषय में कोई एक शब्द नहीं बोल रहा है । इससे कथित आधुनिकतावादी गिरोह की दोहरी नीति दिखाई देती है । वास्तव में अवैध निर्माण करनेवालों को संरक्षण देनेवालों पर सर्वप्रथम कार्यवाही की जानी चाहिए ।

अवैध निर्माणकार्याें के कारण मूलभूत सुविधाओं पर तनाव आता है । यह समस्या केवल नगरनियोजन तक सीमित नहीं है, अपितु राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित है । ऐसे स्थानों से देशविरोधी गतिविधियां चलाए जाने की अनेक घटनाएं अभी तक सामने आई हैं । जहांगीरपुरी का दंगा उसका ताजा उदाहरण है । अतः इस समस्या को केवल अवैध निर्माण से संबंधित न मानें, यह राष्ट्रीय सुरक्षा की मांग है !