अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की सर्वाेच्च न्यायालय से मांग !
नई देहली – सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता तथा प्रखर हिन्दुत्वनिष्ठ अश्विनी उपाध्याय ने सर्वाेच्च न्यायालय में एक महत्त्वपूर्ण याचिका प्रविष्ट की है । आपातकाल के समय वर्ष १९७६ में भारत के संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं ‘समाजवाद’, ये दो शब्द घुसाए गए । संविधान के मूल ढांचे में किया गया यह परिवर्तन संपूर्णतः असंवैधानिक था । जुलाई के महिने में इस याचिका पर सुनवाई होगी । इस विषय में श्री. उपाध्याय ने ‘सनातन प्रभात’ के प्रतिनिधि को बताया कि यह याचिका अप्रैल महिने में प्रविष्ट की गई है तथा भारत की संस्कृति की रक्षा की दृष्टि से वह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ।
अधिवक्ता उपाध्याय ने इसके संदर्भ में एक वीडियो प्रसारित किया है । उसमें उन्होंने संविधान में किए गए इस परिवर्तन के विषय में बताया कि,
१. १३ दिसंबर १९४६ तथा २२ जनवरी १९४७ में संविधान की प्रस्तावना के संदर्भ में चर्चा हुई थी, जिसे उस समय सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था । वर्ष १९७६ तक उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया ।
२. १५ नवंबर १९४८ तथा ३ दिसंबर १९४८, इस प्रकार से दो बार प्रा. के.टी. शाह ने संविधान सभा में संविधान की मूल प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं ‘सांघिक’, इन तीन शब्दों को अंतर्भूत करने का आवाहन किया था, जिसे संविधान सभा ने दो बार संविधान सभा से सर्वसम्मति से अस्वीकार किया था ।
३. ६ दिसंबर १९४८ को पुनः उक्त सूत्र पर चर्चा की गई । उस समय सभा में उपस्थित पंडित लोकनाथ मिश्रा ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता की संकल्पना भारत की नहीं है, अपितु वह विदेश की है । यदि हमने इस शब्द को संविधान में अंतर्भूत किया, तो उससे भारतीय संस्कृति रसातल को पहुंच जाएगी । एच.वी. कामत ने भी संस्कृति विघातक संज्ञा देते हुए इस मांग का विरोध किया था ।
४. संविधान सभा ने १७ अक्टूबर १९४९ को प्रस्तावना स्वीकार की तथा २६ नवंबर १९४९ को संविधान स्वीकार किया गया । १४ जनवरी १९५० को राष्ट्रगान अंतिम किया गया तथा २५ जनवरी को संविधान सभा विसर्जित की गई ।
Remove the words ‘Secular’ and ‘Socialism’ from the Preamble of the Constitution !
Advocate Shri. Ashwini Upadhyay’s demand in the Supreme Court !
Hindus expect the government to act accordingly !#ConstitutionalRepublic pic.twitter.com/cauxhO8JAD
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) May 17, 2024
५. वर्ष १९६७ में गोलकनाथ प्रकरण में सर्वाेच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया था कि संसद को संविधान के मूल ढांचे में अर्थात प्रस्तावना में परिवर्तन करने का कोई अधिकार नहीं है ।
६. वर्ष १९७१ में हुए चुनाव में कांग्रेस को ३५२ सीटों पर विजय मिली । उस समय कांग्रेस की सरकार ने एक कानून बनाकर सर्वाेच्च न्यायालय के निर्णय को ही पलट दिया ।
७. वर्ष १९७३ में केशवानंद भारती प्रकरण में सर्वाेच्च न्यायालय का महत्त्वपूर्ण निर्णय आया । सर्वाेच्च न्यायालय की १३ न्यायमूर्तियों की खंडपीठ ने कहा कि संविधान के मूल ढांचे में कोई भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता ।
८. १२ जून १९७५ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की चुनाव में उम्मीदवारी ही रद्द कर उन पर ६ वर्ष तक चुनाव लडने पर प्रतिबंध लगाया । जब यह प्रकरण सर्वाेच्च न्यायालय में चला गया, उसके उपरांत २४ जून १९७५ को न्यायालय ने कहा कि आप प्रधानमंत्री पद पर रह सकती हैं; परंतु कोई भी महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं ले सकेंगी, साथ ही कोई भी कानून नहीं बना सकेंगी । अगले चुनाव तक आप कार्यवाहक प्रधानमंत्री रह सकती हैं ।
९. मन में इसका क्षोभ रखकर इंदिरा गांधी ने दूसरे ही दिन अर्थात २५ जून को देश में आपातकाल घोषित किया ।
१०. मार्च १९७६ में लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हुआ; परंतु इंदिरा गांधी ने उनका कार्यकाल एक वर्ष बढाया । आगे जाकर दिसंबर १९७६ में उन्होंने संविधान में ४२ वां संशोधन कर संविधान के मूल ढांचे में ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं ‘समाजवाद’, ये दो शब्द घुसा दिए ।
११. तकनीकी दृष्टि से प्रधानमंत्री पद के संपूर्ण अधिकार न होते हुए भी, साथ ही संविधान सभा का अस्तित्व न होते हुए भी तथा लोकसभा संपूर्ण रूप से कार्यान्वित न होते हुए भी उन्होंने संविधान में उक्त संशोधन किया ।
१२. इसीलिए हमने इसके विरोध में सर्वाेच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की है ।
(१८.५.२०२४)