इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कानून निरस्त करने हेतु दी थी मान्यता !
नई देहली – सर्वोच्च न्यायालय ने ‘उत्तरप्रदेश मदरसा शिक्षा मंडल कानून, २००४’ निरस्त करने को नकारा है । मार्च माह में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ‘इस कानून से धर्मनिरपेक्ष तत्त्व का भंग हो रहा है’, ऐसा कह यह कानून निरस्त करने का निर्णय दिया था । तत्पश्चात यह प्रकरण अप्रैल माह में सर्वोच्च न्यायालय में जाने पर उच्च न्यायालय के निर्णय को इस न्यायालय ने अंतरिम स्थगिति दी थी । अब न्यायालय ने अंतिम निर्णय देते हुए यह कानून स्थायी रखने का आदेश दिया है ।
१. मार्च महीने में उच्च न्यायालय ने इस कानून को स्थगिति देकर मदरसा में शिक्षा प्राप्त करनेवाले विद्यार्थियों को अन्य पाठशालाओं में दाखिल होने के आदेश दिए थे । तदुपरांत इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनाैती दी गई थी ।
२. सर्वोच्च न्यायालय में पक्ष प्रस्तुत करते समय उत्तरप्रदेश सरकार ने कहा कि, ‘इस कानून को घटनात्मक आधार है’ इस पर न्यायाधीश की अध्यक्षता में ३ न्यायमूर्तियों के खंडपीठ ने कहा कि यदि ऐसी चिंता है कि मदरसों में शिक्षा प्राप्त करनेवाले विद्यार्थियों को उत्तम शिक्षा प्राप्त हो तो उस पर मदरसा कानून निरस्त करने की अपेक्षा विद्यार्थी उत्तम शिक्षा से वंचित न रहने हेतु सावधानी बरतने के लिए उचित निर्देश देना उपाय था ।
उपाधि देने का अधिकार अस्वीकार किया !
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि यद्यपि कानून वैधानिक है, तब भी ‘फाजिल’, ‘कामिल’ (मदरसा में शिक्षाप्राप्त करनेवाले विद्यार्थियों को दी जानेवाली उपाधियां) समान उपाधियां देने का अधिकार महाविद्यालय अनुदान कानून के विरोध में है । उपाधि प्रदान करने के लिए अधिकारी वैध नहीं है , परंतु कानून वैधानिक है ।