SC On Preamble Amendment Plea : क्या आपको नहीं लगता कि भारत को धर्मनिरपेक्ष रहना चाहिए ?

संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की मांग करने वाली याचिका!

सर्वोच्च न्यायालय का याचिकाकर्ताओं से सवाल !

याचिकाकर्ते अधिवक्‍ता विष्‍णु शंकर जैन, डॉ. सुब्रह्मण्‍यम स्‍वामी व अधिवक्‍ता श्री. अश्‍विनी उपाध्‍याय

नई दिल्ली – “क्या आपको नहीं लगता कि भारत को धर्मनिरपेक्ष रहना चाहिए?”, यह सवाल सर्वोच्च न्यायालय ने वकील विष्णु शंकर जैन से पूछा। संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की मांग करने वाली याचिका पर २१ अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय में हुई सुनवाई के समय न्यायालय ने यह सवाल पूछा। भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी, भाजपा के नेता और वकील श्री अश्विनी उपाध्याय और वकील विष्णु शंकर जैन ने यह याचिका दायर की है। इस पर अब अगली सुनवाई १८ नवंबर को होगी।

१. सुनवाई के समय वकील जैन ने तर्क देते हुए कहा कि इंदिरा गांधी सरकार के समय १९७६ में ४२वें संशोधन के माध्यम से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द संविधान में जोड़े गए। इन परिवर्तनों पर संसद में कभी चर्चा नहीं हुई। इस कारण से इन्हें संविधान की प्रस्तावना से हटाया जाना चाहिए।

२. इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस न्यायालय ने कई निर्णयों में ‘धर्मनिरपेक्षता’ को सदैव संविधान की मौलिक संरचना का अंग माना है। संविधान में ‘समानता’ और ‘बंधुता’ शब्दों का उपयोग किया गया है, जो धर्मनिरपेक्षता के स्पष्ट संकेत हैं। इसलिए इन शब्दों को संविधान में सम्मिलित करना आवश्यक है।

३. डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा, “संविधान की प्रस्तावना २६ नवंबर १९४९ को घोषित की गई थी। इसलिए बाद में संशोधन के जरिए इसमें और शब्द जोड़ना अनुचित था। वर्तमान प्रस्तावना के अनुसार, ‘२६ नवंबर १९४९ को भारतीय जनता ने भारत को समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बनाने की स्वीकृति दी थी’, यह कहना अयोग्य है।” इस पर न्यायालय ने इस प्रकरण की जांच करने का आश्वासन दिया।

पश्चिमी देशों द्वारा निकाले गए अर्थ को स्वीकार करना उचित नहीं ! – सर्वोच्च न्यायालय 

न्यायालय ने कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि यदि ‘समाजवादी’ शब्द सम्मिलित किया गया, तो यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश लगाएगा। प्रस्तावना में सुधार करके परिवर्तन नहीं किए जा सकते। समाजवाद के विभिन्न अर्थ हैं। पश्चिमी देशों में स्वीकार किया गया अर्थ नहीं लेना चाहिए। सभी को समान अवसर मिलें और देश की संपत्ति का लोगों के बीच समान वितरण हो, यह भी समाजवाद का एक अर्थ हो सकता है।

संपादकीय भूमिका

भारत में ‘धर्मनिरपेक्षता’ का क्या अर्थ है? इसकी स्पष्ट परिभाषा न होने के कारण ‘धर्मनिरपेक्षता’ का अर्थ हिंदुओं को दबाना और मुसलमानों का तुष्टिकरण करना, ऐसा सुविधाजनक अर्थ राजनीतिक दलों द्वारा निकाला गया है और इसे देश में स्थापित किया गया है। इस कारण से पिछले ७८ वर्षों से हिंदुओं पर अन्याय और अत्याचार हो रहे हैं। यह स्थिति बदलने के लिए इस पर निर्णय होना आवश्यक है, ऐसा हिंदुओं को लगता है।