राष्ट्र एवं धर्माभिमानी युवा चाहिए !

‘युवा एवं राष्ट्र’ का विषय आता है, तब युवाओं की ओर राष्ट्र के भविष्य के रूप में देखा जाता है । ‘युवा सक्षम, तो राष्ट्र सक्षम’, ऐसा सरल संबंध है ।

आदर्श युवा पीढी के अपेक्षित कर्तव्य !

भारत में तथाकथित आधुनिकतावादी एवं बुद्धिवादी साम्यवाद को पकडकर हिन्दुओं का धर्मशास्त्र, प्रथा परंपरा आदि का विरोध कर रहे हैं एवं समाज का बुद्धिभेद कर रहे हैं । इसलिए सुखी एवं समृद्ध जीवन देनेवाला हिन्दू धर्म एवं धर्माचरण का महत्त्व युवाओं में विविध माध्यमों से कैसे पहुंचेगा ? यह देखना आज के युवाओं का प्रथम राष्ट्र एवं धर्म कर्तव्य सिद्ध होगा !

धर्मप्रेम बढाएं और धर्माभिमानी बनें !

यह न भूलें कि ‘धर्म’ राष्ट्र का प्राण है । राष्ट्र को धर्म का अधिष्ठान हो, राजा तथा प्रजा दोनों धर्मपालक हों, तभी राष्ट्र सभी संकटों से मुक्त और सुखी बनता है !

बालको, स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया कार्यान्वित कर आनंदित जीवन की प्रतीति लें !

स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया के कारण दोषों पर नियंत्रण पाकर गुणों का विकास होता है । इसलिए जीवन सुखी एवं आदर्श बन जाता है ।

‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के अंतर्गत हाथ-पैरों के तलुवों पर स्थित रेखाओं से संबंधित शोधकार्य में सम्मिलित होकर साधना के स्वर्णिम अवसर का लाभ उठाएं ! 

साधक, पाठक, शुभचिंतक एवं धर्मप्रेमियों का हस्त-पाद सामुद्रिक शास्त्र के विषय में अध्ययन हो, तो वे इस कार्य में सम्मिलित हो सकते हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा हिन्दुत्वनिष्ठों को किया गया अमूल्य मार्गदर्शन 

हिन्दू जनजागृति समिति का मूल उद्देश्य हिन्दुओं को धर्म की शिक्षा देना, राष्ट्र एवं धर्म पर मंडरा रहे विभिन्न संकटों के प्रति हिन्दुओं को जागृत करना तथा हिन्दुओं का संगठन करना है ।

साधको, ‘मैं भोजन कर आता हूं’, ऐसा न कहकर ‘मैं महाप्रसाद लेकर आता हूं’, ऐसा कहें !

अन्न पूर्णब्रह्म होता है । ‘मैं महाप्रसाद लेकर आता हूं’, ऐसा कहने से हमारे मन में अन्न के प्रति भाव उत्पन्न होकर आध्यात्मिक स्तर पर हमें उसका लाभ होता है ।

भीषण आपातकाल में टिके रहने हेतु प्रत्येक व्यक्ति को नामजप करना आवश्यक !

अब आपातकाल चल रहा है; इसलिए नामजप करना आवश्यक है । वाहन चलाते समय हमारा नामजप होना चाहिए । उससे हमारे साथ होनेवाली दुर्घटना अथवा कष्ट की तीव्रता अल्प होगी अथवा वह टल सकेगी ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘हम व्यक्तिगत जीवन में विभिन्न प्रसंगों में उचित निर्णय परिजन, संबंधी, मित्र, वैद्य, अधिवक्ता, लेखा परीक्षक आदि से पूछकर लेते हैं । उसी प्रकार राष्ट्र एवं धर्म संबंधीनिर्णय राष्ट्र एवं धर्म प्रेमी संतों से ही पूछकर लेने
चाहिए !’

Shankaracharya Avimukteshwaranand Saraswati : गोहत्याएं रुकी नहीं, तो ५ वर्षाें के उपरांत गाय को चित्र में देखना पडेगा !

धर्मशास्त्र और कानून के अनुसार जो अपराध एवं पाप करते हैं, उनका समर्थन करना भी पाप है । इसलिए गोरक्षा के लिए लडनेवाली पार्टियों को मतदान करें, ऐसा आवाहन शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने किया ।