(टिप्पणी : ‘ओपिनियन पोल’ अर्थात मतदानपूर्व रुझान तथा ‘एक्जिट पोल’ अर्थात मतदानोत्तर परिणाम)
हरियाणा एवं जम्मू-कश्मीर की विधानसभाओं के चुनाव कुछ दिन पूर्व ही संपन्न हुए हैं । उसमें ‘ओपिनियन पोल’ (मतदानपूर्व रुझान) एवं ‘एक्जिट पोल’ (मतदानोत्तर परिणाम) पर बातचीत हुई । अनुमान लगाया गया था कि ‘एक्जिट पोल’ के रुझानों में ‘हरियाणा में कांग्रेस को बढत मिलकर उसे विजय मिलेगी’; परंतु वास्तव में चुनाव परिणाम सामने आते ही भाजपा को बहुमत मिलता हुआ दिखाई दिया । ‘ओपिनियन पोल’ एवं ‘एक्जिट पोल’ कैसे किए जाते हैं ? उसके लिए प्रतिष्ठान क्या करते हैं ?, इस विषय में कौतुहल होता है । इस लेख के माध्यम से इस विषय पर प्रकाश डालने का किया गया प्रयास !
१. मतदानपूर्व रुझान तथा मतदानोत्तर परीक्षणों की आवश्यकता !
भारत में, साथ ही पूरे विश्व की लोकतांत्रिक व्यवस्थावाले देशों में चुनाव होता है । इन चुनावों से पूर्व किए गए प्रचार में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को विभिन्न प्रकार के लालच दिखाए जाते हैं तथा घोषणाओं की भरमार की जाती है । सत्ताधारी राजनीतिक दलों द्वारा कुछ काम किए होते हैं; इसलिए वे जनता के सामने उसका विज्ञापन तथा कार्य का ब्यौरा रखकर मत मांगते हैं । उसके कारण जनता को तथा प्रमुखता से राजनीतिक दलों को भी इसकी उत्सुकता रहती है कि ‘इस चुनाव में कौन जीतेगा ?’ कुछ स्थानों पर प्रबल प्रत्याशी होते हैं, तो कुछ स्थानों पर एक ही प्रत्याशी बार-बार चुना जाता है । उसके कारण सामनेवाले प्रतिस्पर्धी को जनता किस बात में रुचि दिखा रही है ?, जनता को क्या चाहिए ?, जिसे मिलने पर जनता प्रसन्न होकर मत देगी, यह सब समझ लेना होता है । इसके लिए ‘ओपिनियन पोल’ एवं ‘एक्जिट पोल’, इन तंत्रों का प्रयोजन है । राजनीतिक दल तथा प्रसारमाध्यम इस तंत्र का अनेक प्रकार से उपयोग करते हैं ।
२. शोध एवं इतिहास
अमेरिका में वर्ष १९२० में जॉर्ज गैलप नाम के एक शोधकर्ता ने एक तंत्र का आविष्कार किया था, जिससे ध्यान में आता था कि उन्हें चुनाव के समय अमेरिका के मतदाता निश्चित रूप से किस प्रकार विचार करते हैं ? प्रत्येक चुनाव के समय वे अमेरिका के मतदाताओं के रुझान का अध्ययन करते थे तथा वहां के समाचारपत्रों को अपना शोध बेचते थे । कालांतर में उनके द्वारा चुनाव के लगाए जानेवाले अनुमान सही आने लगे तथा लोगों को इसका बहुत आश्चर्य प्रतीत होने लगा । वर्ष १९३६ में उन्होंने इस तंत्र के आधार पर भविष्यवाणी की थी कि ‘फ्रैंकलीन रूजवेल्ट चुनाव जीतेंगे’ तथा उनकी यह भविष्यवाणी अचूक सिद्ध होने से उनके इस तंत्र को स्वीकृति भी मिली । उसके आगे जाकर विश्व के अन्य देशों में भी इस पद्धति के आधार पर अन्य ‘ओपिनियन पोल’ की अनेक पद्धतियां विकसित होने लगीं तथा चुनावों में वो उपयोगी सिद्ध होने लगीं । भारत में भी ‘एन.डी.टी.वी.’ के प्रणय रॉय तथा उनके सहयोगियों ने इस प्रकार सर्वेक्षण करनेवाले प्रतिष्ठानों को साथ लेकर वर्ष १९७९ में इस तंत्र का उपयोग कर लोगों के मत जानना आरंभ किया । ये मतदानपूर्व रुझान ‘इंडिया टुडे’ नियतकालिक में प्रकाशित होना आरंभ हुआ । ये रुझान भी प्रत्यक्ष चुनाव परिणामों के निकट आने लगे तथा भारत में भी यह तंत्र प्रसिद्ध होने से अन्य प्रतिष्ठान भी इसमें उतर गए ।
३. राजनीतिक दलों का सर्वेक्षण
निजी प्रतिष्ठान उनके परिणाम तथा अध्ययन घोषित कर रहे थे; परंतु उसके साथ राजनीतिक दल भी कुछ निजी प्रतिष्ठानों तथा उनकी पद्धति से लोगों के झुकाव का अनुमान लगाकर सर्वेक्षण करने लगे । वर्तमान समय में भी राजनीतिक दल इस प्रकार से सर्वेक्षण करते हैं तथा चुनावी रणनीति बनाने में वे इस जानकारी का उपयोग करते हैं, इसे हमने समाचारों में पढा है ।
‘ओपिनियन पोल’ से भले ही लाभ मिलता हो; परंतु वर्ष १९९६ में उससे बडी फटकार मिली थी, जिसमें मतदानपूर्व परीक्षण में त्रिशंकु लोकसभा होगी, यह अनुमान व्यक्त किया गया था तथा वास्तव में हुआ भी वैसा ही ! इसके परिणामस्वरूप राजनीतिक दलों ने यह आरोप लगाया कि लोग उनकी इच्छा के अनुसार तथा मत के अनुसार मतदान नहीं कर रहे हैं; अपितु चुनावपूर्ण सर्वेक्षण करनेवाले जो प्रतिष्ठान हैं, वे लोगों को किसे मतदान करना चाहिए; इन परीक्षणों के माध्यम से यह बता रहे हैं । चुनाव पर उसका बहुत प्रभाव पडा था । कुछ राजनीतिक दलों पर वे इन प्रतिष्ठानों को पैसे देकर जनता को किसे मतदान करना चाहिए, यह बता रहे हैं; यह आरोप भी लगा । इसके परिणामस्वरूप चुनाव आयोग ने इसमें हस्तक्षेप किया तथा चुनाव आरंभ होने से कुछ दिन तक ‘ओपिनियन पोल’ घोषित न करने के संबंध में कुछ नियम बनाए गए ।
‘ओपिनियन पोल’ एवं ‘एक्जिट पोल’ इनमें क्या अंतर है ?
‘ओपिनियन पोल’ चुनाव की घोषणा होने पर चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित समय-सीमा के अंदर लिया जानेवाला रुझान है अर्थात निर्धारित तिथि के उपरांत रुझान लेना तथा उन्हें प्रसारित करना, इसे रोकना कानून की दृष्टि से आवश्यक है । इसमें सामान्य स्तर पर लोगों के मत लिए जाते हैं ।
‘एक्जिट पोल’ अर्थात मतदानोत्तर परिणाम, जिन्हें लोगों के मतदान किए जाने के कुछ घंटे उपरांत ही प्रसारित करना होता है । इसमें सामान्यरूप से मतदान के उपरांत लोगों ने किसे मत दिया, ये प्रतिष्ठान इसे जानकर उसके विषय में प्रविष्टियां कर क्षेत्रवार तथा कुल स्वरूप में घोषित करते हैं । वर्तमान समय में भले ही इन दोनों पद्धतियों का उपयोग किया जाता हो; तब भी वर्तमान समय में मतदानोत्तर परिणामों को अधिक महत्त्व मिल रहा है । इन रुझानों के आधार पर ही संबंधित समाचार चैनल राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ परिचर्चाओं का आयोजन करते हैं तथा राजनीतिक दलों से अपने पदों को उचित ठहराने को कहते हैं ।
– श्री. यज्ञेश सावंत
४. फेसबुक का डाटा हैक (जानकारी चुराना) करने का प्रकरण
वर्ष २०१० में सामाजिक जालस्थल फेसबुक के लाखों उपयोगकर्ताओं की निजी जानकारी हैक की गई थी तथा वह ब्रिटिश प्रतिष्ठान ‘केंब्रिज एनालैटिका’ को बेची गई थी । इस जानकारी का उपयोग कर इस प्रतिष्ठान ने उसके उच्चपदस्थ ग्राहकों को इन उपयोगकर्ताओं को किन बातों में रुचि है ? तथा उन्हें अमुक राजनीतिक व्यक्तियों में से कौन अच्छे लगते हैं ? जैसी जानकारी देने से उनके राजनीतिक ग्राहकों को चुनाव में अपना प्रभाव बनाना संभव हुआ । इसके परिणामस्वरूप फेसबुक को करोडों डॉलर का आर्थिक दंड चुकाना पडा ।
५. ‘लोकनीति’ का अध्ययन
मतदान पूर्व तथा मतदानोत्तर रुझान बतानेवाले प्रतिष्ठान ‘लोकनीति’ ने वर्ष २०१९ के लोकसभा चुनाव परिणामों का अध्ययन कर यह बताया कि केवल ३५ प्रतिशत लोग ही चुनाव से पूर्व किस राजनीतिक दल को मत देना है, यह सुनिश्चित करते हैं । शेष ६५ प्रतिशत लोग ऐसा कुछ मन बनाकर नहीं रखते अर्थात ये लोग मतदान के लिए जाने से कुछ समय पूर्व उन्हें किसे मत देना है, यह सुनिश्चित करते हैं । इनमें भी ४५ प्रतिशत लोग ऐसे होते हैं कि जिन्हें जिस दल का बोलबाला है अर्थात अमुक दल चुनाव जीतेगा, ऐसा उन्हें लगता है, वे उन्हें मतदान करते हैं ।
लोगों की इस मानसिकता का लाभ उठाने के लिए राजनीतिक दलों की उठापटक होती है तथा उनके दल का वर्चस्व (बोलबाला) हो, इसके लिए ‘हम इतनी सीटें जीतेंगे’, ‘हमारी ही सरकार बनेगी’ इत्यादि बडे-बडे दावे करते रहते हैं । कोई भी राजनीतिक दल हवा में कुछ नहीं बोलता । वे ऐसे सर्वेक्षण करनेवाले प्रतिष्ठानों को पैसे देकर उनसे जानकारी लेते हैं तथा उसके आधार पर अनुमान लगाकर जीत के दावे करते रहते हैं ।’
६. किसकी पद्धति का उपयोग किया जाता है ?
जनता का मत एकत्र करने के लिए अनेक पद्धतियों का उपयोग किया जाता है; जैसे प्रत्यक्ष भाषण, स्वैच्छिक मतदान, योजनाबद्ध पद्धति से अर्थात एक क्रम से मत लेना, चल दूरभाष (मोबाइल) के द्वारा मत लेना आदि अनेक पद्धतियों का उपयोग किया जाता है । वर्तमान समय में ‘ए.आई. डैशबोर्ड’ (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) का उपयोग किया जाता है, जिससे किसी विशेष शहर से इकट्ठे किए मत किस दल को तथा कितनी मात्रा में मिलेंगे, यह तुरंत समझ में आता है ।
७. सर्वेक्षण करनेवाले प्रतिष्ठानों की वास्तविकता !
वर्ष २०१४ में ‘न्यूज एक्सप्रेस’ समाचार चैनल ने एक ‘स्टिंग ऑपरेशन’ (शोध पत्रकारिता) चलाकर उसके ७ पत्रकारों को राजनीतिक दल के प्रतिनिधि बनाकर सर्वेक्षण करनेवाले इन प्रतिष्ठानों के पास भेजा था । उन्होंने इन प्रतिष्ठानों से मांग की थी कि ‘आप हमें जैसा चाहिए, उस प्रकार से सर्वेक्षण करा दीजिए ।’ उनमें से ‘एसीनेल्सन’ एवं ‘लोकनीति’ प्रतिष्ठानों ने ऐसा करना अस्वीकार कर दिया; जबकि ‘सी वोटर’ के तत्कालीन प्रमुखों ने कहा, ‘हम थोडा-बहुत अंतर ला सकते हैं; परंतु पूरा परिवर्तन नहीं किया जा सकता ।’ इसका वीडियो प्रसारित होने के उपरांत ‘सी वोटर’ ने इस वीडियो पर संपादित होने का आरोप लगाया । संक्षेप में कहा जाए, तो सर्वेक्षण करनेवाले प्रतिष्ठानों को साथ लेकर झूठे आंकडे दिखाकर तथा लोगों का दिशाभ्रम कर उनपर प्रभाव डाला जा सकता है । बडे प्रतिष्ठान भी ‘ओपिनियन पोल’ तथा ‘एक्जिट पोल’ के रुझान देखकर ही किस राजनीति दल को चंदा देना है, जिससे यदि उस दल ने चुनाव जीता, तो उन्हें सरकारी काम मिलेंगे, इसका अध्ययन करते हैं । इससे इस सर्वेक्षण पर कितने लोग निर्भर होते हैं तथा जनता भी उसे देखकर किस प्रकार उनके चंगुल में फंसती है, यह समझ में आता है, उदा. सर्वेक्षण में महंगाई के विषय में अधिक लोग बोल रहे हैं, ऐसा स्पष्ट हुआ, तो विरोधी दल अपने भाषणों में महंगाई पर अधिकाधिक बल देकर भाषण देते हैं; जबकि सत्ताधारी दल बताता है, ‘हम महंगाई कम करेंगे ।’ अधिकांश हिन्दुओं को ऐसा लगता है कि ये लोग हिन्दुओं पर हो रहे विभिन्न आघातों तथा लव जिहाद जैसे विषयों पर क्यों नहीं बोलते ? अथवा वह चुनाव प्रचार का विषय क्यों नहीं बनता ? तो इसका यह एक महत्त्वपूर्ण कारण है । कैसे भी करके जनता के तत्कालीन प्रश्नों के बारे में आश्वासन देकर केवल चुनाव जीतना ही राजनीतिक दलों की प्राथमिकता रह जाती है ।
८. सर्वेक्षण की मर्यादाएं तथा चूकें
भारत में लोकसभा की ५४३ तथा विधानसभा की कुल ४ सहस्र सीटें हैं, उनमें १० लाख से अधिक बूथ (कक्ष) होते हैं । सर्वेक्षण करनेवाले प्रतिष्ठान ८०० से १ सहस्र विधानसभा सीटों पर ध्यान केंद्रित करते हैं तथा उनमें से ५ से १० सहस्र बूथों का चयन कर प्रत्येक मतदान केंद्र के ५० से १०० लोगों का चयन कर उनके मत जान लेते हैं अर्थात वे केवल कुछ लाख लोगों के ही मत जान पाते हैं तथा उसके आधार पर करोडों भारतीय मतदाताओं को क्या लगता है, यह बताते रहते हैं । किसी भी प्रतिष्ठान को इतना सर्वेक्षण करना हो, तो उसके लिए २ से ४ सहस्र कर्मचारी आवश्यक होंगे तथा उससे भी अधिक अर्थात ८ से १० सहस्र कर्मचारियों की आवश्यकता पडेगी । उन्हें सर्वेक्षण करने के लिए चल दूरभाष, टैब, संगणक आदि सुविधाएं उपलब्ध कराने में बहुत खर्चा आता है । इतना व्यय करना किसी भी प्रतिष्ठान के लिए संभव नहीं होता; इसलिए वे यथासंभव प्रयास कर जानकारी इकट्ठी करते हैं, उसके ब्योरे बनाते हैं तथा जिन्हें उनकी आवश्यकता होती है, उन्हें यह जानकारी बेचकर उससे पैसे कमाते हैं । इसीलिए अनेक प्रतिष्ठानों तथा समाचार चैनलों के आंकडे एक जैसे दिखाई देते हैं । सर्वेक्षण करनेवाले प्रतिष्ठान अपने परिणामों को कितना भी सटीक बताने का प्रयास करें, तो भी वह रुझान सीमित लोगों का होने से उनका पूरा अथवा आंशिक रूप से त्रुटिपूर्ण होने की संभावना अधिक रहती है । इसलिए ‘ओपिनियन पोल’ अथवा ‘एक्जिट पोल’ के आंकडे त्रुटिपूर्ण होने से उनकी विश्वसनीयता कम होती है ।
उनके सर्वेक्षण में सीमित मतदाताओं से पूछे गए प्रश्नों के विषय में कभी-कभी लोग कहते कुछ और हैं तथा मतदान में प्राथमिकता किसी अन्य दल को देते हैं; परंतु वास्तव में प्रत्यक्ष रूप से मतदान किसी अन्य दल को ही करते हैं । कुछ लोग केवल मौखिक रूप से अपना मत बताते हैं; परंतु वास्तव में मतदान करने जाते भी नहीं हैं । इसलिए अचूक आंकडे तथा मत-प्रतिशत नहीं मिलता । समाचार चैनलों पर केवल चुनाव से पूर्व क्या हवा चल रही है ? तथा चुनाव के उपरांत उनमें से किसे विजय मिल सकती है, यह समझ में आता है; परंतु कुछ प्रसंगों में आपने देखा होगा कि अनुमान एक लगाया जाता है; परंतु होता उसके विपरीत है ! इसका अर्थ कुछ प्रतिष्ठानों ने बताया कि अमुक चुनावक्षेत्र में भाजपा के स्थान पर कांग्रेस की विजय होगी; परंतु वहां भाजपा को विजय मिली है । यही इनकी मर्यादा है । इससे समाचार चैनल उनका टी.आर.पी. (लोग कोई समाचारपत्र कितने समय तक देखते हैं, उसका स्तर) बढाने का प्रयास करते हैं, जबकि सर्वेक्षण करनेवाले प्रतिष्ठान अपनी जेबें भरते हैं तथा इससे लोगों का थोडा-बहुत मनोरंजन होता है, यह तो सत्य है ।
श्री गुरुचरणार्पणमस्तु ।
– श्री. यज्ञेश सावंत, सनातन संकुल, देवद, पनवेल. (१०.१०.२०२४)
न्याय के माध्यम से (धर्म के माध्यम से) अपराधों का (अधर्म का) अस्तित्व नष्ट कर धर्म की अर्थात न्याय की स्थापना करना आवश्यक ! |