श्रीविष्णु के अवतार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के जन्मोत्सव के दिन पंढरपुर से रामनाथी आश्रम में लाई कुछ वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाई जाना तथा उसी दिन पंढरपुर के श्री विठ्ठल मंदिर के तहखाने में श्रीविष्णु बालाजी की मूर्ति मिलना

इस घटना के माध्यम से मानो साक्षात भगवान ही यह बता रहे हैं, ‘सनातन संस्था के साधकों को प्राप्त मोक्षगुरु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी प्रत्यक्ष श्रीमन्नारायणस्वरूप ही हैं । वे ही श्रीविष्णु के अवतार हैं ।

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु हिन्दुओं का संगठन करें !

प्रस्तुत ग्रंथ में हिन्दू राष्ट्र की मूलभूत संकल्पना, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दिशा, हिन्दू-संगठन हेतु उपक्रम, धर्मरक्षा हेतु आवश्यक मार्गदर्शन एवं साधना के संदर्भ में दृष्टिकोण दिए हैं ।

मेरे द्वारा अनुभव किए गए, अत्यधिक गुणवान एवं अन्यों को अपने समान बनानेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी !

प.पू. डॉक्टरजी मेरे जीवन में आए और मुझे जीवन का ध्येय समझ में आया तथा उनकी कृपा से मुझे वहां साधना एवं सेवा करने का अवसर मिला । मेरी साधना के प्रारंभिक काल में उन्होंने मुझे व्यवहार एवं साधना की प्रत्यक्ष सीख प्रदान कर तैयार किया ।

सर्वस्व का त्याग ही हिन्दू राष्ट्र स्थापना की नींव है !

इस वर्ष हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन की तपपूर्ति (१२ वर्ष) हो रही है।रामराज्यरूपी धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र प्रत्यक्ष साकार होने के लिए स्वक्षमता के अनुसार तन-मन-धन एवं समय आने पर सर्वस्व का त्याग करने  अर्थात सर्वोच्च योगदान देने की आवश्यकता है। यह ध्यान में रखकर धर्मसंस्थापना का महान कार्य कीजिए !

‘जयतु जयतु हिन्‍दुराष्‍ट्रम्’ के उद्घोष में वैश्विक हिन्दू राष्‍ट्र महोत्‍सव का  प्रारंभ !

‘जयतु जयतु हिन्‍दुराष्‍ट्रम्’ के उत्‍साहवर्धक जयघोष एवं संत-महंतों की वंदनीय उपस्थिति में रामनाथी, फोंडा स्थित श्री रामनाथ देवस्‍थान में हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित वैश्विक हिन्दू राष्‍ट्र महोत्‍सव का अर्थात ‘अखिल भारतीय हिन्दू राष्‍ट्र अधिवेशन’ का प्रारंभ हुआ ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘हिन्दू शब्द की व्याख्या है ‘हीनान् गुणान् दूषयति इति हिंदुः ।’, ‘हीनान् गुणान् अर्थात हीन, कनिष्ठ रज और तम गुणों का ‘दूषयति’ अर्थात नाश करनेवाला ! इस व्याख्या के अनुसार देखें तो हिन्दुओं में केवल १० प्रतिशत हिन्दू ‘खरे हिन्दू’ हैं ।
शेष ९० प्रतिशत केवल जन्महिन्दू हैं ।

सतर्कता, आक्रामकता और विस्तारवादी नीति से ही हिन्दू धर्म की सुरक्षा संभव ! – महामंडलेश्वर आचार्य स्वामी प्रणवानंद सरस्वतीजी, संस्थापक, श्री स्वामी अखंडानंद, गुरुकुल आश्रम, इंदौर, मध्य प्रदेश

‘‘हिन्दू एकता के बिना हिन्दू राष्ट्र का सपना हम साकार नहीं कर सकते । हिन्दुओं का एक होना ही सबसे महत्त्वपूर्ण बात है । सभी हिन्दुओं में एकता की भावना होनी चाहिए । हम भले ही विविध जाति अथवा संप्रदाय के हों, तब भी हममें एकता की भावना होनी चाहिए ।

धर्मकार्य में योगदान से ही हमारा जीवान सार्थक होगा ! – महामंडलेश्वर नर्मदा शंकरपुरी महाराज, निरंजनी आखाडा, जयपुर, राजस्थान

धर्मकार्य में हमारा योगदान कितना है, यह  चिंतन का विषय है । विश्व की उपेक्षा कर आगे जाना है अथवा फूल की भांति सबको सुगंध देते हुए आगे जाना है, यह हमें निश्चित करना चाहिए ।

अफ्रीका के लोगों को सनातन धर्म का महत्त्व ध्यान में आ गया, तो वहां बडी मात्रा में प्रसार होगा ! – पू. श्रीवास दास वनचारी, इस्कॉन, घाना, अफ्रीका

सनातन धर्म अनादि अनंत है । सनातन धर्म लाखों वर्ष पुराना है । सनातन धर्म, सभी धर्मों का मूल है ।  प्रभुपाद स्वामीजी ने अमेरिका में ‘इस्कॉन’की स्थापना की । इस माध्यम से उन्होंने सनातन धर्म का जगभर प्रसार किया ।

संपादकीय : बढती हुई रेल दुर्घटनाएं चिंताजनक !

रेल विभाग पुरानी तथा कालबाह्य व्यवस्था हटाकर नई आधुनिक व्यवस्था का उपयोग कर दुर्घटर्नाओं को टाले !