१. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी द्वारा पंढरपुर से संरक्षण करने हेतु कुछ चैतन्यदायी वस्तुएं तथा छायाचित्र लाना
‘सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी पिछले कुछ वर्षाें से सप्तर्षि के मार्गदर्शन के अनुसार सनातन संस्था के कार्य में तथा साधकों की साधना में आनेवाली बाधाएं दूर हों तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को स्वास्थ्यपूर्ण दीर्घायु प्राप्त हो; इस हेतु विभिन्न धार्मिक स्थलों पर जाकर पूजा-अनुष्ठान करती हैं, साथ ही हिन्दू संस्कृति का संवर्धन होने हेतु देश-विदेशों की अध्ययन यात्राएं भी करती हैं । एक बार वे महाराष्ट्र के पंढरपुर से संरक्षण करने हेतु कुछ चैतन्यदायी वस्तुएं तथा छायाचित्र ले आईं ।
२. महर्षियों के मार्गदर्शन के अनुसार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का जन्मोत्सव मनाया जाना
महर्षियों ने समय-समय पर जीवनाडी-पट्टिका वाचन से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने बताया है कि ‘श्रीविणु के अवतार हैं ।’ महर्षियों के मार्गदर्शन के अनुसार पिछले कुछ वर्षाें से उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है । इस वर्ष २७ मई से ३० मई तक ४ दिन उनका जन्मोत्सव मनाया गया । पहले दिन सर्वत्र के साधकों ने अपने-अपने स्थान पर उनकी मानसपूजा की, जबकि शेष ३ दिन तक रामनाथी (गोवा) के सनातन के आश्रम में भावपूर्ण वातावरण में श्री नवचंडी याग किया गया । इन ३ दिनों में याग के समय ‘कलियुग के श्रीविष्णु के अवतार का रहस्य’ विषय पर कुछ सूत्र बताए गए ।
३. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में रामनाथी आश्रम में पंढरपुर से लाई कुछ वस्तुओं तथा छायाचित्रों की प्रदर्शनी लगाई जाना तथा उसी दिन पंढरपुर के श्री विठ्ठल मंदिर के तहखाने में श्री बालाजी के रूप में स्थित मूर्ति मिलना
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में रामनाथी आश्रम में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी द्वारा पंढरपुर से लाई वस्तुओं तथा छायाचित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई । विशेष बात यह थी कि ३० मई की रात २ बजे पंढरपुर के श्री विठ्ठल मंदिर में एक तहखाना मिला तथा उसमें अन्य कुछ मूर्तियों सहित श्रीविष्णु बालाजी की साढे तीन फुट ऊंची एक मूर्ति मिली । यह एक दैवीय संयोग है । इस घटना के माध्यम से मानो साक्षात भगवान ही यह बता रहे हैं, ‘सनातन संस्था के साधकों को प्राप्त मोक्षगुरु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी प्रत्यक्ष श्रीमन्नारायणस्वरूप ही हैं । वे ही श्रीविष्णु के अवतार हैं ।’
मेरी उक्त विचारप्रक्रिया के विषय में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को सूचित करने पर उन्होंने इसकी पुष्टि की । उसके कारण मुझे बहुत कृतज्ञता प्रतीत हुई । ‘हम सभी साधकों पर श्रीमन्नारायणस्वरूप श्री गुरुदेवजी की अखंड कृपादृष्टि बनी रहे तथा हमसे उन्हें अपेक्षित साधना हो’, यह मैं उनके चरणों में प्रार्थना करती हूं ।’
– कु. श्रावणी पेठकर (आयु २२ वर्ष), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२.६.२०२४)