विद्याधिराज सभागार – अच्छे काम करते समय आनेवाले संकट हमारी परीक्षा होते हैं । मार्गक्रमण करते समय मार्ग में गड्ढे, खाईं आते हैं; परंतु हम उन्हें कैसे पार करते हैं, यह चिंतन का विषय है । धर्मकार्य में हमारा योगदान कितना है, यह चिंतन का विषय है । विश्व की उपेक्षा कर आगे जाना है अथवा फूल की भांति सबको सुगंध देते हुए आगे जाना है, यह हमें निश्चित करना चाहिए । सुगंध और दुर्गंध दोनों ईश्वर ने ही बनाए हैं; परंतु हमें कहां खड़ा होना है, यह निश्चित करना है । नाली के पास खड़ा रहकर दुर्गंध लेना है और उसके लिए ईश्वर को दोष देना है, तो ऐसा नहीं चलेगा । बुद्धि भ्रष्ट होने के कारण मुझसे बुरा आचरण हुआ, यह कारण नहीं चलेगा; क्योंकि मनन-चिंतन करने की क्षमता भी भगवान ने हमें दी है । केवल क्षमायाचना से हम भगवान के पास पहुंच सकते हैं । अवनति की ओर जाने से बचने के लिए हमें साधना करनी चाहिए । किसी ने फूलमाला पहना दी अथवा पीठ थपथपा दी, तो ऐसा न समझें कि जीवन सफल हो गया । जब हम अपने हाथ का धर्मकार्य पूरा करेंगे, तभी जीवन सार्थक होगा ।
सनातन आश्रम में ईश्वरीय शक्ति की अनुभूति हुई !नामजप और आध्यात्मिक ऊर्जा बाने के लिए हमें सनातन संस्था के बताए अनुसार प्रयत्न करना चाहिए । सनातन संस्था जो कार्य कर रही है, उसकी तुलना नहीं हो सकती । गोवा स्थित सनातन आश्रम के रसोई घर में जाने पर, साग-सब्जी के एक-एक पत्ते बोल रहे थे । वहां का परिसर देखने पर वहां परमात्मा की शक्ति के कार्यरत होने की अनुभूति मुझे हुई । यह मुझे किसी ने बताया नहीं, अपितु यह मैंने स्वयं अनुभव किया । केवल संख्याबल नहीं, गुणवत्ता महत्त्वपूर्ण है, ऐसे गौरवोद्गार महामंडलेश्वर नर्मदा शंकरपुरी महाराजी ने इस समय व्यक्त किए । |