मेरे द्वारा अनुभव किए गए, अत्यधिक गुणवान एवं अन्यों को अपने समान बनानेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी !

‘मुंबई स्थित सेवाकेंद्र में मुझे परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का प्रत्यक्ष सत्संग प्राप्त हुआ । प.पू. डॉक्टरजी मेरे जीवन में आए और मुझे जीवन का ध्येय समझ में आया तथा उनकी कृपा से मुझे वहां साधना एवं सेवा करने का अवसर मिला । मेरी साधना के प्रारंभिक काल में उन्होंने मुझे व्यवहार एवं साधना की प्रत्यक्ष सीख प्रदान कर तैयार किया । साधना के मार्ग पर चलने के लिए उन्होंने मुझे शक्ति, बुद्धि एवं प्रेरणा दी । ‘प्रति क्षण प.पू. डॉक्टरजी मेरे साथ हैं तथा वे ही मुझसे सर्व करवा रहे हैं’, इसका मुझे निरंतर भान रहता है । ‘अभी तक मेरे द्वारा हुई साधना’ केवल प.पू. डॉक्टरजी की कृपा ही है । इसलिए मुझे उनके प्रति प्रतीत होनेवाली कृतज्ञता शब्दातीत है ।

प.पू. डॉक्टरजी का मार्गदर्शन लिखकर लेते सनातन के पहले पूर्णकालीन साधक एवं वर्तमान में सद्गुरु सत्यवान कदमजी (वर्ष २००८)

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से सीखने के लिए मिले गुण

अ. तत्परता : प.पू. डॉक्टरजी बिजली एवं दूरभाष के देयक (बिल) तत्परता से जमा करते थे ।

आ. साधकों की सेवा का नियोजन करते समय साधकों का समय व्यर्थ न हो, इसकी सावधानी बरतना : मुंबई सेवाकेंद्र में अनेक साधक सेवा के लिए आते थे । प.पू. डॉक्टरजी स्वयं ही सर्व साधकों की सेवा का नियोजन करते थे । ‘कौन सी सेवा पहले और कौन सी सेवा बाद में करनी है, इस संबंध में भी वे बताते थे । ‘कोई साधक सेवा के बिना न रहे, इस ओर भी उनका ध्यान रहता था । वे सर्व साधकों के लिए सेवा निकालकर रखते थे । इसलिए सर्व साधक सेवा में व्यस्त रहते थे । प.पू. डॉक्टरजी शहर से बाहर जाते समय साधकों की सेवा का नियोजन करके जाते थे । तत्पश्चात उन्होंने मुझे अन्य साधकों की सेवाओं का नियोजन करना सिखाया ।

इ. भंडारे के समय सेवा करना सिखाना : प.पू. डॉक्टरजी प.पू. भक्तराज महाराजजी के भंडारे में जाते समय हम साधकों को सीखने के लिए वहां ले जाते थे । वहां पहुंचने पर वे स्वयं सेवा करते थे एवं हमसे भी सेवा करवाते थे, उदा. ‘बाजार से सामान लाना, सब्जियां चुनने में सहायता करना, भंडारे में परोसना, बाद का समेटना आदि । प.पू. डॉक्टरजी की कृपा से हम प.पू. भक्तराज महाराजजी के भंडारे में ये सेवाएं सीख पाए एवं कर भी पाए ।

 

प.पू. भक्तराज महाराजजी के मोरटक्का (खांडवा, मध्य प्रदेश) के आश्रम के भंडारे के समय भक्तों को भोजन परोसते शिष्य डॉ. आठवलेजी (वर्ष १९९२)

ई.अभ्यासवर्ग के समय सेवा करवाना : शनिवार एवं रविवार को प.पू. डॉक्टरजी अभ्यासवर्ग लेते थे । वे मुझे अभ्यासवर्ग के स्थान पर भी ले जाते थे एवं वहां सेवा करने के लिए कहते थे । मुझमें मंच पर बोलने का साहस निर्माण करने के लिए वे अभ्यासवर्ग में मुझे कुछ सूत्र प्रस्तुत करने के लिए कहते थे ।

उ. अडचनें प्रस्तुत करने पर तत्काल समाधान बताना : प्रथम मैंने फलक रंगना, ‘स्क्रीन प्रिंटिंग’ आदि सेवाएं सीख लीं । सेवा में आई बाधाएं प.पू. डॉक्टरजी को बताने पर उनके द्वारा तुरंत उपाय मिलता था । इसलिए सेवा भी गति से होती थी ।

ऊ. साधकों को चूकों का भान करवाना : प.पू. डॉक्टरजी हम साधकों से होनेवाली चूकें तत्परता से बताते थे; परंतु वे चूकें अकेले में न बताकर सबके सामने बताते थे । इसलिए हमें हमारी चूकों का भान होता था एवं उससे अन्य भी सीख पाते थे ।

– (सद्गुरु) सत्यवान कदम, कुडाळ (जिला सिंधुदुर्ग) (२७.०२.२०२४)


श्री. सत्यवान कदम (वर्तमान में सद्गुरु सत्यवान कदमजी) की प्रथम भेंट में ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने ‘इसे तो इसी जन्म में ईश्वर मिलनेवाले हैं’, ऐसा कहना

एक गुरुवार को मैं सत्यवान कदम (मेरे चचेरे भाई, वर्तमान में सद्गुरु सत्यवान कदमजी) को लेकर गुरुदेवजी के पास गया था । मैंने गुरुदेवजी से उनका परिचय करवाया । उन्हें देखकर गुरुदेवजी को बहुत आनंद हुआ एवं उन्होंने मुझसे कहा, ‘‘इसे तो इसी जन्म में ईश्वर मिलनेवाले हैं ।’’ उस क्षण से ही सद्गुरु सत्यवान कदमजी गुरुमय बन गए । उनकी वह अलौकिक भेंट देखकर मुझे स्वामी विवेकानंद एवं श्री रामकृष्ण परमहंसजी की भेंट का स्मरण हुआ । श्री रामकृष्ण परमहंसजी ने विवेकानंदजी से कहा था, ‘‘नरेंद्र, तुमने बडी देर कर दी । मैं तो तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था ।’’ गुरुदेवजी की सर्वज्ञता आज हम सभी अनुभव कर ही रहे हैं ।’

– श्री. विष्णु कदम (आयु ६४ वर्ष), आरे, ता. देवगड, जि. सिंधुदुर्ग, महाराष्ट्र. (१५.२.२०२४)