संपादकीय : बढती हुई रेल दुर्घटनाएं चिंताजनक !

दार्जीलिंग मे हुई रेल दुर्घटना

बंगाल के दार्जीलिंग में १७ जून को मालगाडी ने कंचनजंगा एक्सप्रेस को पीछे से जोर से धक्का मारा । इस दुर्घटना में १५ यात्री मारे गए तथा ६० लोग घायल हुए । मालगाडी के लोको-पायलट के सिग्नल की ओर ध्यान न देने के कारण यह दुर्घटना होने का संदेह है । भले ही इस दुर्घटना की जांच का आदेश दिया गया है; परंतु ऐसा दिखाई देता है कि यह दुर्घटना मानवीय चूक के कारण हुई है । वास्तव में रेल सर्वसामान्य यात्रियों की पहली यातायात व्यवस्था है । संपूर्ण देश में १ लाख किलोमीटर ‘रेल ट्रैक’ का जाल है तथा प्रतिदिन ढाई करोड लोग रेल से यात्रा करते हैं । इसके कारण ही यात्रियों में रेल के प्रति बहुत विश्वास है; परंतु वर्तमान समय में रेलगाडियों की निरंतर हो रही दुर्घटनाओं के कारण यह विश्वास अल्प होने लगा है ।

रेल सुधार हेतु करोडों रुपए का खर्चा !

भारतीय रेल का इतिहास १८५ वर्ष पुराना है । विश्व की सबसे बडी यातायात की व्यवस्था के रूप में भारतीय रेल की पहचान है । ‘प्रौद्योगिकी में आनेवाले निरंतर परिवर्तनों के कारण कार्यक्षमता में सुधार आया है’, रेल विभाग भले ही ऐसा कहता हो; परंतु दुर्घटनाओं की संख्या बढती ही जा रही है । प्रतिदिन लाखों लोग रेल यात्रा पर निर्भर हैं । वित्तीय वर्ष २०२३-२४ के अर्थसंकल्प में रेल हेतु २.४० लाख करोड रुपए का प्रावधान किया गया है । रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार ५ सहस्र २०० कि.मी. के नए रेलमार्ग बनाए गए । प्रतिवर्ष ८ सहस्र कि.मी. मार्ग का नवीनीकरण होता है । प्रति घंटा १०० कि.मी. की गति से यात्रा होने के लिए पटरियों का आधुनिकीकरण किया जा रहा है । कुछ मार्गाें की गति प्रति घंटा १३० कि.मी. तथा कुछ गतिशील रेलगाडियों की गति (उदा. वन्दे भारत) १६० कि.मी. प्रति घंटा की गति से होने के लिए रेल पटरियां बिछाई जा रही हैं ।

प्रतिवर्ष १-२ रेल दुर्घटनाएं !

भारत को स्वतंत्रता मिलने से लेकर विगत ७५ वर्षों में रेल दुर्घटनाओं की शृंखला टूटी नहीं है । वर्ष १९८१ में बिहार में हुई रेल दुर्घटना में ७५० से अधिक यात्रियों की मृत्यु हुई थी । अनेक बार इन दुर्घटनाओं के समान कारण सामने आने पर भी आगे जाकर उनमें पर्याप्त मात्रा में सुधार नहीं होते, यह इस व्यवस्था की बहुत बडी असफलता है । तकनीकी चूक के कारण २ रेलगाडियों के एक-दूसरे पर टकराने जैसी घटनाएं बार-बार होना, इस व्यवस्था की सबसे बडी त्रुटि है । २ जून २०२३ को ओडिशा के बालासोर जिले में कोरोमंडल एक्सप्रेस की हुई दुर्घटना में २७५ यात्रियों की मृत्यु हुई थी, जबकि लगभग १ सहस्र यात्री घायल हुए थे । एक एक्सप्रेस रेल गाडी पटरी से फिसल गई तथा दूसरी दिशा से आनेवाली रेलगाडी से टकराई तथा वह निकट स्थित मालगाडी से टकरा गई । इस प्रकार की यह विचित्र तिहरी (ट्रिपल) दुर्घटना थी । आंध्र प्रदेश में २ रेलगाडियों के आमने-सामने टकराने से हुई भीषण दुर्घटना में १०० यात्री मारे गए, तथा ४० यात्री गंभीर रूप से घायल हुए । इस प्रकार से रेलगाडियों की भीषण दुर्घटनाओं की शृंखला ही चल रही है । इसमें निर्दाेष यात्रियों को जान गंवानी पड रही है । जून २०२३ में बालासोर में ३ गाडियां आपस में टकराने के केवल २ माह उपरांत ही अर्थात अगस्त माह में उदयपुर-खजुराहो-द्रोणागिरी एक्सप्रेस में आग लगी । उसी माह में २६ जून को मदुराई स्थानक पर कडी पूनलू-मदुराई एक्सप्रेस के निजी कोच में सिलिंडर फटने से १० लोग झुलसकर मर गए । रेल मंत्रालय के द्वारा ही दी गई जानकारी में वित्तीय वर्ष २०२२-२३ में ४८ रेल दुर्घटनाएं हुई हैं । ये आंकडे चिंताजनक हैं । एक ही वर्ष में यदि इतनी दुर्घटनाएं होती हों, तो उससे रेल विभाग की कार्यक्षमता पर प्रश्न चिह्न लगेंगे ही !

मानवीय चूकें कौन सी हैं ?

रेल कर्मचारी, जो रेल तथा ट्रैक की कार्यवाही, रख-रखाव तथा व्यवस्थापन के लिए उत्तरदायी हैं, उनसे अनदेखी, भ्रष्टाचार अथवा सुरक्षा नियम एवं प्रक्रिया, अनुचित सिग्नलिंग, सदोष संप्रेषण, अतिवेग, दोष अथवा खतरों की अनदेखी जैसी मानवीय चूकें होती हैं । रेल कर्मचारियों को पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं दिया जाता तथा उनके पास संवाद कुशलता नहीं होती, जिसके कारण उनकी कार्यक्षमता तथा समन्वय क्षमता प्रभावित होती है । ट्रैक पर स्थित रेल की गति तथा दिशा नियंत्रित करनेवाली सिग्नल व्यवस्था में तकनीकी विफलता, खंडित बिजली की आपूर्ति अथवा मानवीय चूकों के कारण नाकाम हो सकती है । सिग्नल में खराबी के कारण रेल गाडियां गलत पटरियों से जा सकती हैं । पिछले वर्ष ओडिशा में हुई रेल दुर्घटना ‘इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग’ में आए परिवर्तन के कारण हुई थी । २ रेलगाडियों में सामने से टकराव, रेल के डिब्बों में आग लगना, रेल पटरियों में दरारें आना, चालक के द्वारा सिग्नल तोडा जाना, गाडियों की अति तीव्र गति आदि कारणों से रेल दुर्घटनाएं होती हैं, इसे रेल विभाग ने ही स्वीकार किया है । रेल विभाग को इन दुर्घटनाओं के कारण ज्ञात हैं । रेल विभाग उसपर उपाय भी करता होगा; परंतु मानवीय चूकों पर और क्या उपाय किए जा सकते हैं ?, इसपर विचार होना अपेक्षित है ।

उपाय !

हमारे रेल विभाग की तुलना अन्य देशों की रेल व्यवस्थाओं से की जाए, तो भारत रेल सुधारों में बहुत पीछे है । अन्य देशों के स्तर तक पहुंचने के लिए भारत को उसकी मौलिक सुविधाओं तथा सुरक्षा उपयों में सुधार करने की आवश्यकता है । मेट्रो तथा बुलेट ट्रेन पर करोडों रुपए खर्च करने से पूर्व केंद्र सरकार को वर्तमान में चल रही रेल व्यवस्था में बडे स्तर पर सुधार करने चाहिए । अधूरी सुविधाएं, पुरानी कालबाह्य व्यवस्था, पर्याप्त कर्मचारियों का अभाव, वर्तमान कर्मचारियों पर स्थित काम का तनाव, भ्रष्टाचार, सुरक्षा नियमों की होनेवाली अनदेखी आदि बातों की ओर रेल विभाग को ध्यान देना चाहिए । रेल विभाग को पिछले अनेक वर्षाें से लंबित कर्मचारियों की भर्ती करनी चाहिए तथा पुरानी एवं कालबाह्य (आउटडेटेड) व्यवस्था को हटाकर नई अद्यतन (अपडेटेड) व्यवस्था अपनानी चाहिए । रेल दुर्घटनाएं टालने के लिए ‘आर.डी.एच.ओ.’ ने ‘एंटी कोलिजन डिवाइस’ (गाडियों के टकराव विरोधी उपकरण) का विकल्प दिया है । इससे गाडियों में टकराव नहीं होता । यह प्रणाली जी.पी.एस. सिस्टम (उपग्रह के द्वारा चलनेवाली प्रणाली) तथा रेडियो कम्युनिकेशन सेंसर पर आधारित है । इन जैसे अत्यााधुनिक प्रणालियों का उपयोग किया गया, तो कुछ मात्रा में रेल दुर्घटनाएं टाली जा सकती हैं । रेल यात्रियों की सुरक्षा हेतु रेल विभाग इन विकल्पों का शीघ्रातिशीघ्र उपयोग करे !

रेल विभाग पुरानी तथा कालबाह्य व्यवस्था हटाकर नई आधुनिक व्यवस्था का उपयोग कर दुर्घटर्नाओं को टाले !