साधको, ‘निरंतर नकारात्मक विचार करने से और उस विषय पर अन्यों से बार-बार चर्चा करने से मन पर नकारात्मकता का संस्कार होता है’, यह ध्यान में रखकर योग्य मार्गदर्शन तथा स्वसूचना लें !

स्वयं की समस्या के बारे में विचार करने से तथा उसके बारे में निरंतर अन्यों को बताना, मन को नकारात्मक स्वसूचना देने समान होता है । परिणामस्वरूप मन के नकारात्मक विचारों का पोषण होता है और मन की अस्थिरता बढती है तथा कार्यक्षमता भी घटती है ।

शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर सात्त्विक आहार का महत्त्व !

सत्त्वगुण की वृद्धि करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानेवाला सात्त्विक आहार !      ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।’, अर्थात साधना करने के लिए शरीर ही खरा महत्त्वपूर्ण माध्यम है; क्योंकि मनुष्यजन्म के अंतिम लक्ष्य ईश्वरप्राप्ति को साध्य करने हेतु मनुष्य को देह की अत्यंत आवश्यकता होती है । शरीर स्वस्थ रहने के लिए आहार अच्छा और … Read more

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के नृत्य विभाग में सीखनेवाली कु. वेदिका मोदी द्वारा प्रस्तुत भरतनाट्यम् का कु. मधुरा भोसले द्वारा किया गया सूक्ष्म परीक्षण !

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के नृत्य विभाग में सीखनेवाली ५७ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. वेदिका मोदी (आयु १४ वर्ष) द्वारा प्रस्तुत भरतनाट्यम् का कु. मधुरा भोसले द्वारा किया गया सूक्ष्म परीक्षण ! नृत्यसाधना के विषय में अद्वितीय शोधकार्य करनेवाला महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय      ‘६.२.२०२२ को महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की नृत्य विभाग में सीखनेवाली जोधपुर … Read more

महाशिवरात्रि पर विशेष आलेख

यह अखिल सृष्टि प्रकट होती है और अपनी अवधि पूर्ण होने पर महाप्रलय में लीन हो जाती है। सृष्टि और महाप्रलय में उस शिव की त्रिगुणात्मिका शक्ति के तीनों गुण (सत्त्वगुण, रजोगुण, तमोगुण) साम्य अवस्था में रहते हैं।

परात्पर गुरु डॉक्टरजी का साधना के विषय में मार्गदर्शन !

अध्यात्म में साधना का आरंभ अर्थात ‘अ’(A) ऐसा कुछ नहीं होता । प्रत्येक के आध्यात्मिक स्तर एवं साधनामार्ग के अनुसार उसकी साधना आरंभ होती है ।

जोधपुर की दैवी बालसाधिका कु. वेदिका मोदी को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के समक्ष भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुत करते देख कु. मधुरा भोसले को हुई अनुभूति !

नृत्य करते समय कु. वेदिका ने घागरा पहना था । उसे देखकर प्रतीत हुआ कि घागरा पहनने के कारण उसके स्थान पर ‘एक नन्हीसी गोपी ही श्रीकृष्ण के समक्ष भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुत कर नृत्य के माध्यम से श्रीकृष्ण की उपासना कर रही है । उसका यह नृत्य हो रहा था, तब उसके हृदय में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भाव जागृत हो गया ।

वाराणसी सेवाकेंद्र के प्रांगण में उगा हुआ विशेषतापूर्ण अमरूद का पेड !

वाराणसी सेवाकेंद्र के प्रांगण में अमरूद का एक पेड है । इस अमरूद के पेड की विशेषता यह है कि उसके कई स्थानों में एक ही स्थान पर ४ से ५ अमरूद आते हैं और एक ही शाखा की एक ही पंक्ति में कई अमरूद आते हैं । इस पेड का तना मध्यम आकार का है । इस पेड की ओर देखने पर आनंद और उत्साह प्रतीत होता है ।

त्याग एवं निरपेक्षता जैसे विशिष्ट गुणों के कारण सनातन के ११७ वें संतपद पर विराजमान फोंडा (गोवा) की पू. (श्रीमती) सुधा सिंगबाळजी (आयु ८२ वर्ष) !

मूलत: सावईवेरे, गोवा की श्रीमती सुधा उमाकांत सिंगबाळजी सनातन के संत पू. नीलेश सिंगबाळजी की माताश्री और श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी की सास हैं । श्रीमती सुधा सिंगबाळजी पहले से ही धार्मिक एवं आतिथ्यशील वृत्ति की हैं ।

परात्पर गुरु डॉक्टरजी का राष्ट्र व साधना के विषय में मार्गदर्शन !

अनेक राजनेताओं को जब उनके राजनीतिक दल प्रत्याशी नेता नहीं बनाते, तब वे उस राजनीतिक दल को छोडकर प्रत्याशी बनानेवाले अन्य राजनीतिक दल में चले जाते हैं । जिन नेताओं में पक्ष के प्रति निष्ठा नहीं है, उनमें देश के प्रति कितनी निष्ठा होगी ? और ऐसे स्वार्थी राजनेता जनता का भी क्या भला करेंगे ?

सनातन के ज्ञान-प्राप्तकर्ता साधकों को मिलनेवाला समझने में कठिन; परंतु अपूर्व ज्ञान !

विष्णुस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के धर्मसंस्थापना के कार्य को ज्ञानशक्ति का समर्थन मिलने के लिए ईश्वर सनातन संस्था की ओर ज्ञानशक्ति का प्रवाह भेज रहे हैं । इस प्रवाह में ज्ञानशक्ति से ओतप्रोत चैतन्यदायी सूक्ष्म विचार ब्रह्मांड की रिक्ति से पृथ्वी की दिशा में प्रक्षेपित हो रहा है ।