सनातन के ज्ञान-प्राप्तकर्ता साधकों को मिलनेवाला समझने में कठिन; परंतु अपूर्व ज्ञान !

‘सनातन प्रभात’ एवं ‘सनातन संस्था’ के जालस्थल पर पढें लेखमाला !

पृथ्वी पर पहली बार उपलब्ध ईश्वरीय ज्ञान !

     सनातन के ज्ञान-प्राप्तकर्ता साधकों को मिलनेवाला ज्ञान ‘ऐसा भी होता है’, यह पाठकों को पता चले, इसके लिए जगह के अभाववश इस ज्ञान के केवल मुख्य शीर्षक एवं उनका सारांश यहां दिया है । इसकी विस्तृत जानकारी नीचे दिए गए जालस्थल पर उपलब्ध करवाई जाएगी ।

सनातन के ज्ञान-प्राप्तकर्ता साधकों को होनेवाले विविध प्रकार के कष्ट एवं मिलनेवाले ज्ञान की विशेषताएं !

कु. मधुरा भोसले

     विष्णुस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के धर्मसंस्थापना के कार्य को ज्ञानशक्ति का समर्थन मिलने के लिए ईश्वर सनातन संस्था की ओर ज्ञानशक्ति का प्रवाह भेज रहे हैं । इस प्रवाह में ज्ञानशक्ति से ओतप्रोत चैतन्यदायी सूक्ष्म विचार ब्रह्मांड की रिक्ति से पृथ्वी की दिशा में प्रक्षेपित हो रहा है । ज्ञानावतारी परात्पर गुरु डॉक्टर आठवलेजी की कृपा के कारण सनातन संस्था के मार्गदर्शनानुसार साधना करनेवाले कुछ साधकों को सूक्ष्म से ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हो रहा है । इन साधकों को सूक्ष्म से ईश्वर से प्राप्त होनेवाला ज्ञान मिलते समय शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर विविध प्रकार के कष्ट हो रहे हैं । इन कष्टों की विस्तृत जानकारी दी है ।

ज्ञान-प्राप्तकर्त्री – कु. मधुरा भोसले (आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत)

अनुक्रमणिका

१. ज्ञान-प्राप्तकर्ता साधकों को पाताल एवं नरक से शक्तिशाली अनिष्ट शक्तियों को कष्ट देना, कष्ट देने का उद्देश्य, कष्ट का स्वरूप, कष्ट के कारण होनेवाला परिणाम एवं कष्ट की मात्रा

२. विविध उच्च लोकों के उन्नत जीवों द्वारा ज्ञान-प्राप्तकर्ता साधकों की सहायता करना

३. सूक्ष्म ज्ञान-प्राप्तकर्ता साधकों को धर्म एवं अध्यात्म के संदर्भ में मिलनेवाले ज्ञान में भेद

इस अनुक्रमणिका का विस्तृत लेख जालस्थल पर उपलब्ध है ।
लेख पढने के लिए देखें –

सनातन प्रभात का जालस्थल : sanatanprabhat.org/hindi/47989.html

सनातन संस्था का जालस्थल : https://www.sanatan.org/hindi/a/35421.html

बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्ति के कष्ट के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेदादि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।