रथसप्तमी अर्थात सूर्यदेवता के पूजन का दिन ! इस दिन से सूर्य अपने रथ में बैठकर उत्तरायण में मार्गक्रमण करते हैं । सूर्य, भगवान नारायण का ही एक रूप होने से उन्हें ‘सूर्यनारायण’ कहा जाता है । सूर्य जैसे अंधकार नष्ट कर, चराचर सृष्टि को प्रकाश प्रदान करता है, उसीप्रकार श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवले हे साधकों के जीवन से अज्ञानरूपी अंधकार दूर कर, साधकों को ज्ञानरूपी प्रकाश देनेवाले ज्ञानगुरु एवं तेजोमय गुरु हैं । ऐसे तेजोमय परात्पर गुरुदेवजी की अपार कृपा से रथसप्तमी के दिन अर्थात ७ फरवरी २०२२ को सनातन की अद्वितीय संतश्रृंखला में एक और मणि जुड गया । वह मणि हैं हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक संत पू. नीलेश सिंगबाळजीकी माताश्री श्रीमती सुधा उमाकांत सिंगबाळजी (आयु ८२ वर्ष) जो ‘व्यष्टि संत’ के रूप में सनातन के ११७ वें संतपद पर विराजमान हो गई हैं । यह आनंदवार्ता परात्पर गुरु डॉक्टरजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी (श्रीमती सुधा सिंगबाळजी की बहू) ने दी । उनके साथ ही सिंगबाळ परिवार के घर का दायित्व अत्यंत आत्मीयता से संभालनेवाली सुश्री (कु.) कला खेडेकर (आयु ५३ वर्ष) का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत घोषित किया गया ।
इस मंगलमय अवसर पर पू. नीलेश सिंगबाळजी ने पू. (श्रीमती) सुधा सिंगबाळजी को पुष्पहार अर्पण कर और भेंटवस्तु देकर सम्मान किया । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने सुश्री (कु.) कला खेडेकर को भेंटवस्तु देकर उन्हें सम्मानित किया । इस अवसर पर पू. (श्रीमती) सुधा सिंगबाळजी का पोता श्री. सोहम् नीलेश सिंगबाळ (आयु २४ वर्ष) एवं अन्य कुछ साधक उपस्थित थे ।
सब कुछ परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की ही कृपा है ! – पू. (श्रीमती) सुधा सिंगबाळजी का मनोगतसत्संग के समय पू. सिंगबाळजी भावावस्था एवं अधिक आयु के कारण अपना मनोगत व्यक्त नहीं कर सकीं; परंतु सम्मान होने के उपरांत पू. नीलेश सिंगबाळजी से बातें करते समय पू. सिंगबाळजी अत्यंत कृतज्ञतापूर्वक बोलीं, ‘‘हम वास्तव में अत्यंत सामान्य हैं । क्या कभी कोई हम पर इतनी कृपा करता ? परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कारण सब हुआ । सब उनकी ही कृपा है ।’’ |
पू. (श्रीमती) सुधा सिंगबाळजी के विषय में परिजनों का मनोगत !
त्याग एवं निरपेक्षता के कारण परात्पर गुरुदेवजी ने पू. माताश्री की आंतरिक साधना करवा ली ! – श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी (बहू)
मेरे विवाह के पश्चात जब से मैं घर आई, तब से ही बहू के रूप में उन्होंने मुझसे कभी कोई अपेक्षा नहीं की । वे सदैव मेरी प्रशंसा और सहायता करती हैं । पहले से ही कुलदेवता की उपासना, साधना के आरंभ में प.पू. भक्तराज महाराजजी से आंतरिक सान्निध्य और अब परात्पर गुरुदेवजी पर श्रद्धा, ऐसी पू. माताश्री की साधना यात्रा हुई । गत दो-तीन माह से उनमें गति से परिवर्तन हुआ । त्याग एवं निरपेक्षता के कारण परात्पर गुरुदेव ने पू. माताश्री की आंतरिक साधना करवा ली ।
पू. दादी की बातों में सदैव परात्पर गुरु डॉक्टरजी का नाम होता है ! – श्री. सोहम् नीलेश सिंगबाळ (पोता)
पू. दादी मेरी मां (श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदाजी) की ओर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखती हैं । गत कुछ समय से पू. दादी में श्रद्धा एवं भाव बढ गया है । उनकी बातों में सतत परात्पर गुरुदेवजी का ही नाम होता है । जब से यातायात बंदी आरंभ हुई, हम (मैं और मां) आश्रम में ही रहते हैं । ‘हम प्रतिदिन घर नहीं आ सकते ।’, यह पू. दादी ने पूर्णरूप से स्वीकार कर लिया है । वे मुझसे सदा यही कहती हैं, ‘तू अपनी साधना पर ध्यान दे ।’
पू. (श्रीमती) सुधा सिंगबाळजी के विषय में उनके पुत्र पू. नीलेश सिंगबाळजी को ध्यान में आई गुणविशेषताएं
१. त्यागी वृत्ति एवं भगवान के प्रति भाव, ये गुण पू. मां में पहले से ही अनुभव हुए !
पहले से ही प्रत्येक परिस्थिति में उनका जीवन त्यागमय रहा है । मैं उत्तर भारत में धर्मप्रसार की सेवा करता हूं और वर्ष में केवल एक ही बार घर आता हूं । तब उनका विचार यही रहता है कि वे मेरे लिए क्या करें । उन्हें कभी ऐसा नहीं लगता कि मुझे उनके लिए कुछ करना चाहिए ।
२. परेच्छा, निरपेक्षता एवं त्यागी जीवन
मां के रहन-सहन में अत्यंत सादगी है । मेरे पिताजी के सहयोगी डॉक्टर छुट्टियों में अपने परिवार के साथ घूमने के लिए पर्यटनस्थल अथवा अन्य राज्यों में जाते थे; परंतु मां की वैसी इच्छा कभी भी नहीं हुई । उनके इस आचरण से हमने यह सीखा कि जो भी परिस्थिति है उसी में संतोष कर, सतत परेच्छा एवं निरपेक्षता से जीवनयापन करना चाहिए । उनके त्याग का आदर्श हमें देखने के लिए मिला ।
३. स्वीकारने की वृत्ति
३ अ. बेटा-बहू के नौकरी छोडकर पूर्णकाल साधना करने का निश्चय करने पर उनका समर्थन करना और उनसे अपेक्षा न होना : जब हमने (मैं और मेरी पत्नी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी) ने नौकरी छोडकर पूर्णकाल साधना करने का निश्चय किया, तब मां को स्वाभाविक ही हमारे भविष्य की चिंता हुई; परंतु उनका हमें विरोध नहीं था । उन्हें कभी हमसे कोई भी अपेक्षा नहीं थी और अब भी नहीं है । मां की आयु ८३ वर्ष है । वयोवृद्ध होने से वे बीमार भी रहती हैं, तब भी उन्हें यह अपेक्षा नहीं रहती कि ‘बहू (‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी) घर पर रहकर उनकी सेवा करें ।
३ आ. साढे सत्रह वर्षाें से बेटा उत्तर भारत में सेवारत होना, पर उससे कोई अपेक्षा न करना : मैं धर्मप्रसार के निमित्त साढे सत्रह वर्षाें से उत्तर भारत में हूं । जब मैं वहां जा रहा था, तब उनका विरोध नहीं था । आरंभ के कुछ समय छोडकर, मैं वर्ष में केवल एक ही बार घर आता हूं । तब उन्हें बहुत आनंद होता है । जब मैं पुन: घर से निकलने लगता, तो उन्हें थोडा बुरा लगता था; परंतु फिर वह अपने मन पर नियंत्रण रख लेतीं । उन्होंने कभी ऐसा हठ नहीं किया कि ‘मैं पुन: घर आऊं ।’ गुरुदेव ने (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने) इस माध्यम से मां के मन का बडा त्याग करवा लिया ।
३ इ. पोता पूर्णकाल साधनारत होने पर उसके गुण देख उसकी प्रशंसा करना : सोहम् के पूर्णसमय साधना करने का निर्णय लेने पर आरंभ में मां को उसके भविष्य की चिंता हुई थी; परंतु कुछ दिनों में उन्होंने उसे स्वीकार लिया । अब सोहम् पर साधना के कारण हुए संस्कार और उसका साधकत्व देखकर वे कहती हैं, ‘‘सोहम् जैसा गुणी लडका नहीं ।’’
– (पू.) श्री. नीलेश सिंगबाळ (सुपुत्र), हिन्दू जनजागृति समिति के मार्गदर्शक संत, वाराणसी, उत्तर प्रदेश. (७.१.२०२२)
शांत, स्थिर, त्यागी वृत्ति एवं ईश्वर के प्रति श्रद्धा व भाव रखनेवालीं पू. (श्रीमती) सुधा सिंगबाळजी !‘मूलत: सावईवेरे, गोवा की श्रीमती सुधा उमाकांत सिंगबाळजी सनातन के संत पू. नीलेश सिंगबाळजी की माताश्री और श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी की सास हैं । श्रीमती सुधा सिंगबाळजी पहले से ही धार्मिक एवं आतिथ्यशील वृत्ति की हैं । पू. नीलेश सिंगबाळजी गत अनेक वर्षों से धर्मप्रसार के लिए वाराणसी में रहते हैं, तथा श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी रामनाथी आश्रम में रहकर सेवा करती हैं । श्रीमती सिंगबाळजी ने इन दोनों को सेवा एवं साधना करने के लिए सदैव ही प्रोत्साहन दिया है । ‘बेटा-बहू पास रहकर मेरी सेवा करें’, ऐसी अपेक्षा उन्होंने कभी नहीं की । ‘त्यागी एवं निरपेक्ष वृत्ति’ श्रीमती सिंगबाळजी की विशेषता है । इसलिए उनकी आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र गति से हो रही है । अनेक शारीरिक व्याधियां होते हुए भी उन्होंने भगवान के प्रति श्रद्धा के बल पर सर्व कठिन प्रसंगों का सामना किया । शांत, स्थिर एवं त्यागी वृत्ति के कारण उन्होंने वर्ष २०१५ में ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया था । भगवान पर श्रद्धा एवं आंतरिक सान्निध्य बढने से अब उनका आध्यात्मिक स्तर वेग से बढ रहा है । उनकी देह में अनेक दैवीय परिवर्तन हुए हैं । ये सर्व परिवर्तन उनके संतपद पर पहुंचने के द्योतक हैं । मुझे यह बताने में अत्यंत आनंद हो रहा है कि श्रीमती सुधा सिंगबाळजी ‘व्यष्टि संत’ के रूप में सनातन के ११७ वें संतपद पर विराजमान हुईं हैं । एक ही परिवार के तीन सदस्यों का संतपद पर पहुंचना, यह एक अलौकिक घटना है । त्याग का मूर्तिमंत उदाहरण सिंगबाळ परिवार सर्व साधकों के लिए आदर्श है । पू. सुधा सिंगबाळजी का पोता श्री. सोहम् (आयु २४ वर्ष) बचपन से ही साधना करता है, इसलिए उसकी आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र गति से हो रही है । ‘प्रत्येक परिस्थिति का आनंद से सामना करनेवाली पू. (श्रीमती) सुधा सिंगबाळजी की आगे भी शीघ्र गति से प्रगति होगी’, इसकी मुझे निश्चिति है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (४.२.२०२२) |