महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के नृत्य विभाग में सीखनेवाली ५७ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. वेदिका मोदी (आयु १४ वर्ष) द्वारा प्रस्तुत भरतनाट्यम् का कु. मधुरा भोसले द्वारा किया गया सूक्ष्म परीक्षण !
नृत्यसाधना के विषय में अद्वितीय शोधकार्य करनेवाला महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय
‘६.२.२०२२ को महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की नृत्य विभाग में सीखनेवाली जोधपुर (राजस्थान) की ५७ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. वेदिका मोदी (आयु १४ वर्ष) के ‘अलारिपू’ भरतनाट्यम् नृत्य का प्रयोग लिया गया । इस प्रयोग का सूक्ष्म परिणाम निम्नानुसार है –
१. भरतनाट्यम् नृत्य प्रकार ‘अलारिपू’ की आध्यात्मिक विशेषता
कु. वेदिका ने जो भरतनाट्यम् का ‘अलारिपू’ नृत्य प्रकार प्रस्तुत किया, वह है ‘अलारिपू’ अर्थात देवताओं का आवाहन करने हेतु किया जानेवाला नृत्य प्रकार !
– कु. मृणालिनी देवघरे, भरतनाट्यम् विशारद, रामनाथी, गोवा.
२. नर्तक अथवा नर्तकी द्वारा नृत्य के आरंभ में नमस्कार करने के कारण आध्यात्मिक स्तर पर हुआ लाभ
नृत्य के आरंभ में वेदिका ने भरतनाट्यम् नृत्य प्रकार के अनुसार नमस्कार किया । तब उसने जब भूमि को नमस्कार किया, तब भूदेवी ने उसे आशीर्वाद दिया । इस आशीर्वाद के कारण उसे नृत्य करने के लिए भूदेवी का चैतन्य मिला । उसके कारण इस नृत्य में भूमि पर पैर पटकने के कारण भूदेवी का अपमान नहीं होता तथा नृत्य से भूदेवी की उपासना होती है । इसलिए भारतीय शास्त्रीय नृत्य के आरंभ में भूमि को, गुरु को और देवता को नमस्कार करने की पद्धति कितनी उचित है’, यह इससे सीखने के लिए मिलता है ।
३. कु. वेदिका द्वारा नृत्य आरंभ करने पर उसमें देवी का तत्त्व जागृत होना और उससे शक्ति, भाव एवं आनंद की तरंगों का प्रक्षेपण होना
कु. वेदिका के नृत्य आरंभ करने पर उसके सिर पर गुलाबी रंग के प्रकाश का एक प्रवाह आया । इस प्रकाश के प्रवाह से कु. वेदिका की ओर देवी का ३ प्रतिशत तत्त्व आकर्षित हुआ और वह उसके नृत्य से वातावरण में प्रक्षेपित हुआ । तब कु. वेदिका की ओर से तारक शक्ति, भाव एवं आनंद की तरंगों का प्रक्षेपण हुआ । उस समय कार्यक्रम स्थल पर उच्च स्वर्गलोक का वायुमंडल ३० प्रतिशत और महर्लाेक का वायुमंडल १० प्रतिशत तक बन गया । उसके कारण उसका नृत्य देखते समय दिव्यता की अनुभूति हुई ।
४. कु. वेदिका के भावपूर्ण प्रस्तुतीकरण के कारण कार्यक्रम स्थल पर दैवी शक्ति का आगमन होना एवं ऋषियों द्वारा सूक्ष्म से बेला और गुलाब की वृष्टि करना
वेदिका का नृत्य पूर्ण होने पर उस पर ऋषिलोक के ऋषियों द्वारा बेला की कलियों और गुलाब की पंखुडियों की वृष्टि किए जाने का दृश्य दिखाई दिया । तब वातावरण में सूक्ष्म से चमेली और गुलाब की सुगंध आई । चमेली की सुगंध से देवी का तत्त्व और गुलाब की सुगंध से वातावरण में विष्णुतत्त्व फैल गया । गुलाब की सुगंध में मिठास है । इस मिठास में विष्णुतत्त्व को आकर्षित कर उसे वातावरण में प्रक्षेपित करने का सामर्थ्य है । इस कारण ही गुलाब में विष्णुतत्त्व है । इसलिए श्रीविष्णु को तुलसी की माला के उपरांत गुलाब की माला पहनाना प्रिय है । दक्षिण भारत में श्री व्यंकटेश बालाजी को गुलाब के फूलों की बडी माला अर्पण करने की पद्धति है ।
कु. वेदिका द्वारा भावपूर्ण पद्धति से देवताओं का आवाहन करनेवाला नृत्य किए जाने से इस नृत्य के कारण कार्यक्रम स्थल पर दैवीय शक्तियों का आगमन हुआ । उससे कु. वेदिका में कार्यरत देवताओं के तत्त्वों पर ऋषि लोक के ऋषियों ने पुष्पवृष्टि कर उनका स्वागत किया । (यह सूक्ष्म परीक्षण करने के उपरांत मुझे यह ज्ञात हुआ कि भरतनाट्यम् का ‘अलारिपू’ यह नृत्य प्रकार देवताओं का आवाहन करने हेतु किया जाता है ।’ – कु. मधुरा भोसले)
५. ‘अलारिपू’ नृत्य प्रकार प्रस्तुत करते समय उसकी देह से निर्गुण चैतन्य के श्वेत रंग के तरंगों का प्रक्षेपण होना
‘अलारिपू’ नृत्य प्रकार प्रस्तुत करते समय उसकी देह से निर्गुण चैतन्य के श्वेत रंग की तरंगों का प्रक्षेपण होकर वे तरंगें उसके आस-पास १० से १५ फीट तक फैल गईं । उसके कारण वायुमंडल की १० प्रतिशत तक शुद्धि हुई ।
६. ‘अलारिपू’ नृत्यप्रकार प्रस्तुत करते समय कु. वेदिका से प्रक्षेपित विविध घटकों का अनुपात (प्रतिशत)
७. भक्ति, कर्म एवं ज्ञान, इन योगों के अनुसार साधना होना
कु. वेदिका द्वारा भक्तियोग के अनुसार भावपूर्ण पद्धति से, कर्मयोग के अनुसार परिपूर्ण एवं नृत्यशास्त्र के अनुसार अचूक नृत्य करने के कारण उसके द्वारा हुई नृत्योपासना के कारण शिव एवं पार्वती उस पर प्रसन्न हुए, ऐसा प्रतीत हुआ । तब कार्यक्रम स्थल पर सूक्ष्म से शिव एवं पार्वती के आने का प्रतीत हुआ । तब वातावरण में कर्पूर की सुगंध आई ।
८. कृतज्ञता
‘भोलेनाथ भगवान शिव एवं माता पार्वती की कृपा के कारण कु. वेदिका मोदी द्वारा प्रस्तुत भरतनाट्यम् नृत्य का सूक्ष्म स्तर पर कितना अच्छा परिणाम मिलता है’, यह मुझे सीखने के लिए मिला और मेरे मन पर भारतीय शास्त्रीय नृत्य का आध्यात्मिक महत्त्व अंकित हुआ’, इसके लिए मैं भगवान के चरणों में कृतज्ञ हूं । नटराज शिव भारतीय शास्त्रीय नृत्य के जनक हैं और पार्वती माता ‘लास्य’ (मोहक एवं सुकोमल नृत्य) नृत्य की जनक हैं । इसलिए मुझे इस नृत्य के प्रयोग से संबंधित लेखन करना संभव हुआ’, इसके लिए मैं उनके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ हूं !’
– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान) (आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (८.२.२०२२)
सूक्ष्म परीक्षण : किसी घटना के विषय में अथवा प्रक्रिया के विषय में चित्त को (अंतर्मन को) जो प्रतीत होता है, उसे ‘सूक्ष्म परीक्षण’ कहते हैं ।