सूक्ष्म से मिलनेवाले ज्ञान में अथवा नाडीपट्टिका में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का उल्लेख ‘संत’ न करते हुए ‘विष्णु का अंशावतार’ होने के विविध कारण !

अन्य संप्रदायों में उनके द्वारा बताई साधना करते समय उस साधक को कुछ न कुछ बंधन पालने पडते हैं; परंतु सनातन में साधना करते समय साधना के अतिरिक्त अन्य कोई भी बंधन नहीं बताए जाते ।

ग्रंथलेखन का अद्वितीय कार्य करनेवाले एकमात्र परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी !

आज भी संतों और अध्यात्म के अध्येताओं ने ग्रंथ के संबंध में कुछ सुधार सुझाए, तो परात्पर गुरु डॉक्टरजी उनके सुझावों का आनंद से स्वीकार कर उसके अनुसार ग्रंथों में सुधार करते हैं । 

स्वयं महर्षि जिनकी महिमा वर्णन करते हैं, ऐसे श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

इस विश्व में अनेक लोग स्वयं को ‘गुरु’ कहलाते हैं; परंतु उनमें ‘सच्चे गुरु’ ऐसे कोई नहीं हैं । सप्तर्षियों की दृष्टि से इस पृथ्वी पर ‘गुरु’ अर्थात केवल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ही हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रूप में साक्षात भगवान ही ‘गुरु’ के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं ।

विशिष्ट कष्ट के लिए विशिष्ट देवता का नामजप

सनातन के साधकों को अनिष्ट शक्तियों के कारण आध्यात्मिक कष्ट होने लगे, तब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने हमें समय-समय पर बताया कि ‘सनातन के साधक ईश्वरीय राज्य (हिन्दू राष्ट्र) की स्थापना हेतु कार्यरत हैं; उसके कारण ही साधकों को अधिकांश कष्ट भुगतने पड रहे हैं ।

स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन कर भगवान को अपना बनाने के लिए कहना

‘मन, बुद्धि एवं चित्त शुद्ध हुए बिना हम भगवान से एकरूप नहीं हो सकते’, यह सिद्धांत है । इस प्रकार भगवान को अपना बनाना सिखाकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी बहुत पहले से साधकों से आपातकाल की तैयारी करवा ले रहे हैं । 

प्राणशक्ति प्रणाली उपचार पद्धति ढूंढना

रोगनिवारण के संदर्भ में बिंदुदाब, रिफ्लेक्सोलॉजी आदि उपचार-पद्धतियों में पुस्तकें अथवा जानकारों की सहायता आवश्यकता होती है । पिरैमिड, चुंबक चिकित्सा आदि उपचार-पद्धतियों में संबंधित साधन आवश्यक होते हैं ।

साधना और भक्ति द्वारा ही आनेवाले भीषण तीसरे विश्वयुद्ध में भक्तों की रक्षा होगी ।

धर्म अधर्म युद्ध में जो ईश्वर की भक्ति करता है, धर्म के पक्ष में खडा रहता है, ईश्वर उसकी रक्षा करते हैं; परंतु उसके लिए हमें भक्त बनना आवश्यक है ।

सनातन के दूसरे बालसंत पू. वामन अनिरुद्ध राजंदेकर (आयु ३ वर्ष) को ज्ञात हुई परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की महानता !

एक बार पू. वामन (सनातन के दूसरे बालसंत पू. वामन अनिरुद्ध राजंदेकर) ने सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी से कहा, ‘‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी नारायण हैं । नारायण एक ‘तत्त्व’ है । वे तेजतत्त्व हैं । मैं उनके साथ बात नहीं कर सकता ।’’

दुःसाध्य रोग की वेदना सहते हुए ‘गुरुस्मरण, गुरुध्यान और गुरुभक्ति’ के त्रिसूत्रों का पालन कर संतपद प्राप्त करनेवाले पू. (स्व.) डॉ. नंदकिशोर वेदजी !

धन्य वे पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी, जिन्होंने ‘अति अस्वस्थ स्थिति में भी साधना कैसे कर सकते हैैं ?’, यह स्वयं के उदाहरण से साधकों को सिखाया और धन्य वे परात्पर गुरु डॉक्टरजी, जिन्होंने पू. डॉ. वेदजी जैसे संतरत्न दिए !

डॉ. वेदजी ने अपनी बेटी श्रीमती क्षिप्रा जुवेकर के आध्यात्मिक जीवन के विशद किए चरण एवं गुरुदेवजी के प्रति व्यक्त की कृतज्ञता !

‘वर्ष २००० में सरयू विहार, अयोध्या में सनातन संस्था के साधक सत्संग के लिए आए थे, तब क्षिप्रा ने अपने कक्ष का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया । तदुपरांत गुरुकृपा से ‘वह बंद दरवाजा कब खुला, क्षिप्रा सत्संग कब लेने लगी और अयोध्या के सनातन के कार्य का दायित्व भी लेने लगी’, वह पता ही न चला ।