‘साक्षात ईश्वर ने सनातन हिन्दू धर्म की निर्मिति की है । उसके कारण धर्म का प्रत्येक अंग शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से १०० प्रतिशत उचित, लाभकारी तथा परिपूर्ण है ।
१. सूती अथवा रेशमी नौ गज की साडी तथा धोती में बहुत सात्त्विकता एवं चैतन्य होने के कारण, ऐसे अंगवस्त्र पहननेवालों को भी सात्त्विकता एवं चैतन्य का लाभ मिलता है ।

२. स्त्रियों द्वारा नथनी, ठुस्सी, कंगन, पायल, कमरपट्टा इत्यादि सोने-चांदी के आभूषण धारण करने से देवताओं की तेजतत्त्वयुक्त चैतन्य की तरंगें इन आभूषणों की ओर आकृष्ट होती हैं ।
३. चोटी, खोपा अथवा जूडा डालने जैसी सात्त्विक केशरचना करने से महिलाओं में सात्त्विकता बढकर साधना के लिए पोषक सुषुम्ना नाडी चलती रहती है ।
४. पारंपरिक सात्त्विक वेशभूषा तथा आभूषण धारण करने से, साथ ही सात्त्विक केशरचना करने से हमसे धर्माचरण होकर हमपर ईश्वर की कृपा होती है ।
५. पारंपरिक सात्त्विक हिन्दू अंगवस्त्र, आभूषण तथा केशरचना के त्रिवेणी संगम के कारण, त्योहार के दिन वायुमंडल में बडे स्तर पर प्रक्षेपित होनेवाले देवताओं के चैतन्यतरंग अधिक से अधिक स्तर पर ग्रहण होते हैं ।
६. पारंपरिक सात्त्विक हिन्दू अंगवस्त्र, आभूषण तथा केशरचना धारण करनेवाला व्यक्ति; उन्हें देखनेवाला व्यक्ति तथा उसके आसपास के व्यक्तियों को भी सात्त्विकता एवं चैतन्य का लाभ मिलता है तथा सभी में सात्त्विकता बढने में तथा अनिष्ट शक्तियों का कष्ट अल्प होने में सहायता होती है ।
७. देवताओं के चैतन्य से युक्त तरंगों का वातावरण में प्रक्षेपण होता है ।
पारंपरिक सात्त्विक हिन्दू वस्त्र, आभूषण तथा केशरचना के कारण व्यष्टि एवं समष्टि स्तर पर १०० प्रतिशत आध्यात्मिक लाभ होता है । अतः सभी हिन्दू भाई-बहनों से यह निवेदन है कि आनेवाले नवसंवत्सर के दिन, साथ ही पूरे वर्ष में आनेवाले सभी हिन्दू त्योहारों के समय पारंपरिक एवं सात्त्विक वेशभूषा धारण कर तथा संभव हो, तो सोने-चांदी के सात्त्विक पारंपरिक आभूषण धारण कर, चोटी अथवा जूडा जैसी सात्त्विक केशरचना कर देवताओं के शुभाशीर्वाद प्राप्त करें ।’
– सुश्री (कु.) मधुरा भोसले, (आध्यात्मिक स्तर ६५ प्रतिशत) सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्तियों से हो रही पीडा के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपचार वेदादि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं । |