हिन्दू धर्मशास्त्र की रूढि-परंपराओं के पीछे के वैज्ञानिक कारण

श्री. शिरीष देशमुख

     ३१ दिसंबर की रात्रि और १ जनवरी को भारत के अनेक लोग एक-दूसरे को ‘नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं’ देते हैं । इसमें हिन्दुओं की संख्या लक्षणीय रहती है । धर्माभिमानी हिन्दुओं ने मात्र ऐसों का प्रबोधन करने का प्रयत्न किया । ट्विटर समान ‘सोशल नेटवर्किंग’ जालस्थल पर भी ‘My NewYear Is Hindu NewYear’ नाम से लाखों हिन्दू धर्मप्रेमियों ने समाज का प्रबोधन किया; मात्र अनेक सर्वधर्मसमभावी, इसके साथ ही तथाकथित ‘मॉडर्न’ हिन्दुओं का उपहास किया । ऐसे आधुनिकतावादियों की आंखें खोलने के लिए ‘SpeakingTree.in’ जालस्थल पर प्रकाशित यह लेख साभार प्रस्तुत कर रहे हैं । देहली के ‘पॅट्रियाटिक फोरम’ नामक राष्ट्रप्रेमी संस्था से संबंधित वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञ ने शोध कर हिन्दू धर्म की रूढियों के पीछे के वैज्ञानिक कारण ढूंढ निकाले हैं । उसके कुछ कारण आगे दिए हैं ।

१. दोनों हाथ जोडकर नमस्कार करना

     भारतीय संस्कृति में ‘दोनों हाथ जोडकर नमस्कार करना’, यह पद्धति एक-दूसरे के प्रति आदर व्यक्त करने के लिए उपयोग में लाई जाती थी; परंतु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दोनों हाथ जोडकर उंगलियों के सिरे एक-दूसरे को स्पर्श करते हैं । बिंदुदाब पद्धति अनुसार ये उंगलियां आंख, कान एवं मन के दाबबिंदु के हैं । दोनों हाथों की उंगलियों का एक-दूसरे पर दाब देने से उपरोक्त दाबबिंदु कार्यरत होते हैं और हम जिसे नमस्कार करते हैं, वे व्यक्ति दीर्घकाल स्मरण में रहते हैं । इसके साथ ही हस्तांदोलन करने से होनेवाला जंतुओं का प्रादुर्भाव टाल सकते हैं ।

२. माथे पर तिलक लगाना

     माथे पर दोनों आंखों के मध्य जिस स्थान पर तिलक लगाया जाता है, वह स्थान प्राचीन काल से मानवी शरीर का महत्त्वपूर्ण नियंत्रण केंद्र समझा जाता है । तिलक लगाने से शक्ति का लय टाला जाता है । भ्रूमध्य पर लाल रंग का तिलक लगाने से शरीर में ऊर्जा टिकी रहती है और विविध स्तरों पर एकाग्रता नियंत्रित होती है । तिलक लगाते समय भ्रूमध्य एवं आज्ञाचक्र पर अपनेआप दाब आता है । इससे मुख के स्नायुओं को होनेवाली रक्त की आपूर्ति सुलभ होती है ।

३. मंदिर में घंटा होना

     मंदिर में जानेवाले व्यक्ति (गर्भगृह में) प्रवेश करने से पहले घंटा बजाते हैं । आगमशास्त्र के अनुसार घंटा बजाने से अनिष्ट शक्तियों का निर्दालन होता है और घंटे की आवाज भगवान को अच्छी लगती है । वैज्ञानिक दृष्टि से यह आवाज अपने मन के अनावश्यक विचार दूर कर, बुद्धि तीक्ष्ण करती है और भक्तिभाव बढाती है । घंटे की बनावट इस प्रकार है कि उसे बजाने पर मस्तिष्क का बायां और दायां भाग एकरूप होता है । जब हम घंटा बजाते हैं, तब उससे आनेवाली नाद लहरें स्पष्ट होती हैं और उनकी प्रतिध्वनि न्यूनतम सात सेकंद टिकती है । इससे अपने शरीर के सप्तचक्र (हीलिंग सेंटर्स) कार्यरत होने से अपने मस्तिष्क के नकारात्मक विचार नष्ट होते हैं ।

४. तुलसी की पूजा करना

     हिन्दू धर्म में तुलसी को माता का स्थान दिया है । जग के अनेक भागों में तुलसी को धार्मिक एवं आध्यात्मिक स्थान है । वैदिक काल में ऋषि-मुनियों को तुलसी से होनेवाले लाभ का ज्ञान था; इसीलिए तुलसी को देवी का स्वरूप प्राप्त हो गया । इन ऋषि-मुनियों ने समाज की शिक्षित एवं अशिक्षित जनता को तुलसी के पौधों का संवर्धन करने का उपदेश दिया । तुलसी मानव के लिए संजीवनी है । उसमें अनेक वैद्यकीय गुण हैं । वह उत्कृष्ट जंतुविनाशक है । प्रतिदिन तुलसी के रस का सेवन करने से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढती है, रोगों से संरक्षण होता है और शारीरिक स्थिति उत्तम रहती है । इससे आयु बढती है । घर के सामने तुलसी लगाने से मच्छर एवं अन्य कीटक घर में प्रवेश नहीं करते । ऐसा कहते हैं कि सांप तुलसी के पौधे के निकट जाने का साहस नहीं करता । इसलिए प्राचीन काल में घर के चारों ओर तुलसी के अनेक पौधे लगाया करते थे ।

५. पीपल की पूजा करना

     पीपल का वृक्ष छाया देता है । ‘इसके अतिरिक्त उसके उपयोग भी हैं’, यह सर्वसामान्य लोगों को पता नहीं; क्योंकि पीपल को मधुर फल नहीं आते अथवा उसकी लकडी भी निकृष्ट होती है; परंतु ‘पीपल रात में प्राणवायु उत्सर्जित करता है’, यह हमारे पूर्वजों को पता था । इसीलिए, उन्होंने ‘पीपल का संरक्षण एवं संवर्धन हो’, इसलिए पीपल के वृक्ष को देवता का स्थान दिया ।

६. उत्तर दिशा में सिर एवं दक्षिण में पैर करके सोना

     ऐसा मानना है कि ‘दक्षिण में पैर करके सोने से अनिष्ट शक्ति अथवा मृत्यु समीप आती है’, परंतु उसका भी वैज्ञानिक कारण है । मानवी शरीर का अपना चुंबकीय क्षेत्र है । उसे ही हृदय का चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं । रक्तप्रवाह के कारण ऐसा क्षेत्र तैयार होता है । पृथ्वी एक शक्तिशाली चुंबक है । जब हम उत्तर दिशा में सिर एवं दक्षिण में पैर करके सोते हैं, तब अपना चुंबकीय क्षेत्र अप्रमाणबद्ध हो जाता है । इसलिए रक्तदाब एवं हृदय के विकार निर्माण हो सकते हैं । अपने रक्त में लोह होता है और लोह चुंबकीय वाहक होने से उत्तर दिशा में सिर और दक्षिण में पैर करके सोने से शरीर का लोह मस्तिष्क में जमा हो जाता है । अत: ‘सिरदर्द, स्मरणशक्ति का अभाव, पदार्थ न पहचान पाना और भारी मात्रा में मस्तिष्क का क्षय होना’, ये विकार होते हैं ।

७. भूमि पर बैठकर भोजन करना

     यह केवल प्रथा नहीं है । भूमि पर बैठना अर्थात सुखासन में बैठना । सुखासन सहसा योगासन करते समय उपयोग में लाया जाता है । भोजन करते समय सुखासन में बैठने पर पचनक्रिया सुधरने में सहायता होती है । शरीर की वहनप्रक्रिया अन्नपचन के लिए एकाग्र होती है; परंतु आसंदी-पटल पर बैठकर अथवा खडे रहकर भोजन करने से पचनक्रिया भली-भांति नहीं होती ।

८. सूर्य को अर्घ्य देना

     हिन्दू धर्म में ‘प्रतिदिन सवेरे सूर्यदेवता को अर्घ्य देकर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना’, यह एक प्रथा है । अर्थात सूर्यकिरण के पानी में पडने पर अथवा प्रत्यक्ष रूप से आंखों पर पडने से आंखों को लाभ होता है, इसके साथ ही इस रूढि का पालन करने के लिए सवेरे उठने की अच्छी आदत लगती है । सवरे का प्रहर कोई भी कर्म करने के लिए दिन में सर्वाधिक परिणामकारक होता है ।

संग्राहक : श्री. शिरीष देशमुख, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१.९.२०१४)
साभार : SpeakingTree.in जालस्थल (वेबसाइट)