इस वर्ष ३० मार्च २०२५ को नवसंवत्सर अर्थात गुडी पडवा है । इस मंगल दिवस के उपलक्ष्य में हम नववर्षारंभ के संबंध में अधिक जानकारी लेंगे । नवसंवत्सर के विषय में सामान्य प्रश्न तथा हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे द्वारा उनके दिए उत्तर –
प्रश्न : वर्ष कोई भी हो; परंतु वह १२ महिनों का ही होता है । इसका क्या कारण है ?
उत्तर : चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही वर्ष प्रतिपदा, गुडी पडवा अथवा वर्षारंभ कहते हैं । विश्व स्तर पर इसके भिन्न-भिन्न नाम हैं तथा उनके नववर्षारंभ भी भिन्न होते हैं । जिस प्रकार ईसाई वर्ष १ जनवरी से आरंभ होता है, आर्थिक वर्ष अप्रैल से आरंभ होता है, व्यापारिक वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को आरंभ होता है तथा शैक्षिक वर्ष का आरंभ जून के महिने से होता है; उसी प्रकार हिन्दू वर्षारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को होता है । इन सभी वर्षाें में एक समान विशेषता यह है कि ये सभी वर्ष १२ महिनों के ही होते हैं । वर्ष १२ महिनों का ही होना चाहिए, यह सबसे पहले किसने बताया ?, वेदों ने बताया । वेदों में बताया है, ‘द्वादश मासेही संवत्सरः ।’ वेदों ने यह बताया तथा सभी ने उसका स्वीकार किया ।
अंग्रेजी वर्षारंभ एक जनवरी को ही क्यों होता है ?, इसका कोई आधार नहीं है; परंतु चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात गुडी पडवा के दिन नववर्षारंभ क्यों होता है ?, इसके विभिन्न कारण हैं । प्राकृतिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक ! गुडी पडवा के दिन अर्थात वर्ष प्रतिपदा के दिन ही नववर्षारंभ क्यों होता है ?, इसके कारण अब हम देखेंगे ।
प्रश्न : चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही हिन्दुओं का नववर्ष क्यों होता है ? क्या इसका कोई कारण है ?
उत्तर : भगवान ने भगवद्गीता में कहा है, कुसुमाकरी वसंत ऋतु मेरी विभूति है । पडवा के (प्रतिपदा के) आसपास ही सूर्य वसंत संपात में बिंदु पर आते हैं अर्थात तब से वसंत ऋतु का आरंभ होता है । संपात बिंदु का क्या अर्थ है ? क्रांति वृत्त एवं विषुवत वृत्त, ये दोनों वृत्त जहां एक-दूसरे को भेदते हैं, वह बिंदु ‘संपात बिंदु’ होता है । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्षारंभ होने का यह एक ऐतिहासिक कारण है ।
१. ऐतिहासिक कारण
इस दिन शकों ने हूणों पर विजय प्राप्त की । हूण विदेशी आक्रांता एवं विध्वंसकारी थे । इसलिए शकों ने भारतभूमि पर इन आक्रांताओं का निर्दालन किया ।
सम्राट शालिवाहन ने अपने शत्रु पर इस दिन विजय प्राप्त की तथा उस दिन से शालिवाहन शक का आरंभ हुआ । प्रभु श्रीराम ने इसी दिन बाली का वध किया । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन वर्षारंभ क्यों होना चाहिए ?, इसके ये ऐतिहासिक कारण थे ।
२. आध्यात्मिक कारण
पहला आध्यात्मिक कारण यह है कि इस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की उत्पत्ति की तथा इस दिन सत्ययुग का आरंभ हुआ । इस प्रकार गुडी पडवा पूरे वर्ष के साढे तीन मुहूर्ताें में से एक मुहूर्त है । गुडी पडवा, अक्षय तृतीया एवं विजयादशमी, इन मंगल दिनों पर एक तथा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को आधा; इस प्रकार से पूरे वर्ष में साढे तीन मुहूर्त आते हैं । इन शुभ मुहूर्ताें की विशेषता यह है कि अन्य किसी भी दिन कोई मंगल कार्य करना हो, तो उसके लिए मुहूर्त देखना पडता है; परंतु इस दिन सभी घटिकाएं ‘शुभ मुहूर्त’ ही होती हैं । इसलिए हम इस दिन किसी भी मंगल कार्य का आरंभ कर सकते हैं, अतः उन्हें ‘शुभ मुहूर्त’ कहा जाता है । इसके अतिरिक्त इसके अन्य भी कुछ आध्यात्मिक कारण हैं ।

प्रश्न : इस दिन ‘पृथ्वी पर प्रजापति तरंगें प्रक्षेपित होती हैं’, ऐसा बताया जाता है, इस विषय में आप क्या कहेंगे ?
उत्तर : चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन नववर्षारंभ का एक आध्यात्मिक कारण यह है कि इस दिन पृथ्वी पर अधिक से अधिक मात्रा में प्रजापति तरंगें आती हैं । अब हम यह समझ लेते हैं कि प्रजापति तरंगें क्या होती हैं ? नक्षत्र लोकों से २७ तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । उनका विभाजन होकर पृथ्वी पर कुल १०८ तरंगें आती हैं । ये १०८ तरंगें प्रजापति, यम, सूर्य एवं संयुक्त, इन चार प्रकार की होती हैं । इन तरंगों के कारण पृथ्वी पर निम्न विभिन्न परिणाम होते हैं, जिन्हें अब हम समझ लेते हैं ।
१. प्रजापति तरंगों के कारण वनस्पति अंकुरित होती है तथा भूमि की क्षमता बढती है, बुद्धि परिपक्व होती है, कुएं में नए जलस्रोत उत्पन्न होते हैं, शरीर में कफ का प्रकोप होता है इत्यादि ।
२. यम तरंगों के कारण वर्षा होना, वनस्पतियों का अंकुरित होना, स्त्रियों को गर्भ धारण होना, गर्भ का अच्छा विकास होना, शरीर में वायुप्रकोप होना इत्यादि परिणाम होते हैं ।
३. सूर्यतरंगों के कारण भूमि में गर्मी बढकर वनस्पतियां जल जाती हैं, चर्मरोग होते हैं, भूमि की उत्पादन क्षमता अल्प होती है तथा शरीर में पित्तप्रकोप होने लगता है ।
४. संयुक्त तरंगों का अर्थ है प्रजापति, सूर्य एवं यम, इन तीनों तरंगों का मिश्रण ! जिन संयुक्त तरंगों में प्रजापति तरंगों का स्तर अधिक होता है, उन्हें प्रजापति संयुक्त तरंगें कहते हैं । इस प्रकार से सूर्यसंयुक्त एवं यमसंयुक्त तरंगें भी होती हैं ।
चैत्र माह में पृथ्वी पर प्रजापति तरंगें तथा सूर्यतरंगें अधिक मात्रा में आती हैं । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रजापति संयुक्त तरंगें तथा प्रजापति तरंगें सर्वाधिक मात्रा में पृथ्वी पर आती हैं । इस दिन पृथ्वी पर सबसे अधिक मात्रा में सत्त्वगुण आता है; इसके कारण चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन आध्यात्मिक दृष्टि से नववर्षारंभ के लिए उचित है ।
प्रश्न : नवसंवत्सर का अधिक से अधिक लाभ होने हेतु उसे किस प्रकार से मनाया जाना चाहिए ?
उत्तर : अब हम यह समझ लेते हैं कि प्रत्यक्षरूप से नवसंवत्सर किस प्रकार मनाया जाता है ?
१. इस दिन प्रातः शीघ्र उठकर अभ्यंगस्नान करना चाहिए । अभ्यंगस्नान का अर्थ है शरीर को तेल लगाकर उसे त्वचा में घुलने दें तथा उसके उपरांत गुनगुने पानी से स्नान करें । अभ्यंगस्नान करने से रज-तम गुण १ लक्षांश से न्यून होता है तथा सत्त्वगुण १ लक्षांश से बढता है । पूरे वर्ष में अभ्यंगस्नान के लिए ५ दिन बताए गए हैं । उनमें से एक है नवसंवत्सर, दूसरा है फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा अर्थात वसंतोत्सव का आरंभ दिन । अन्य ३ दिन दीपावली के समय आते हैं, उनमें नरक चतुर्दशी, अमावस्या (लक्ष्मीपूजन) एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (दीपावली का पडवा) होता है ।
अभ्यंगस्नान तथा ब्रह्मध्वज (गुडी) का पूजन करने से पहले देश-काल कथन करना होता है । देश-काल कथन की हमारी विशेष पद्धति है । इसमें ब्रह्माजी के जन्म से लेकर आज तक कितने वर्ष तथा कितने युग हुए हैं, यह बताया जाता है । देश-काल कथन करने से इस प्रचंड कालचक्र की तुलना में हम कितने क्षुद्र हैं, यह हमारे ध्यान में आता है, जिससे हमारा अहंभाव अल्प होने में सहायता मिलती है ।
२. इन दिन की दूसरी कृति है द्वार पर बंदनवार लगाना ! ब्रह्मध्वज खडा करने से पूर्व आम के पत्तों को लाल फूलों के साथ धागे में पिरोकर बंदनवार बनाकर उसे घर के द्वार पर लगाना चाहिए; क्योंकि लाल रंग शुभसूचक है । द्वार पर बंदनवार लगाने के कारण उस वास्तु में देवताओं की गंधतरंगें आकर्षित होती हैं । इस दिन एक और आवश्यक कृति है नित्य पूजन करना ! घर की परंपरा के अनुसार नियमितरूप से होनेवाला देवतापूजन करें । कुछ लोग इस दिन ‘संवत्सर पूजन’ भी करते हैं ।
इसके उपरांत इस दिन की अगली कृति है ब्रह्मध्वज खडा करना तथा उसका पूजन करना ! प्रतिपदा के दिन सूर्याेदय से पूर्व प्रवेशद्वार के सामने पानी का छिडकाव कर रंगोली बनाएं । प्रवेशद्वार की दाहिनी बाजू में ब्रह्मध्वज खडा करें तथा जहां ब्रह्मध्वज खडा किया जाता है, उसके सामने सुंदर रंगोली बनाएं ।
ब्रह्मध्वज खडा करने हेतु बांस की लकडी अथवा बांस, चीनी की गठियों की माला, हरा अथवा पीले रंग के जरदोज का वस्त्र, आम के पत्तों की शाखा, नीम के पत्ते अथवा नीम की कलियों से युक्त शाखा ! ब्रह्मध्वज खडा करने के लिए पीढा, कलश तथा नित्य पूजासामग्री लें ।
अब ब्रह्मध्वज (गुडी) कैसे खडा करना चाहिए ?, इसे भी संक्षेप में समझ लेते हैं ।
१. बांस की ऊंची लकडी के सिरे पर हरे अथवा पीले रंग का जरदोजी वस्त्र बांधें । वस्त्र बांधते समय उसे मोडकर बांधें ।
२. वस्त्र पर नीम के कोमल पत्ते अथवा कलियोंसहित शाखा अथवा आम के पत्तों की शाखा बांधें । उसके उपरांत चीनी के बताशों की माला बांधें । उस पर लाल फूलों की माला बांधें ।
३. कलश पर उंगली से गीले कुमकुम से स्वस्तिक बनाकर कलश को बांस की लडकी के सिरे पर उल्टा कर रखें । इस प्रकार से ब्रह्मध्वज की सजावट करें । उसके उपरांत इस ब्रह्मध्वज को छोटे से पीढे पर खडा करें ।
४. ‘ब्रह्मध्वजाय नमः ।’ बोलकर ब्रह्मध्वज का संकल्पपूर्वक पूजन करें । ब्रह्मध्वज को हल्दी समर्पित करें । उसके उपरांत कुमकुम समर्पित करें । अक्षत एवं फूल अर्पण कर धूप दिखाएं तथा दीपक लेकर आरती उतारें ।
५. पूजा के उपरांत निम्न प्रार्थना करें –
हे ब्रह्माजी एवं हे श्रीविष्णु, इस ब्रह्मध्वज के माध्यम से वातावरण में विद्यमान प्रजापति, सूर्य एवं सात्त्विक तरंगें ग्रहण करना हमें संभव हो । उनसे मिलनेवाली शक्ति में विद्यमान चैतन्य निरंतर टिका रहे । मुझे मिलनेवाली शक्ति का उपयोग मेरे द्वारा साधना के लिए ही हो, यही आपके चरणों में प्रार्थना है !
इसके उपरांत ब्रह्मध्वज को नीम के पत्तों का भोग लगाएं ।
ब्रह्मध्वज विजय का प्रतीक है । अयोध्यावासियों ने ब्रह्मध्वज खडे कर रावण का वध कर वापस लौटे प्रभु श्रीराम का स्वागत किया था । गुडी पडवा के दिन एक और महत्त्वपूर्ण कृति है नीम का प्रसाद ग्रहण करना ! नीम का यह प्रसाद कैसे बनाया जाता है, यह अब हम समझ लेते हैं ।
प्रसाद के लिए आवश्यक सामग्री
नीम की कलियां तथा कोमल पत्ते, चने की भिगोई हुई दाल अथवा भिगोए हुए चने, शहद, जीरा एवं हिंग ।
प्रसाद बनाने की कृति
नीम की कलियां तथा उसके १०-१२ कोमल पत्ते, ४ चम्मच चने की भिगोई हुई दाल अथवा भिगोए हुए चने, एक चम्मच शहद, एक चम्मच जीरा तथा स्वाद के अनुसार हिंग एवं नमक एकत्रित कर कूटकर उसका प्रसाद बनाएं । यह प्रसाद सभी में बांटें ।
नीम में प्रजापति तरंगों को ग्रहण करने की सर्वाधिक क्षमता होती है; इसलिए इस दिन नीम का प्रसाद ग्रहण किया जाता है । इस दिन खेत में हल चलाएं । हल चलाने के कारण भूमि का निचला स्तर ऊपर आता है, उससे मिट्टी पर प्रजापति तरंगों का संस्कार होता है । इसके कारण मिट्टी में बीजों को अंकुरित करने की क्षमता अनेक गुना बढती है । इस दिन खेती के औजारों तथा बैलों पर अभिमंत्रित अक्षत समर्पित करें । खेती का काम करनेवालों को अच्छे अंगवस्त्र दें, साथ ही अन्य दान भी दें । सूर्यास्त के समय ब्रह्मवज नीचे उतारा जाता है ।
सूर्यास्त के उपरांत तुरंत ब्रह्मध्वज नीचे उतारें । जिस भाव से ब्रह्मध्वज खडा किया जाता है, उसी भाव से उसे नीचे उतारने से चैतन्य मिलता है । ब्रह्मध्वज को नीचे उतारते समय उसे हल्दी-कुमकुम लगाएं तथा उसके उपरांत उसे नमस्कार करें । उसके उपरांत गुड अथवा मीठे पदार्थाें का भोग लगाएं । उसके पश्चात सभी मिलकर निम्न प्रार्थना करें –
‘हे ब्रह्माजी एवं हे श्रीविष्णु, आज पूरे दिन में इस ब्रह्मध्वज में जो कुछ शक्ति अंतर्भूत हुई है, आप उसे मुझे प्राप्त होने दें । राष्ट्र एवं धर्म कार्य के लिए आप इस शक्ति का उपयोग होने दें, यह आपके चरणों में प्रार्थना है ।’
प्रार्थना करने के उपरांत ब्रह्मध्वज नीचे उतारें । ब्रह्मध्वज को समर्पित की गई सभी सामग्री नित्य वस्तुओं के पास रखें । ब्रह्मध्वज को समर्पित फूल तथा आम के पत्तों को बहते पानी में विसर्जित करें ।
नववर्ष के आरंभ के उपलक्ष्य में हम शुभकामना पत्र भेजते हैं, उसे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को भेजें; क्योंकि नववर्षारंभ का यही उचित दिन है ।
प्रश्न : पंचांग श्रवण के विषय में आप और क्या बताना चाहेंगे ?
उत्तर : पंचांग श्रवण : ज्योतिष विशद करनेवाले का पूजन कर उनका अथवा पुरोहित के द्वारा नूतन वर्ष के पंचांग का अर्थात वर्षफल श्रवण किया जाता है । पंचांग श्रवण का फल इस प्रकार बताया गया है : तिथि के श्रवण से लक्ष्मीजी प्राप्त होती हैं । दिन के श्रवण से आयु बढती है, नक्षत्र के श्रवण से पापनाश होता है, योगश्रवण से रोगनाश होता है तथा करण के श्रवण से नियोजित कार्य सफल होता है । पंचांग के श्रवण से गंगास्नान का फल मिलता है ।
प्रश्न : नववर्ष के उपलक्ष्य में आप क्या आवाहन करना चाहेंगे ?
इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात गुढीपडवा ३० मार्च २०२५ को है । इस उपलक्ष्य में –
१. अपने घर पर यह त्योहार मनाकर आप चल दूरभाष से मित्रों तथा अन्य लोगों को इस त्योहार का महत्त्व बता सकते हैं ।
२. स्वयं भारतीय पारंपरिक वेशभूषा धारण कर अन्यों को भी उसका महत्त्व बता सकते हैं ।
३. नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात गुडी पडवा के दिन मनाने के संदर्भ में हम उनका उद्बोधन कर सकते हैं तथा उन्हें हिन्दू संस्कृति का महत्त्व बता सकते हैं ।
४. सामाजिक माध्यमों द्वारा फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सएप के माध्यम से नववर्ष की शुभकामनाएं दे सकते हैं ।
५. गुडी पडवा के उपलक्ष्य में सर्वत्र हिन्दू नववर्ष का महत्त्व बतानेवाले ‘ऑनलाइन’ व्याख्यानों का आयोजन करें ।
६. ‘आदर्श ब्रह्मध्वज कैसे खडा करें ?’, गुडी पडवा के महत्त्व की जानकारी देनेवाले वीडियो ‘ऑनलाइन’ दिखाने का नियोजन करें ।
आप इस प्रकार प्रयास कर सकते हैं ।
– श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति