नवसंवत्सर के दिन शुभ संकल्प लेंगे !

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा हिन्दुओं का नववर्षारंभ दिवस है । नववर्ष के आरंभ के दिन अगले पूरे वर्ष में की जानेवाली कृतियों का संकल्प लिया जाता है । नवसंवत्सर के शुभ मुहूर्त पर स्वयं की प्रकृति के अनुसार लिए जानेवाले संकल्प दैवी ऊर्जा के कारण निश्चित ही फलिभूत होते हैं । इस उपलक्ष्य में हम कुछ संकल्प एवं निश्चय कर वर्षारंभ का लाभ उठा सकते हैं ।  

संकलनकर्ता : श्री. यज्ञेश सावंत, पनवेल, महाराष्ट्र.

  

१. मातृभाषा में व्यवहार करना

संस्कृत सबसे सात्त्विक भाषा है । उसके उपरांत मराठी एवं हिन्दी भाषाएं सात्त्विक हैं; परंतु मराठी बोलते समय अंग्रेजी शब्दों का बहुत प्रयोग किया जाता है । इसीलिए हम मराठी अथवा हिन्दी के प्रति गर्व की भावना रखकर शुद्ध मराठी अथवा हिन्दी में ही व्यवहार करने का निश्चय करेंगे ।

२. चल दूरभाष पर बहुत समय व्यर्थ गंवाना टालना

भारत में चल दूरभाष (स्मार्टफोन) का उपयोग करनेवाली युवा पीढी तथा अन्य लोग चल दूरभाष का उपयोग करने में दिन में औसतन ५ घंटे से अधिक समय व्यर्थ गंवा रहे हैं । इतने लंबे समय तक चल दूरभाष का उपयोग कर उस पर सामाजिक माध्यमों तथा यूट्यूब पर चलनेवाले अनावश्यक वीडियो देखकर उससे होनेवाली मानसिक अस्वस्थता तथा चिडचिडाहट का दिन के कामों तथा दिनक्रम पर अनिष्ट परिणाम होता है । इसे ध्यान में लेकर हम चल दूरभाष का अनावश्यक उपयोग टालने का निश्चय करेंगे ।

३. योगासन/व्यायाम करना

हमारे क्षेत्र में योगासन एवं व्यायाम सिखानेवाली तथा उन्हें करवा लेनेवाली अनेक संस्थाएं कार्यरत होती हैं । वहां जाकर समूह में योगासन एवं व्यायाम करने से हमें उसकी आदत लगती है तथा मन पर नियमितता का संस्कार भी होता है । स्वस्थ रहना, युवकों का अच्छा अध्ययन करना तथा राष्ट्र एवं धर्म से संबंधित कार्यक्रमों में सहभागी होना; इसके लिए सदृढ शरीरसंपत्ति कमानी चाहिए ।

४. शूरता-वीरता संजोनेवाले उपक्रम

हम इस दृष्टि से सौभाग्यशाली हैं कि हम ऐसे महाराष्ट्र में रहते हैं, जहां हिन्दवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज के सैकडों गढ-किले हैं । इन गढ-किलों पर जाकर वहां गिर्यारोहण करने के साथ हम वहां का इतिहास जान सकते हैं । जिससे छत्रपति शिवाजी महाराज के गुणों का हमें प्रत्यक्ष परिचय होगा ।

५. अग्निशमन एवं आपातकालीन प्रशिक्षण

सरकार की ओर से अग्निशमन तथा आपातकालीन प्रशिक्षण दिया जाता है, साथ ही कुछ संस्थाओं की ओर से भी दिया जाता है । उसके कुछ तंत्र सीख लेने से घर में अथवा कहीं आग लगने पर उसे रोका जा सकता है । कुछ लोगों के घर, कार्यालय, महाविद्यालय, विद्यालय इत्यादि स्थानों पर बडी सहजता से ‘फायर एक्स्टिंग्विशर’ उपलब्ध होता है; परंतु उसका उपयोग कैसे करना चाहिए, इसकी जानकारी बहुत ही अल्प लोगों को ज्ञात होती है ।

६. प्राथमिक उपचारों की जानकारी लेना

वर्तमान समय के भागदौड भरे जीवन में अनेक लोगों को विश्राम करने का भी समय नहीं मिल रहा है । वर्तमान जीवनशैली के कारण बहुत अल्प आयु में ही उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय की बीमारियां आदि से युवा पीढी ग्रस्त है । व्यायामशाला में व्यायाम करते समय, खेलते समय, पढते समय, यात्रा में चक्कर आना, हृदयविकार का झटका आना जैसी घटनाएं होकर अनेक लोग प्राणों से हाथ धो बैठे हैं । जब किसी व्यक्ति को इस प्रकार से शारीरिक अस्वस्थता प्रतीत होती है, उस समय उसके आसपास अनेक लोग होते हुए भी वे असहाय बनकर कुछ नहीं कर सके, ऐसा उन घटनाओं के वीडियो देखने पर ध्यान में आता है । ऐसी स्थिति में हमें प्राथमिक उपचार के कुछ तंत्र ज्ञात हो, तो हम ऐसे लोगों की सहायता कर सकते हैं । अतः युवक प्राथमिक उपचार सीख लें ।

७. आध्यात्मिक/धार्मिक संस्थाओं में सहभाग

शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक इत्यादि सभी बलों में आध्यात्मिक बल अधिक शक्तिशाली होता है । आध्यात्मिक बल के आधार पर हम अनेक विधायक कार्याें को अच्छे ढंग से संपन्न कर सकते हैं । भारतीय संस्कृति का मुख्य उद्देश्य ही है, ‘व्यक्ति के गुणों का विकास तथा दोष-अहं का निर्मूलन कर उसे ईश्वरस्वरूप बनाना ।’ उसके कारण सर्वांगीण दृष्टि से व्यक्ति की उत्तरोत्तर प्रगति ही होती रहती है तथा वास्तव में यही व्यक्तित्व का विकास होता है । आध्यात्मिक बल से युक्त व्यक्ति केवल स्वयं के लिए ही नहीं, अपितु उसका परिवार, उसके कार्य का स्थान, समाज, ऐसे सभी स्थानों पर दायित्व लेकर अनेक लोगों का उचित दिशादर्शन कर सकता है । गुरुकुल व्यवस्था में ही आध्यात्मिक जीवन का विचार था; परंतु कालप्रवाह में उसके नष्ट हो जाने के कारण अब आध्यात्मिक जीवन का विचार करने की आवश्यकता उत्पन्न हो गई है । हमारे क्षेत्र में कार्यरत आध्यात्मिक संस्थाओं में हम सम्मिलित हो सकते हैं । हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से प्रत्यक्ष तथा ऑनलाइन पद्धति से अनेक धर्मशिक्षावर्ग चल रहे हैं । उसमें युवक सहभागी हो सकते हैं ।

८. सार्वजनिक मंडलों के कार्य में सहभाग

जहां सार्वजनिक गणेशोत्सव तथा नवरात्रि उत्सव मंडल कार्यरत होते हैं, उन्हें कार्यकर्ताओं की आवश्यकता पडती ही है । वहां की व्यवस्था को समझ लेने से हमें त्योहार-उत्सवों का लाभ मिलता है, साथ ही वहां सेवा कर अनेक गुण-कौशल आत्मसात किए जा सकते हैं, साथ ही मंडल द्वारा संगठन भी खडा रहता है । केवल फेसबुक, वॉट्सएप जैसे सामाजिक माध्यमों पर समूह बनाकर उसमें केवल जानकारी का आदान-प्रदान करने की अपेक्षा जहां संभव है, वहां एकत्र होना अच्छा है ।

९. शौक संजोना

हम गायन, वादन, चित्रकला, हस्तकला इत्यादि शौक संजो सकते हैं । कुछ लोगों को अन्य भी कुछ शौक होते हैं । शौक संजोने से हमारा काम, महाविद्यालयीन छात्रों को अध्ययन, स्पर्धा परीक्षाओं की कालावधि में आनेवाला तनाव दूर करने के लिए तथा मन को उत्साहित रखने के लिए उपयोग होता है । तैराकी सीखने से शौक के साथ ही, आपातकालीन बाढ की स्थिति में भी उसका लाभ होता है ।

यह सूची बहुत बडी है । यदि हिन्दुओं ने सुनिश्चित किया, तो वे इन शुभसंकल्पों के कारण सर्वांगीणदृष्टि से तैयार हो सकते हैं । उनमें से कुछ कृतियां भी कीं, तो उन्हें एक दिशा मिलेगी तथा शिक्षा, नौकरी, व्यवसाय आदि के साथ ही जीवन के अमूल्य समय का उपयोग यह सीखने में करने के कारण उन्हें संतुष्टि भी मिलेगी ।

– श्री. यज्ञेश सावंत, सनातन संकुल, देवद, पनवेल. (१.४.२०२४)