कोरोना महामारी के संघर्षमय काल में जिज्ञासुओं के लिए संजीवनी प्रमाणित हुआ सनातन संस्था का ‘ऑनलाइन साधना सत्संग’ !

आध्यात्मिक साधना के अभाव में अधिकतर लोगों को जीवन में आनेवाले तनावों का सामना करते समय मनोबल एवं आत्मबल अल्प पडता है । तनाव, निराशा, नकारात्मकता, चिडचिडाहट; ऐसी अनेक लोगों की स्थिति होती है ।

अखिल मानवजाति का हित साध्य करना ही सनातन संस्था का उद्देश्य है !

सनातन संस्था विगत २५ वर्षाें से अनेक जनहितकारी उपक्रम चला रही है, जिससे समाज धर्माचरणी एवं श्रद्धावान बन रहा है । यह कार्य देखकर नास्तिकतावादी, आधुनिकतावादी, अंधविश्वास निर्मूलनवादी, हिन्दूद्वेषी, वामपंथी एवं तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों को सहन नहीं हो रहा है ।

हिन्दुओं की अद्वितीय कालगणना की पद्धति की अलौकिकता का वर्णन करनेवाला…नवसंवत्सरारंभ !

जैसे हिन्दुओं का कोई भी त्योहार मौज-मस्ती का विषय नहीं, अपितु मंगलता, पवित्रता, चैतन्य एवं आनंद का समारोह है, वैसे ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा भी है ! इसकी एक और विशेषता यह है कि यह काल का प्रत्यक्ष भान कराकर जीव को अधिकाधिक अंतर्मुख बना देता है !

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर वर्षारंभ करने के प्राकृतिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक कारण

ज्योतिष-शास्त्र अनुसार संवत्सरारंभ के आस-पास ही सूर्य वसंतविषुव (Vernal Equinox) पर आता है एवं वसंत ऋतु आरंभ होती है अर्थात सूर्य भ्रूमध्यरेखा को पार करता है तथा दिन-रात का मान समान होता है ।

आगामी हिन्दू वर्ष में हिन्दुओं का राजनैतिक, कूटनीतिक तथा तकनीकी सशक्तिकरण होगा ! – आचार्य डॉ. अशोक कुमार मिश्र

प्राच्य और ज्योतिषशास्त्रीय ग्रंथों में वर्णित है कि ब्रह्माजी के द्वारा सृष्टि की रचना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रारंभ किया गया और तभी से समय-गणना का विधान भी प्रारंभ हुआ ।

सूक्ष्म आयाम को समझने की क्षमता रखना – सनातन संस्था के साधकों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता !

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने अपने गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी के आशीर्वाद से १.८.१९९१ को ‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’ की स्थापना की । उसके उपरांत उन्होंने संस्था का नाम सरल करने हेतु २३.३.१९९९ को ‘सनातन संस्था’ की स्थापना की । अब मार्च २०२४ में सनातन संस्था के २५ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । इस … Read more

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की कृपा से ‘सनातन के साधक आनंद में रहनेवाले जीव हैं, इसकी प्रतीति लेनेवाले समाज के विभिन्न व्यक्ति !

‘‘सनातन के साधक सदैव आनंद में रहते हैं । हमारे यहां संप्रदाय जैसी विशिष्ट वेशभूषा नहीं होती; परंतु ‘चेहरे पर दिखाई देनेवाला आनंद’ ही हमारे साधकों की पहचान है ।

सनातन की सर्वांगस्पर्शी ग्रंथसंपदा

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की सिद्ध लेखनी से साकार हुए सनातन के ग्रंथ चैतन्यमय ज्ञान का भंडार है ! ये ग्रंथ केवल स्पर्श से लोहे को सोना बनानेवाले पारस के समान हैं; क्योंकि ग्रंथों में दी गई सीख के अनुसार आचरण करने से अनेक लोगों के जीवन में आमूल परिवर्तन हो रहे हैं !

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु ‘आपातकाल से पूर्व ग्रंथों के माध्यम से अधिकाधिक धर्मप्रसार’ होने के उद्देश्य से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का संकल्प कार्यरत हो गया है । अतः उनकी अपार कृपा प्राप्त करने के लिए इस कार्य में पूर्ण लगन से सम्मिलित हों !

धर्मप्रसार का कार्य होने में ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति एवं क्रियाशक्ति, इनमें से ज्ञानशक्ति का योगदान सर्वाधिक है । ज्ञानशक्ति के माध्यम से कार्य होने हेतु सबसे प्रभावी माध्यम हैं ‘ग्रंथ’ !