अखिल मानवजाति का हित साध्य करना ही सनातन संस्था का उद्देश्य है !

सनातन संस्था विगत २५ वर्षाें से अनेक जनहितकारी उपक्रम चला रही है, जिससे समाज धर्माचरणी एवं श्रद्धावान बन रहा है । यह कार्य देखकर नास्तिकतावादी, आधुनिकतावादी, अंधविश्वास निर्मूलनवादी, हिन्दूद्वेषी, वामपंथी एवं तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों को सहन नहीं हो रहा है । सनातन संस्था का तेजस्वी प्रसार उन्हें सहन नहीं होता; इसलिए उन्होंने विगत कुछ वर्षाें से सनातन संस्था को ‘सरल लक्ष्य (सॉफ्ट टारगेट)’ बनाया है । इसके कारण सनातन संस्था पर विभिन्न आरोप लगाए जा रहे हैं । इस विषय में सनातन संस्था के रजत जयंती महोत्सव के उपलक्ष्य में सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस से ‘सनातन प्रभात’ के प्रतिनिधि श्री. नीलेश कुलकर्णी ने संवाद कर संस्था का पक्ष जान लिया है । इस संवाद से विरोधियों का षड्यंत्र तथा सनातन संस्था का मानवहितकारी उद्देश्य समझ में आएगा ।

श्री. चेतन राजहंस

आजकल समाज में हिन्दू राष्ट्र की चर्चा होती है, वह प्रमुख रूप से राजनीतिक व्यवस्था के संदर्भ में होती है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने ‘आध्यात्मिक राष्ट्ररचना को हिन्दू राष्ट्र’ कहा है । वर्ष १९९८ में उन्होंने ‘ईश्वरीय राज्य की स्थापना’ नामक ग्रंथ संकलित किया था । उसमें समाज को सत्त्वगुणी बनाना, अध्यात्मकेंद्रित राजव्यवस्था स्थापित करना तथा उस माध्यम से विश्वकल्याण साध्य करना, यह हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना बताई गई थी । आगे जाकर ‘हिन्दू राष्ट्रकी स्थापनाकी दिशा’ ग्रंथ में उन्होंने ‘विश्वकल्याण हेतु कार्यरत सत्त्वगुणी लोगों का राष्ट्र’, ऐसी हिन्दू राष्ट्र की परिभाषा की थी । संक्षेप में कहा जाए, तो सनातन संस्था का विचार केवल हिन्दुओं का हित ही नहीं, अपितु विश्वकल्याण साध्य करना तथा उसके लिए सत्त्वगुणी समाज का निर्माण करना, यह भी है ।

आज की भ्रष्ट व्यवस्था में इस प्रकार की व्यवस्था का निर्माण करना, एक प्रकार से धर्मसंस्थापना का कार्य है । यह भले ही कठिन है; परंतु कालमहिमा के अनुसार वह होने ही वाला है । इसकी एक प्रतीति यह है कि जब भी धर्मसंस्थापना होती है, उस समय देवता स्वयं प्रकट होकर कार्य करते हैं । ज्ञानवापी के ३ दिन के सर्वेक्षण के अंतिम दिन तथा अंतिम घंटे में वजूखाने में भव्य शिवलिंग दिखाई दिया । देवता स्वयं प्रकट हो रहे हैं, इसका यह संकेत है । आज के समय में भारत सरकार ‘जी-२०’ से लेकर ‘वन वर्ल्ड, वन फैमिली’ (एक विश्व एक परिवार), इस ब्रीदवाक्य का प्रचार कर रही है । इससे अब विश्वकल्याणकारी व्यवस्था का बीजारोपण हो रहा है, यह ध्यान में आता है ।

– श्री. चेतन राजहंस, सनातन संस्था, राष्ट्रीय प्रवक्ता

सनातन संस्था की रजत जयंती महोत्सव के उपलक्ष्य में सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस से ‘सनातन प्रभात’ के प्रतिनिधि नीलेश कुलकर्णी द्वारा किया गया संवाद !

१. सनातन संस्था की यह २५ वर्षाें की यात्रा कैसी थी ? सनातन का जो उद्देश्य था, क्या वह इन २५ वर्षाें में सफल हुआ है, ऐसा आपको लगता है ?

उत्तर : सनातन संस्था समाज की आध्यात्मिक सेवा करनेवाली स्वयंसेवी संस्था है । लोगों का जीवन आनंदमय बनाना, लोगों को तनावमुक्त एवं व्यसनमुक्त करना, उनके व्यक्तित्त्व का विकास करना तथा सबसे महत्त्वपूर्ण उनकी आध्यात्मिक उन्नति करा लेना जैसा समाज का आध्यात्मिक कल्याण करनेवाला कार्य हम करते हैं । इसके द्वारा लोगों को आध्यात्मिक अनुभूतियां आती हैं तथा उनका जीवन आनंदमय बन जाता है । सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि आगे जाकर उनकी आध्यात्मिक उन्नति होती है । ये सभी अनुभव आध्यात्मिक स्वरूप के होने से सनातन संस्था की २५ वर्षाें की यात्रा का भौतिक कार्य की दृष्टि से मूल्यांकन करना कठिन है ।

सनातन संस्था के २५ वर्ष अर्थात सनातन के साधकों एवं हितचिंतकों के निस्वार्थ समर्पण के २५ वर्ष हैं । यह यात्रा निश्चित ही सरल नहीं थी; क्योंकि इसी काल में सनातन संस्था को ‘आतंकवादी संस्था’ प्रमाणित करने का दुष्ट प्रयास हुआ । निरीश्वरवादियों की हत्याओं में सनातन के साधकों को फंसाने का प्रयास किया गया । सहस्रों साधकों से पूछताछ की गई । इस प्रकार संघर्ष का काल अनुभव करते हुए संस्था की २५ वर्षाें की यह यात्रा संपन्न हुई है ।

स्वयंसेवी संस्थाओं का कार्य समाजपरिवर्तन का अथवा समाजहित का होता है । यह कार्य अखंडित करना पडता है; क्योंकि समाज की गहराई बहुत बडी है । इसलिए विगत २५ वर्षाें में संस्था का कार्य कितना सफल रहा, इस पर विचार न कर सामाजिक संस्था के रपू में निष्काम भावना से कार्य करते रहना महत्त्वपूर्ण होता है ।

२. सनातन संस्था का अधिकतर कार्य महाराष्ट्र में होते हुए भी सनातन संस्था का मुख्य आश्रम गोवा में क्यों है ?

उत्तर : सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी ने वर्ष १९९३ में अपने द्रष्टापन से बताया था, ‘अध्यात्मप्रसार के कार्य का मुख्यालय गोवा में होगा ।’ आगे जाकर रामनाथी, गोवा में सनातन संस्था को अर्पण के रूप में भूमि उपलब्ध हुई और गोवा में सनातन संस्था का मुख्य आश्रम बन गया ।

३. अध्यात्म में यदि पाखंड, अनिष्ट प्रथाएं तथा अनुचित परंपराएं हों, तो क्या उनके विषय में कार्य नहीं करना चाहिए ?

श्री. नीलेश कुलकर्णी

उत्तर : धार्मिक क्षेत्रों में पाखंड नहीं है, ऐसा हमारा कहना नहीं है । वह पहले भी था और आज भी है । किसी भी सश्रद्ध व्यक्ति का पाखंड को विरोध होता है । ‘समाज में पाखंड, अनिष्ट प्रथाएं तथा अनुचित परंपराओं का निर्मूलन आवश्यक ही है’, यह सनातन की स्पष्ट भूमिका है । समाज में प्रचलित दंभ का निर्मूलन करने हेतु भक्तियोग के संतों द्वारा किया गया अमूल्य कार्य सर्वविदित है । अद्वैत सिद्धांत बतानेवाले आद्य शंकराचार्यजी ने आवश्यकता पडने पर अघोरी प्रथाओं को अपनानेवाले कापालिकों के नाश के लिए संन्यासियों को एकत्रित किया था । संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर महाराज, जगद्गुरु संत तुकाराम महाराज, संत एकनाथ महाराज, इन सभी संतों ने श्लोक, अभंग, भारूड के माध्यम से समाज के पाखंड पर प्रहार किए । यह सब बताने का तात्पर्य यह है कि श्रद्धा का प्रसार करनेवाले संत ही अच्छे ढंग से पाखंड का निर्मूलन कर सकते हैं; क्योंकि भाव एवं श्रद्धा को समझ लेने के साथ ही उन्हें पाखंड का भी उत्तम ज्ञान होता है; परंतु दुर्भाग्यवश आज के समय में यह आंदोलन धर्म न माननेवालों के नियंत्रण में चला गया है । जिन्हें लगता है कि ‘धर्म अफीम की गोली’, जिन्हें समाज में नास्तिकतावाद फैलाना है, जिनके संगठन का पहले का नाम ‘‘मानवीय नास्तिक मंच’ था, वे लोग आज ‘अंधश्रद्धा निर्मूलन’ के नाम पर नास्तिकवाद को बढावा देनेवाला श्रद्धाविरोधी अभियान चला रहे हैं । ‘श्रद्धा का प्रसार करनेवाले संतों को कारागृह में डाल देंगे’, ऐसी खुलेआम धमकियां देनेवाले नास्तिकों को सरकार राजमान्यता दे रही है । उनके द्वारा बताए गए कानून आज महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि राज्यों में बनाए जा रहे हैं, यह भयावह है ।

जिस आध्यात्मिक परंपरा ने श्रद्धा का प्रसार करते हुए पाखंड का निर्मूलन किया, उसी परंपरा की धरोहर को सनातन संस्था संजो रही है । अधर्माचरण करनेवाले पुजारी, पुरोहित, पाखंडी संत इत्यादि के कारण समाज श्रद्धाविहिन बनता है; इसलिए सनातन उनके प्रति समाज में जागरण करता है ।

इस संदर्भ में सनातन संस्था ने ‘साधु-संतोंका महत्त्व एवं कार्य’, ‘कुंभपर्वमें कुछ साधुओंका पाखंड’ तथा ‘पाखंडी बाबाओंसे
सावधान !’, ये ३ जनजागरण करनेवाले ग्रंथ प्रकाशित किए हैं । सनातन संस्था ने मुंबई में श्रद्धालुओं के साथ धोखाधडी करनेवाले बंगाली बाबाओं के विरोध में शिकायत भी पंजीकृत की हैं ।

४. प्रश्न : आजकल जातीय विद्वेष चरम पर है । इस संदर्भ में सनातन का क्या विचार है ?

उत्तर : प्रत्येक जाति ने अथवा उस जाति से आनेवाले महापुरुषों ने इतिहास में समाज, देश एवं धर्म के उत्कर्ष हेतु बडा योगदान दिया है । अतः सभी जातियां महान हैं ।

‘आज के समय में जातिद्वेष बढने का कारण है – गंदी राजनीति । आज राजनेताओं ने सभी क्षेत्रों में जाति लाकर जाति-जातियों में विद्वेष का विष बोया है । हमारा मत है कि समाज को आध्यात्मिक बनाकर ही इस जातिद्वेष को रोका जा सकता है ।’ उदाहरण देना हो, तो सनातन के आश्रमों में स्थित जातिनिरपेक्षता स्पष्टता से दिखाई देती है । आश्रम में किसी से भी उसकी जाति पूछी नहीं जाती । ‘प्रत्येक साधक साधकबंधु तथा गुरुबंधु है’, इस आध्यात्मिक भाव से उसकी ओर देखा जाता है । इसलिए सनातन के आश्रम सैकडों सदस्यों का एक परिवार ही बन गया है । ‘ईश्वरप्राप्ति के माध्यम से एकसंध समाज बनाया जा सकता है तथा रामराज्य की अनुभूति की जा सकती है’, इसका सनातन के आश्रमों से अनुभव किया जा सकता है ।

५. सनातन को निश्चित रूप से क्या साध्य करना है ?

उत्तर : सनातन संस्था श्रद्धासंवर्धन आंदोलन में स्थित एक अग्रणी संस्था है । सनातन संस्था की प्रमुख सीख है – ‘मनुष्यजीवन को सार्थक बनाना सिखानेवाले हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा रखकर साधना कर जीवन को सार्थक बनाएं !’ हमें हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा के संवर्धन से धर्माचरणी प्रजा का निर्माण करना है; क्योंकि ‘सुखस्य मूलं धर्मः ।’ (चाणक्यसूत्र, अध्याय १, सूत्र १) अर्थात ‘सुख का मूल धर्म (धर्माचरण करने में) है’, ऐसा धर्म बताता है । श्रद्धा का प्रसार करने से समाज धर्माचरण करता है । धर्माचरण के कारण नैतिकता का उत्कर्ष होता है । ऐसा नीतिमान समाज ही राजव्यवस्था का आदर्श पद्धति से संचालन कर सकता है, साथ ही विश्वकल्याण की कामना भी कर सकता है । संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर महाराजजी द्वारा अपने गुरु निवृत्तिनाथ महाराज से श्रद्धापूर्वक किए गए पसायदानरूपी (विश्व के लिए दान मांगना) प्रार्थना से विश्वकल्याण की जो याचना की है, उसी परंपरा के हम वंशज हैं । हम विश्वकल्याण की कामना करनेवाले हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा का प्रसार कर रहे हैं । हम विश्वकल्याणकारी आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र का समर्थन करते हैं । उसके द्वारा हमें (सनातन संस्था को) अखिल मानवजाति का हित साधना है ।